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Ajmer Sex Scandal में 32 साल बाद इंसाफ, ब्‍लैकमेल कर 100 से ज्‍यादा लड़कियों संग गैंगरेप; छह दोषियों को उम्रकैद

Ajmer sex scandal स्‍कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली 100 से ज्‍यादा छात्राओं से गैंगरेप और उनकी न्यूड फोटो सर्कुलेट हुईं तो राज्‍य में तहलका मच गया था। कई लड़कियों ने बदनामी के डर से सुसाइड कर ली थी। पुलिस प्रशासन कार्रवाई करने से डर रहा था तब उस वक्‍त के मुख्‍यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए मामले की जांच सीआईडी-सीबी को सौंपी थी।  अजमेर में आज से 32 साल पहले हुए देश के सबसे बड़े सेक्स स्कैंडल कांड के छह दोषियों को जिला अदालत ने मंगलवार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। दोषियों पर पांच-पांच लाख का जुर्माना भी लगाया है।

साल 1992 में स्‍कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली 100 से ज्‍यादा छात्राओं से गैंगरेप और उनकी न्यूड फोटो सर्कुलेट होने पर तहलका मच गया था। कई लड़कियों ने बदनामी के डर से सुसाइड कर ली थी। इसके बाद उस वक्त की भैरोसिंह सरकार ने इस मामले की जांच सीआईडी-सीबी को सौंपी थी।

अजमेर केस में कितने आरोपी थे?

अजमेर गैंगरेप और ब्लैकमेल कांड में इससे पहले अदालत ने 60 वर्षीय सैयद जमीर हुसैन, 55 वर्षीय नसीम उर्फ टार्जन, 55 वर्षीय सलीम चिश्ती, 54 वर्षीय नफीस चिश्ती, 53 वर्षीय सोहेल गनी, 52 वर्षीय इकबाल खान को उम्रकैद की सजा सुनाई। दोषियों को सजा स्‍पेशल पॉक्‍सो एक्‍ट कोर्ट ने सुनाई है। इस दौरान सभी आरोपी अदालत में मौजूद थे।

स्‍कैंडल के वक्त इन सभी आरोपियों की उम्र 20 से 28 साल के आसपास थी। इस मामले में कुल 18 आरोपी थे, जिनमें से चार पहले ही सजा भुगत चुके और चार को कोर्ट ने बरी कर दिया था। एक ने केस के दौरान 30 साल पहले सुसाइड कर ली थी। दो पर अभी केस चल रहा है और एक आरोपी फरार है।

अजमेर सेक्स स्कैंडल कांड क्या था?

1990 से 1992 की बात है। अजमेर के रसूखदार रईसजादों ने अलग-अलग स्कूल कॉलेजों में पढ़ने वाली 17 से 20 साल की  100 अधिक छात्राओं को तरह-तरह से जाल में फंसाया। उनकी न्‍यूड फोटो खींची। फिर ब्लैकमेल कर कई-कई बार उनका गैंगरेप किया गया था।

कैसे सकुर्लेट हुई न्यूड फोटो?

सेक्स स्कैंडल कांड में शामिल दोषी लड़कियों की न्‍यूड फोटो के नेगेटिव व हार्ड कॉपी निकलवाने के लिए फोटो स्टूडियो/ प्रिंटिंग प्रेस जाते थे। इन दुकान पर काम करने वाले लड़कों को लालच आ गया। उन्होंने न्यूड फोटोज की सैकड़ों कॉपी छापकर बाजार में बेच दीं। खुद भी फोटो दिखाकर ब्लैकमेल किया और फोटो खरीदने वालों ने भी

कुछ पीड़िताएं अपनों को अपनी आपबीती सुनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं तो कुछ ने सुनाई, लेकिन अपनों ने आरोपियों के रसूख को देखते हुए मुंह बंद करने की सलाह दी। कुछ परिवार पुलिस तक पहुंचे, लेकिन पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया। जब बदनामी के डर से पीड़िताओं ने सुसाइड करनी शुरू कर दी। तब प्रशासन की नींद खुली। छह से ज्यादा  पीड़िताओं ने सुसाइड कर ली थी।

कैसे हुआ था मामले का खुलासा?

एक स्थानीय समाचार पत्र के रिपोर्टर संतोष गुप्ता ने छात्राओं के न्‍यूड फोटो खींच ब्लैकमेल करने और यौन शोषण करने के मामला का खुलासा किया था। 'बड़े लोगों की पुत्रियां ब्लैकमेल का शिकार' इस हेडिंग से छपी खबर ने लोगों को झकझोर दिया था।

पुलिस-प्रशासन में भूचाल आया गया। सरकार और सामाजिक धार्मिक नगर सेवा संगठन जुड़े लोग सन्‍न रह गए। उस वक्त भले ही सोशल मीडिया नहीं था, लेकिन खबर आग की तरह फैल गई थी।

अजमेर शरीफ दरगाह के खुद्दाम-ए-ख्वाजा परिवार के युवा भी शामिल

अजमेर की शान और पहचान में पर दाग लगने से पहले पुलिस प्रशासन की गोपनीय जांच में यह बात सामने आई थी कि इस गिरोह में अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खुद्दाम-ए-ख्वाजा यानी खादिम परिवारों के कई युवा रईसजादे भी शामिल हैं। इतना ही नहीं, वे युवा कांग्रेस वर्चस्व रखते हैं और आर्थिक रूप से संपन्न भी हैं। उस वक्त पुलिस ने भी खुद को बेबस महसूस किया था। 

