
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के बयान पर विपक्षी दलों ने निशाना साधना शुरू कर दिया है। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि भाजपा के सदस्य अब सुप्रीम कोर्ट को धमकाने लगे हैं। वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बीच निशिकांत दुबे ने शनिवार को कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए।
हैदराबाद। हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के बयान की आलोचना की। ओवैसी ने आरोप लगाया कि भाजपा के सदस्य इतने कट्टरपंथी हो चुके हैं कि वे अब न्यायपालिका को धार्मिक युद्ध की धमकी देने लगे हैं।
भाजपा के लोग ट्यूबलाइट हैं
ओवैसी ने भाजपा का मजाक उड़ाया और कहा, "आप लोग (भाजपा) ट्यूबलाइट हैं। इस तरह से अदालत को धमका रहे हैं। क्या आपको पता है कि अनुच्छेद 142 क्या है? इसे बीआर आंबेडकर ने बनाया है।"
झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश पर विवादस्पद टिप्पणी की। ओवैसी की प्रतिक्रिया इन्हीं भाजपा नेताओं के बयान के बाद आई है। दिनेश शर्मा ने कहा कि कोई भी राष्ट्रपति को चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं।
निशिकांत दुबे ने क्या आरोप लगाया
निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया कि सर्वोच्च न्यायालय 'धार्मिक युद्धों को भड़का रहा है'। उन्होंने आगे कहा कि अगर सर्वोच्च न्यायालय को कानून बनाना है तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए।
संसद और विधानसभा को बंद कर देना चाहिए
एएनआई से बातचीत में निशिकांत ने कहा, "शीर्ष अदालत का केवल एक ही उद्देश्य है; 'मुझे चेहरा दिखाओ और मैं तुम्हें कानून दिखाऊंगा'। सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से परे जा रहा है। अगर किसी को हर चीज के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।"
समलैंगिकता मामले का किया जिक्र
निशिकांत दुबे ने पिछले अदालती निर्णयों का भी जिक्र किया और कहा, "अनुच्छेद 377 था। इसमें समलैंगिकता को अपराध माना गया था। ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि इस दुनिया में केवल दो लिंग हैं... पुरुष और स्त्री। हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन और सिख सभी मानते हैं कि समलैंगिकता एक अपराध है।
एक सुबह, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले को खत्म करते हैं... अनुच्छेद 141 कहता है कि हम जो कानून बनाते हैं, जो फैसले देते हैं, वे निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लागू होते हैं। अनुच्छेद 368 कहता है कि संसद के पास सभी कानून बनाने का अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट के पास कानून की व्याख्या करने की ताकत है।
भाजपा सांसद ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपाल से पूछ रहा है कि वे बताएं कि उन्हें विधेयकों के संबंध में क्या करना है? जब राम मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि या ज्ञानवापी का मुद्दा उठता है तो आप (सुप्रीम कोर्ट) कहते हैं, 'हमें कागज दिखाओ'। मुगलों के आने के बाद जो मस्जिद बनी है, उनके लिए कहो कागज कहां से दिखाओ।"
आप संसद को निर्देश देंगे?
शिकांत दुबे का आरोप है कि शीर्ष अदालत इस देश को 'अराजकता' की ओर ले जाना चाहता है। उन्होंने कहा, "आप नियुक्ति प्राधिकारी को कैसे निर्देश दे सकते हैं? राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। संसद इस देश का कानून बनाती है।
आप उस संसद को निर्देश देंगे? आपने नया कानून कैसे बना दिया? किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना है? इसका मतलब है कि आप इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं। जब संसद बैठेगी तो इस पर विस्तार से चर्चा होगी
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