नागा संन्यासी अखाड़ों के योद्धा होते हैं जो जरूरत पड़ने पर मरने-मारने में पीछे नहीं रहते। नागा संन्यासी बनने के लिए शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट व धर्म के प्रति कुछ कर दिखाने की अदम्य इच्छाशक्ति होना जरूरी है। नागा संन्यासी को 24 घंटे में एक बार सात्विक भोजन करना होता है। सिर्फ सात घरों में भिक्षा मांगने की छूट है।
प्रयागराज। रौबदार चेहरा, कड़क आवाज, तन पर धूनी और मन अनुशासित। यह खूबी है अखाड़ों के नागा संन्यासियों की। उनकी अपनी दुनिया है, जो उन्हें अन्य संतों से अलग करती है। सुख-सुविधाओं से इनका वास्ता नहीं। त्याग, तपस्या व धर्म के प्रति समर्पण का भाव नागा संन्यासियों की पहचान है।
सनातन धर्म पर जब-जब आंच आयी तब-तब धर्मयोद्धा के रूप में शस्त्र उठाने से पीछे नहीं रहे। कुंभ-महाकुंभ में नागा संन्यासी हर किसी के कौतूहल का केंद्र रहते हैं। 13 में से छह शैव अखाड़ों जूना, निरंजनी, श्री महानिर्वाणी, आवाहन, आनंद व अटल अखाड़ा में नागा संन्यासी दीक्षित किए जाते हैं।
नागा को हर समय निर्वस्त्र रहना पड़ता है
शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट व धर्म के प्रति कुछ कर दिखाने की अदम्य इच्छाशक्ति जिनमें होती है, उन्हें ही नागा संन्यास की दीक्षा दी जाती है। कड़ाके की ठंड हो अथवा प्रचंड गर्मी, नागा को हर समय निर्वस्त्र रहना पड़ता है। ये कुंभ व महाकुंभ के समय प्रकट होते हैं।
इसके बाद आमजन के बीच से दूर होकर पहाड़ी क्षेत्रों में प्रवास करके भजन-पूजन में लीन रहते हैं। अधिकतर नागा संन्यासी नर्मदा तट, उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में प्रवास करते हैं। वहीं, जिन्हें अखाड़ों की व्यवस्था संभालनी होती है, उन्हें वस्त्र धारण करवा दिया जाता है
आदि शंकराचार्य ने बनाए अखाड़े
सनातन धर्म की रक्षा के लिए आदि शंकराचार्य ने अखाड़ों की स्थापना की। अखाड़ों ने ऐसे लोगों को संन्यास दिया जो जरूरत पड़ने पर शस्त्र उठा सकें। दीक्षा लेने वालों ने भैरव स्वरूप की अविछिन्न शक्ति भैरवी दुर्गा का आह्वान कर उनके प्रतीक भालों की स्थापना की। उन्हें शस्त्र संचालन का प्रशिक्षण दिया गया। नागा संन्यासी को 24 घंटे में एक बार सात्विक भोजन करना होता है। सिर्फ सात घरों में भिक्षा मांगने की छूट है। इतने घरों में भिक्षा न मिले तो भूखे रहना पड़ता है।
डॉक्टर, इंजीनियर भी बनते हैं नागा
नागा संन्यास में पढ़ाई का महत्व नहीं है। इसके बावजूद डॉक्टर, इंजीनियर भी नागा संन्यास की दीक्षा लेते हैं। श्री निरंजनी अखाड़ा के नागा संन्यासी ओंकार गिरि ने एमटेक, रामरतन गिरि ने एमटेक, कमल पुरी ने एमएड, आदित्यानंद गिरि ने पीएचडी, मनोज गिरि ने एमएड की पढ़ाई की है।
वहीं, जूना अखाड़ा में देवानंद गिरि ने पीएचडी, माहेश्वर दत्त एमटेक, मोहनानंद पुरी बीएड, हरिश्वरानंद गिरि एमबीए करने के बाद संन्यासी बने। आवाहन अखाड़ा में चेतानंद गिरि व अजय गिरि ने एमटेक, संतेश्वर गिरि ने एमएड की पढ़ाई की है।
अद्भुत होता है श्रृंगार
श्रृंगार के रूप में नागा संन्यासियों के शरीर में भस्म, फूल, तिलक, रुद्राक्ष, अस्त्र-शस्त्र, चिमट, रत्न, जटा, दाढ़ी, पशु चर्म, रोली, चंदन अथवा हल्दी, कुंडल, कड़ा, गंडा-मेखला, कौपीन, डमरू, काजल, पंचकेश, लौह छल्ला, अर्द्धचंद्र सुशोभित होता है।
किस अखाड़े में कितने नागा संन्यासी
- जूना में लगभग 40 हजार
- निरंजनी में लगभग 20 हजार
- श्रीमहानिर्वाणी में लगभग आठ हजार
- आवाहन में लगभग 10 हजार
- आनंद में लगभग 10 हजार
- अटल में लगभग पांच हजार
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