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Sankashti Chaturthi 2024: हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी आज, प्रिय भोग से लेकर पूजन विधि तक, नोट करें संपूर्ण जानकारी

हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी का शास्त्रों में खास महत्व है। संकष्टी का अर्थ है- समस्याओं से मुक्ति। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को रखने से भगवान गणेश जीवन की सभी मुश्किलों को दूर करते हैं। साथ ही उनका आशीर्वाद सदैव के लिए प्राप्त होता है तो आइए इस दिन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानते हैं -

 हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी का हिंदू धर्म में बहुत बड़ा महत्व है। यह दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित है। इस पवित्र दिन पर भक्त उपवास रखते हैं और विधिवत सभी पूजा नियमों का पालन करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार चतुर्थी भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष के दौरान यानी आज 22 अगस्त, 2024 को मनाई जा रही है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी मुरादें पूर्ण होती हैं।

हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी की पूजन विधि 

ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ कपड़े धारण करें। एक चौकी को साफ करें और उसपर भगवान् गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान को गंगाजल से स्नान करवाएं। सिंदूर, चंदन का तिलक लगाएं। पीले फूलों की माला और पुष्प अर्पित करें। मोदक और घर पर बनी अन्य चीजों का भोग लगाएं। देसी घी का दीपक जलाएं। वैदिक मंत्रों का जाप करें। संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ समाप्त कर आरती करें।

व्रती अगले दिन भगवान गणेश को चढ़ाए गए प्रसाद से अपना व्रत खोलें। इसके साथ ही बप्पा की पूजा में तुलसी पत्र का प्रयोग गलती से भी न करें। पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें। व्रती तामसिक चीजों से परहेज करें। व्रती किसी के बारे में बुरा बोलने से बचें।

हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी पूजन समय

हिंदू पंचांग के अनुसार, तिथि पर शिववास योग का निर्माण दोपहर 01 बजकर 47 मिनट पर रहा है। इसके साथ ही विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 33 मिनट से 03 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। वहीं, गोधूलि मुहूर्त शाम 06 बजकर 53 मिनट से 07 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। इस दौरान आप बप्पा की पूजा कर सकते हैं।

हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी पूजन मंत्र 

1. ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा

2. गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥

3. महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

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