सीएम ने कहा- एक्‍शन लो, फिर भी बुत बनी रही पुलिस

जिला प्रशासन यह जानता था कि इस मामले में जब तक पीड़िताएं सामने नहीं आती हैं, तब तक किसी पर भी हाथ डाला तो शहर की शांति और कानून व्यवस्था के सही नहीं होगा। अगर शांति बनी भी रही तो शहर के कई प्रतिष्ठित परिवारों की बच्चियां प्रभावित होंगी। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी या उच्च पदस्थ राजनीति जनप्रतिनिधि के तार जुड़े होने की भी आशंका थी। ऐसे में जिला पुलिस प्रशासन ने इस मामले से मुख्यमंत्री को अवगत कराया

उस वक्त राज्य में भाजपा की सरकार थी और भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री थे। भैरोंसिंह शेखावत ने कार्रवाई करने के आदेश दिए। साथ ही हिदायत दी कि शहर में शांति और कानून व्यवस्था न बिगड़े और अपराधियों को नहीं छोड़ने के स्पष्ट संकेत भी दिए। इसके बाद भी पुलिस किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाई। इस कारण आरोपियों को सबूत मिटाने और शहर से भाग जाने का मौका मिल गया।

मामले पर एक के बाद एक छपती रहीं खबरें

खबर छपने के 15 दिन बाद भी जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो संतोष गुप्‍ता ने दूसरी रिपोर्ट - 'छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?' हेडिंग से छापी। इस खबर के साथ छात्रों के न्‍यूड फोटो भी छापे गए। इसके बाद राज्‍य में तहलका मच गया। अगले दिन यानी तीसरी रिपोर्ट - 'सीआईडी ने पांच माह पहले ही दे दी थी सूचना!' शीर्षक से छपी। चौथी रिपोर्ट में एक मंत्री के बयान पर लिखी गई थी - 'गृहमंत्री ने डेढ़ माह पहले ही देख लिए थे अश्लील छाया चित्र'।

 पुलिस ने कहा था- लड़कियों का चरित्र संदिग्ध

आखिर में जनता ने सड़कों पर उतरकर अजमेर बंद का एलान किया। शहर के नागरिक अधिकारों को लेकर जागरूक संगठन  दरिंदों को सजा दिलाने के लिए सक्रिय हुए।

पुलिस पर दबाव बना तो 3 मई 1992 को तत्कालीन उप-अधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा ने मामला दर्ज कर लिया गया है। साथ ही उन्होंने मौखिक आदेश देकर गोपनीय जांच करने को कहा। गोपनीय जांच में सच्चाई सामने आई तो दरिंदों के रसूख को देखते हुए मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश भी हुई।

भैरोसिंह ने दिए जांच के आदेश

तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने प्रेस कांफ्रेस कर कहा- 'जिन लड़कियों के साथ यौन शोषण के तस्‍वीरें मिली हैं, पुलिस ने उनकी तहकीकात में पाया कि उनका चरित्र ही संदिग्ध है।'

इसके बयान पर राज्‍य में बवाल मच गया। भैरोंसिंह शेखावत की कुर्सी पर बन आई तो उन्होंने 30 मई 1992 को सीआईडी -सीबी को मामले की जांच के आदेश दिए

18 पर दर्ज हुआ मामला

जांच शुरू हुई तो ब्‍लैकमेल कर गैंगरेप करने वाले गिरोह में... 

  1. फारूक चिश्ती (युवा कांग्रेस का शहर अध्यक्ष व दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार से)
  2. नफीस चिश्ती (युवा कांग्रेस का शहर उपाध्यक्ष)
  3. अनवर चिश्ती (संयुक्त सचिव)
  4. अलमास महाराज (पूर्व कांग्रेस विधायक का नजदीकी रिश्तेदार, यह फरार है)
  5. इशरत अली
  6. इकबाल खान
  7. सलीम चिश्ती
  8. जमीर हुसैन
  9. सोहेल गनी
  10. मोईजुल्‍लाह पुत्तन इलाहाबादी
  11. नसीम अहमद उर्फ टार्जन
  12. परवेज अंसारी (बरी)
  13. मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना
  14. कैलाश सोनी (बरी)
  15. महेश लुधानी (बरी)
  16. पुरुषोत्तम उर्फ बबली
  17. हरीश तोलानी (बरी)
  18. जुहूर चिश्‍ती 

जरा लंबी है इंसाफ की डगर!

  • पीड़िताओं से आरोपियों की पहचान कराई गई। 
  • 30 नवंबर 1992 को अजमेर कोर्ट में पहली चार्जशीट दायर हुई, जिसमें सभी 18 आरोपियों के नाम थे।
  • 1994 में आरोपी पुरुषोत्तम जमानत पर बाहर आया और आत्महत्या कर ली।
  • 18 मई 1998 को फास्ट ट्रैक कोर्ट ने पहला फैसला सुनाया। सभी को उम्रकैद की सजा दी।
  • 20 जुलाई 2001 हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया, जिसमें 4 को बरी कर दिया गया।
  •  19 दिसंबर 2003 को सुप्रीम कोर्ट ने चार दोषियों की उम्रकैद की सजा को 10 साल कर दिया।
  • 20 अगस्त 2024 यानी स्‍पेशल पॉक्‍सो एक्‍ट कोर्ट (जिला अदालत) ने को छह दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
  • मामले में आरोपी जहूर चिश्ती पर फैसला लंबित है।
  • फारुख चिश्ती 2013 में भुगती हुई सजा पर रिहा हुआ।
  • अलमास महाराज फरार है, उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया जा चुका है।