
कैमूर जिले के रामगढ़ में कृषि विभाग द्वारा खरीफ कार्यशाला का आयोजन किया गया। अधिकारियों ने किसानों को वैज्ञानिक तकनीक और जीरो टिलेज विधि से खेती करने की सलाह दी जिससे वे अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं। किसानों को मिट्टी की जांच कराने और जैविक खेती को अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया जिससे पर्यावरण और उत्पादकता दोनों को लाभ होगा।
रामगढ़। बिहार के कैमूर जिले में रामगढ़ प्रखंड कार्यालय स्थित ई किसान भवन के सभागार में शनिवार को खरीफ कार्यशाला सह महाअभियान कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम का उद्घाटन प्रभारी शिवजी कुमार, प्रखंड प्रमुख संतोष कुमार और उपपरियोजना निदेशक नवीन कुमार सिंह ने दीप प्रज्वलित कर किया।
अध्यक्षता प्रखंड कृषि पदाधिकारी मृत्युंजय कुमार सिंह ने की, जबकि संचालन समन्वयक जितेन्द्र कुमार सिंह ने किया।
प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी ने किसानों को वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित खेती करने का महत्व बताया और कहा कि इस विधि से उनकी आमदनी दोगुनी हो सकती है।
उन्होंने किसानों को धान के अधिक उत्पादन का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि इस समय बिचड़ा डालने का उचित समय है और कृषि विभाग द्वारा किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले धान के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार सिंह ने खरीफ फसल की खेती के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।
उन्होंने मौसम के बदलते परिवेश में धान की सीधी जीरो टिल से बोआई, जैविक खेती, मिट्टी स्वास्थ्य, संरक्षण एवं उर्वरक के उपयोग के बारे में विस्तार से बताया।
जीरो टिलेज तकनीक के माध्यम से धान की बोआई करने की सलाह दी गई, जिससे 20 प्रतिशत जल और श्रम की बचत होती है।
उन्होंने बताया कि सही विधि और समय से बोआई करने पर जीरो टिलेज तकनीक से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है और उत्पादन लागत में कमी आती है।
संकर धान की खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रही है, जो दो विभिन्न प्रभेदों के संकरण से विकसित होती है।
किसानों की दी गई सलाह
किसानों को सलाह दी गई कि वे तीन वर्ष में एक बार खेत की मिट्टी की जांच अवश्य कराएं, जिससे संतुलित मात्रा में उर्वरक का उपयोग किया जा सके।
रासायनिक खाद के उपयोग से खेत की उर्वरा शक्ति में कमी आ रही है, इसलिए जैविक खेती की आवश्यकता पर बल दिया गया। जैविक खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि गोबर, कंपोस्ट, जीवाणु खाद आदि का प्रयोग किया जाता है।
इसे न केवल पर्यावरण को लाभ होता है, बल्कि उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। इस अवसर पर वैज्ञानिक नीरज कुमार, आत्मा के अध्यक्ष अनिल कुमार सिंह, और अन्य ने इस विषय पर अपने विचार साझा किए। कार्यक्रम के अंतर्गत प्रखंड के नौ स्थानों पर किसानों को खरीफ फसलों की बोआई की जानकारी दी गई।
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