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मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर को तानसेन की नगरी के रूप में जाना जाता है। यहां 15 से 19 दिसंबर तक तानसेन समारोह का आयोजन किया जा रहा है। यहां होने वाली संगीत सभाओं के साथ ही ऐतिहासिक स्थलों को देखने का मौका है। ग्वालियर में और उसके आसपास कई पर्यटनस्थल हैं जिन्हें देखकर आप भाव विभोर हो सकते हैं।

ग्वालियर। अगर आप संगीत रसिक हैं और ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत को देखने में भी रुचि है तो यह समय है आपके संगीत सम्राट तानसेन की नगरी संगीतधानी ग्वालियर आने का। 15 से 19 दिसंबर तक आयोजित होने जा रहे तानसेन समारोह में शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में देश-विदेश से मूर्धन्य गायक और वादक संगीत सम्राट को स्वरांजलि देने ग्वालियर पहुंच रहे हैं।

इस आयोजन में होने वाली संगीत सभाओं के बीच में ही आप ग्वालियर और आसपास के ऐतिहासिक स्थल घूम सकते हैं, जो चंद किलोमीटर की ही दूरी पर हैं। समारोह में 14 दिसंबर की शाम को गमक कार्यक्रम के बाद प्रतिदिन सुबह की सभा 10 बजे से और शाम की सभा सात बजे से होगी।

धरोहरों का संगम है ग्वालियर किला

ग्वालियर किला विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है। यहां पहुंचने के लिए दो प्रवेश द्वार हैं। एक प्रवेश द्वार आयोजन स्थल से मात्र डेढ़ किमी की दूरी पर है, जिसकी चढ़ाई किला गेट से पैदल की जा सकती है। दूसरा द्वार उरवाई गेट है, जहां गाड़ी से ऊपर जाया जा सकता है। किले पर एएसआई और स्टेट आर्कियोलॉजी की धरोहरें हैं। यहां मान सिंह पैलेस, सहस्रबाहु का मंदिर, तेली का मंदिर, अस्सी खंबे की बावड़ी, जहांगीर महल, कर्ण महल, जौहर कुंड और सूरज कुंड देखा जा सकता है। दाता बंदीछोड़ गुरुद्वारा भी है।

महाराज बाड़े पर सात शैलियों की ऐतिहासिक इमारतें

शहर के बीचोंबीच बने महाराज बाड़े की आयोजन स्थल से महज पांच किमी की दूरी पर है। यहां यूरोप को रिप्रजेंट करता ट्रफग्लर स्क्वायर जैसा नजारा दिखता है। यहां सात अलग-अलग शैली में बनी इमारतें इतिहास की गाथा गाती हैं। ये इमारतें ब्रिटिश, रोमन, फ्रेंच, अरब, फारसी और इटैलियन शैलियों में हैं। वर्तमान में इन्हें और आकर्षक बनाने के लिए फसाड लाइटिंग की गई है। यह खूबसूरती आपको शाम छह बजे से नजर आने लग जाएगी।

  • बैजाताल: यह आयोजन स्थल से करीब तीन किमी दूर है। इसका निर्माण वर्ष 1850 में महारानी बैजाबाई के नाम पर किया गया था। नजदीक में ही महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि है। साथ ही इटैलियन गार्डन, बारादरी और जलविहार पार्क भी हैं। इन स्थानों को आप तीन-चार घंटे में घूम सकते हैं। इसी परिसर में सिंधिया राजघराने का जयविलास पैलेस हैं। यहां का संग्रहालय दर्शनीय है।

ग्वालियर के आसपास

ग्वालियर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर मितावली है। मितावली से कुछ ही दूरी पर पड़ावली और बटेश्वर है। ये तीनों धरोहर आप तानसेन समारोह के पहले 14 दिसंबर को घूम सकते हैं। मितावली का ‘चौसठ योगिनी मंदिर’, जिसकी संरचना भारत की पुरानी संसद के समान है।

पड़ावली अपने खंडहरों और छोटे किले के लिए जाना जाता है। बटेश्वर में बने मंदिर 8वीं से 10वीं शताब्दी में बने बताए जाते हैं। यहां का जीर्णोद्धार अभी चल रहा है। यहां पहुंचने के लिए आपको टैक्सी आसानी से मिल जाएगी।

  • तिघरा बांध: समारोह के बीच में अगर आप वाटर एक्टिविटी का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो कैब से तिघरा जा सकते हैं। यह तकरीबन 20 किमी की दूरी पर है। तिघरा बांध को 100 साल पहले इंजीनियर एम विश्वेश्वरैया की मदद से माधौ महाराज ने बनवाया था। यहां बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है।

अच्छी कनेक्टिविटी, ठहरने के भी काफी विकल्प

संगीत समारोह में शामिल होने और विरासत घूमने के लिए आसानी से ग्वालियर आया जा सकता है। यहां आने के लिए कनेक्टिविटी अच्छी है। एयर कनेक्टिविटी की बात करें तो ग्वालियर से कई बड़े महानगरों के लिए सीधी फ्लाइट हैं। ग्वालियर स्टेशन पर राजधानी, शताब्दी, वंदे भारत जैसी ट्रेनों का भी ठहराव होता है।

ग्वालियर एनएच-42 से जुड़ा है। इसलिए सड़क मार्ग से भी यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। ठहरने के लिए ग्वालियर में बजट होटल से लेकर फाइव स्टार सुविधाओं वाले होटल हैं। यहां होटल में कमरा 1,500 से 17,000 रुपये तक में उपलब्ध हो जाता है।