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बिहार विधान परिषद (Bihar MLC) के तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में निर्दलीय उम्मीदवार वंशीधर ब्रजवासी ने जीत हासिल की है। सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवारों को हराकर उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की है। इस चुनाव में जातिगत समीकरणों और धनबल के प्रवाह को भी परास्त किया गया है। जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार डॉ. विनायक गौतम दूसरे स्थान पर रहे।

पटना। यूं तो विधान परिषद के स्नातक, शिक्षक या स्थानीय क्षेत्र प्राधिकार के परिणाम से सरकार के स्वास्थ्य पर सीधा असर नहीं पड़ता है, फिर भी यह बहुत हद तक राजनीतिक समीकरण के प्रति विशेष वर्ग के रुझान को बताता है। तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में सत्तारूढ़ और विपक्ष-दोनों गठबंधन के उम्मीदवार थे, लेकिन जीत निर्दलीय की हुई।

खास बात यह है कि सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार दूसरे नम्बर पर भी नहीं रह पाए। उन्हें तीसरा और चौथा स्थान मिला। विधान परिषद की तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र पर बीते चार चुनावों से जदयू का कब्जा था। पिछली बार जीते देवेश चंद्र ठाकुर के सांसद बनने के कारण उपचुनाव हुआ। ताज्जुब की बात यह है कि जदयू उम्मीदवार अभिषेक झा चौथे नम्बर पर चले गए।

उन्होंने उम्मीदवारी की आधिकारिक घोषणा से पहले चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था। देवेश चंद्र ठाकुर के एनडीए के सभी बड़े, मझोले और छोटे नेताओं ने अभिषेक के पक्ष में अपील की। परिणाम पढ़े-लिखे वोटरों का रुझान है। उनके सामने सत्ता और विपक्ष-दोनों विकल्प था। तीसरे को चुना। उसे उप चुनाव का परिणाम कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

जाति काम न आई

राज्य में चुनाव कोई भी हो, जीत की कामना जाति के वोट को आधार बनाकर की जाति है। कभी यह अगड़ा-पिछड़ा भी हो जाता है। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते वंशीधर ब्रजवासी के मामले में जाति के जोर पर जीत की धारणा खत्म हुई। वह सहनी यानी जाति से मल्लाह हैं। प्रथम वरीयता के वोटों को देखें तो यही कहा जा सकता है कि इन्हें कम या अधिक सभी जातियों का वोट मिला।

उन्हें सहानुभूति का लाभ मिला।वह शिक्षकों के लिए संघर्ष करने के दौरान सेवा से बर्खास्त हुए थे। अब वे उच्च सदन में उस व्यवस्था से आंख मिलाकर बात करेंगे, जिसके कारण उन्हें नौकरी गंवानी पड़ी थी। उन्होंने इस चुनाव में धनबल के प्रवाह को भी पराजित किया। उनके चुनावी खर्च वोटरों ने उठाए।

तीसरा-चौथा स्थान

मुख्य विपक्षी दल राजद के गोपी किशन को तीसरा और जदयू के अभिषेक झा को चौथा स्थान मिला।राजद को अपने माय समीकरण के अलावा उम्मीदवार की जाति के नाम पर वैश्य वोटरों का भरोसा था।

उधर, अभिषेक को सत्तारूढ़ दल और खास कर एनडीए के आधार वोटरों से उम्मीद थी। दोनों को निराशा ही हाथ लगी। पहले चुनाव में ही बड़ा धक्का लग गया।

जन सुराज की इज्जत बची

इस चुनाव में जन सुराज का कुछ भी दांव पर नहीं लगा था। अव्वल तो जन सुराज ने विधायकों-सांसदों के खानदान से उम्मीदवार न बनाने के अपने संकल्प को तिरहुत के उप चुनाव में तोड़ा। उसके उम्मीदवार डॉ. विनायक गौतम के पिता रामकुमार सिंह विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं।

उनके नाना स्व. रघुनाथ पांडेय कांग्रेस के विधायक और मंत्री थे। एक डॉक्टर के नाते उनकी अपनी भी पहचान और प्रतिष्ठा है। वह दूसरे स्थान पर रहे। हां, जन सुराज के लिए संतोष की बात यह है कि उसके उम्मीदवार को राजद और जदयू से अधिक वोट मिला।

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