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श्री अकाल तख्त से तनखैया घोषित होने के बाद सुखबीर बादल ने शनिवार को पार्टी के प्रधान पद से इस्तीफा दे दिया। गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के विरोध में प्रदर्शनकारियों पर फायिरंग जैसी घटनाओं ने उन्हें आज इस स्थिति में पहुंचाया है। उन पर इस्तीफे का दबाव लगातार बढ़ रहा था। इस दबाव के कारण ही पार्टी दोफाड़ हो गई थी।

चंडीगढ़। श्री अकाल तख्त से तनखैया घोषित होने के बाद सुखबीर बादल पर शिरोमणि अकाली दल का प्रधान पद छोड़ने के लिए भारी दबाव था जिसे देखते हुए उन्होंने शनिवार को यह पद छोड़ दिया। 2007 से 2017 तक पंजाब में भाजपा के साथ गठबंधन करके एक सशक्त सरकार चलाने वाले सुखबीर बादल को उनके कार्यकाल में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान और उसके निराकरण के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं करने, डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को माफी देने तथा सुमेध सैनी को डीजीपी बनाने की घटनाओं ने आज इस स्थिति में पहुंचाया है।

2017 में 15 सीटों पर सिमट गई थी शिअद

गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के विरोध में बरगाड़ी में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फायिरंग में दो लोगों की मौत ने इस नाराजगी को शीर्ष पर पहुंचा दिया और 2017 के विधानसभा चुनाव में हालत यह हो गई कि पार्टी 59 सीटों से कम होकर मात्र 15 सीटों पर सिमट गई।

2022 में तो स्थिति इससे भी पतली हो गई। उसके बाद पूर्व विधायक इकबाल सिंह झूंदा की अगुवाई में एक कमेटी बनाकर हार के कारण ढूंढने तथा पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए सिफारिशें देने को कहा गया

सुखबीर बादल पर था इस्तीफे का दवाब

झूंदा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में न केवल हार के कारणों का उल्लेख किया बल्कि सभी नेताओं को अपने पद छोड़ने की भी सिफारिश की। पार्टी प्रधान ने सभी विंग को भंग कर दिया परंतु स्वयं पद से इस्तीफा नहीं दिया तथा न ही रिपोर्ट सार्वजनिक की गई।

कमेटी की रिपोर्ट में सुखबीर बादल को अप्रत्यक्ष ढंग से इस्तीफे के लिए कहा गया था। उन पर इस्तीफे का दबाव लगातार बढ़ रहा था। इस दबाव के कारण ही पार्टी दोफाड़ हो गई। सुखदेव सिंह ढींडसा जैसे नेता, जो अकाली दल में फिर से शामिल हो गए थे, वापस लौट गए।

संसदीय चुनाव के बाद उनके सहित कई सीनियर नेता परमिंदर सिंह ढींडसा, प्रो प्रेम सिंह चंदूमाजरा, बीबी जगीर कौर, गुरप्रताप सिंह वडाला आदि पार्टी से अलग हो गए। इस दौरान सुखबीर बादल ने श्री अकाल तख्त साहिब पर पेश होकर अपनी सरकार के समय हुई गलतियां मानीं और उनकी जिम्मेवारी भी स्वीकार की।

30 अगस्त को सुखबीर तनखैया घोषित

30 अगस्त को श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने सुखबीर बादल को तनखैया घोषित कर दिया लेकिन धार्मिक सजा सुनाया जाना बाकी है। सुखबीर बादल तीन दिन पहले अपने लिए धार्मिक सजा सुनाने की मांग करने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार से मिलने भी गए थे पर वहां उनकी मुलाकात नहीं हो सकी। इस दौरान कुर्सी से गिरने से उनकी टांग में फ्रैक्चर हो गया। अब उन्होंने अपने प्रधान पद से इस्तीफा दे दिया।

14 दिसंबर 1920 को बनाए गए शिरोमणि अकाली के बीस प्रधान

शिरोमणि अकाली दल का गठन गुरुद्वारों को महंतों से छुड़वाने का आंदोलन शुरू करने के लिए 14 दिसंबर 1920 को हुआ था। सिख पंथ के लिए आदरणीय विभूति बाबा बुड्ढा जी के गांव के सरमुख सिंह झबाल को दल का पहला प्रधान बनाया गया। बाबा खड़क सिंह ने इस संघर्ष को आगे बढ़ाया। दिल्ली में बना खड़क सिंह मार्ग इन्हीं के नाम पर है।

उनके बाद मास्टर तारा सिंह, गोपाल सिंह कौमी, तारा सिंह ठेठर, तेजा सिंह अकरपुरी, बाबू लाभ सिंह, जत्थेदार उधम सिंह नागोके, ज्ञानी करतार सिंह, जत्थेदार प्रीतम सिंह गोजरां, हुक्म सिंह, संत फतेह सिंह, जत्थेदार अच्छर सिंह, ज्ञानी भूपेंद्र सिंह, जत्थेदार मोहन सिंह तुड़, जत्थेदार जगदेव सिंह तलवंडी, संत हरचंद सिंह लौंगोवाल, सुरजीत सिंह बरनाला, प्रकाश सिंह बादल व सुखबीर बादल इसके प्रधान रहे हैं।

युवा चेहरे को बनाया जाए शिअद प्रधान- बीबी जागीर

एसजीपीसी की पूर्व प्रधान एवं अकाली दल के सुधार लहर धड़े से जुड़ी बीबी जागीर कौर ने सुखबीर सिंह बादल के इस्तीफे पर कहा कि यह देरी से उठाया गया कदम है जिसने अकाली दल व पंथ को भारी नुकसान पहुंचाया है। कौम के नौजवानों का अकाली दल में विश्वास बहाल करने के लिए मेंबरशिप नए सिरे से शुरू की जाए और नए युवाओं को अकाली दल में भर्ती कर किसी और चेहरे को अकाली दल का प्रधान बनाया जाए।

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