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सुप्रीम कोर्ट ने वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन में यूपी सरकार के हस्तक्षेप पर नाराज़गी जताई। कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि निजी विवादों में दखल देना कानून के शासन को खत्म कर देगा। कोर्ट ने मंदिर के पुनर्विकास योजना पर भी सवाल उठाए और ट्रस्ट से संबंधित अध्यादेश की प्रति याचिकाकर्ता को देने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी।

वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर दो निजी पक्षों के बीच चल रहे मुकदमे में उत्तर प्रदेश सरकार के दखल को सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया।

कोर्ट ने सरकार को 'मुकदमा हाईजैक' करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। मंगलवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस बी.वी. नागरथना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि अगर सरकार निजी विवादों में हस्तक्षेप करेगी, तो इससे कानून का शासन खत्म हो जाएगा।

कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या राज्य सरकार इस मामले में पक्षकार थी? और किस हैसियत से सरकार ने इस विवाद में दखल दिया? बेंच ने कहा, "अगर राज्य सरकारें निजी पक्षों के बीच के विवाद में कूदने लगेंगी, तो यह कानून के शासन का अंत हो जाएगा। आप मुकदमे को हाईजैक नहीं कर सकते। दो निजी पक्षों के बीच के मुकदमे में सरकार का दखल देना और उसे अपने कब्जे में लेना जायज नहीं है।"

मंदिर के पुनर्विकास पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें यूपी सरकार के मंदिर पुनर्विकास योजना को मंजूरी देने वाले आदेश में संशोधन की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता देवेंद्र नाथ गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि 300 करोड़ रुपये की राशि यूपी सरकार को दी गई, बिना हमें पक्षकार बनाए।

यूपी सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने मंदिर के प्रबंधन और प्रस्तावित कॉरिडोर के कार्यों की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया है। उन्होंने कहा कि सारी राशि ट्रस्ट के पास रहेगी, न कि सरकार के पास, जैसा कि अध्यादेश में जिक्र किया गया है।

कोर्ट ने सरकार के वकील को निर्देश दिया कि ट्रस्ट से संबंधित अध्यादेश की प्रति याचिकाकर्ता को दी जाए और संबंधित प्रधान सचिव को 29 जुलाई तक हलफनामा दाखिल करने को कहा।

यूपी सरकार की मंदिर कॉरिडोर योजना को मंजूरी दी थी

15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की मंदिर कॉरिडोर योजना को मंजूरी दी थी, जिसका मकसद लाखों श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर के आसपास के इलाके का विकास करना है। कोर्ट ने सरकार को मंदिर के फंड का इस्तेमाल केवल 5 एकड़ जमीन खरीदने के लिए इजाजत दी थी, ताकि वहां होल्डिंग एरिया बनाया जा सके। इस योजना के तहत मंदिर के आसपास की जमीन पर पार्किंग, श्रद्धालुओं के लिए आवास, शौचालय, सुरक्षा चौकियां और अन्य सुविधाएं विकसित की जानी हैं।

19 मई को गोस्वामी ने याचिका दायर कर कहा कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना को लागू करना व्यवहारिक रूप से नामुमकिन है। उन्होंने दावा किया कि मंदिर के ऐतिहासिक और संचालन से जुड़े लोगों की भागीदारी और सुझावों के बिना पुनर्विकास से प्रशासनिक फसाद पैदा हो सकती है। याचिका में कहा गया कि ऐसा पुनर्विकास मंदिर के धार्मिक और सांस्कृतिक चरित्र को बदल सकता है, जो ऐतिहासिक और भक्ति के लिहाज से बहुत अहम है।

  • याचिका में गोस्वामी ने दावा किया कि वे मंदिर के संस्थापक स्वामी हरि दास गोस्वामी के वंशज हैं
  • उनका परिवार पिछले 500 वर्षों से मंदिर के प्रबंधन का काम संभाल रहा है।
  • उन्होंने कहा कि वे मंदिर के दैनिक धार्मिक और प्रशासनिक कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट का 15 मई का फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट के 8 नवंबर, 2023 के आदेश में संशोधन करता है।
  • इस फैसले में यूपी सरकार की एक जनहित याचिका पर राज्य की महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकार किया गया था, लेकिन मंदिर के फंड के उपयोग की अनुमति नहीं दी गई थी।

आगे की सुनवाई का इंतज़ार

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वह ट्रस्ट से संबंधित दस्तावेज़ साझा करे और हलफनामा दाखिल करे। अब इस मामले की अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी, जिसमें मंदिर के प्रबंधन और पुनर्विकास योजना पर और चर्चा होगी। यह मामला न केवल मंदिर के प्रबंधन से जुड़ा है, बल्कि निजी विवादों में सरकारी दखल के सवाल को भी उठाता है।