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डीआरडीओ ने जवानों के लिए एंटी-माइन और एंटी-स्पाइक बूट विकसित किए हैं। एंटी-माइन बूट 125 किलोग्राम तक के वजन के माइन के विस्फोट से भी जवानों को सुरक्षित रखेंगे। वहीं एंटी-स्पाइक बूट जंगल में मिट्टी में छिपी नुकीली कीलों और जहरीले कीड़ों से जवानों की रक्षा करेंगे। डीएमएसआरडीई के तीन साल तक चले शोध के बाद इन्हें तैयार किया है।

कानपुर। देश की सीमा से सटे इलाकों में दुश्मन की घुसपैठ रोकने के लिए होने वाली पेट्रोलिंग या फिर दुश्मन के क्षेत्र में किसी ऑपरेशन के दौरान जवानों के लिए खतरा बनने वाली लैंडमाइंस भविष्य में जवानों का रास्ता नहीं रोक पाएंगी।

भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की इकाई रक्षा सामग्री एवं भंडार अनुसंधान एवं विकास स्थापना (DMSRDE) द्वारा तैयार बूट पहने जवान का पैर माइन पर पड़ने पर विस्फोट तो होगा पर जवान को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा पाएगी।

यही नहीं नक्सल प्रभावित इलाकों के घने जंगलों में गस्त करने के दौरान अर्द्धसैनिक बलों के जवान एंटी स्पाइक बूट पहन कर मिट्टी में छिपी कीले या फिर जहरीले कीड़ों से बेफिक्र रहेंगे।

दुश्मन के इलाके में घुसने पर सेना की इंफेंट्री बटालियन के सामने सबसे बड़ी चुनौती जवानों को लैंडमाइंस से बचाने की रहती है। अक्सर दुश्मनों द्वारा बिछाई गई माइंस में ब्लास्ट होने पर जवानों की जान चली जाती या फिर वह अपने पैर गंवा बैठते।

डीएमएसआरडीई के तीन साल तक चले शोध के बाद तैयार एंटी माइन बूट पहनने पर 125 किग्रा तक के वजन के माइन के विस्फोट होने पर जवान की जान को खतरा नहीं होगा उनके पैर भी सुरक्षित हो

दरअसल एंटी माइन में विस्फोट होने पर औसतन 42 हजार किग्रा प्रति सेमी स्क्वायर का उच्च दबाव पैदा होता है। ये बूट विस्फोटक का अत्यधिक दबाव 160 गुणा तक कम कर देता है, इस कारण से माइन तो फटेगा लेकिन जवानों को शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचेगा। तीन किग्रा के ये बूट कई प्रकार के हल्के सिरेमिक पोरस और एरामिड के हाइब्रिड भाग को मिलाकर बनाए गए हैं। जवान इसे पहनने के बाद थकान भी महसूस नहीं कर सकेंगे। बूट का सीआरपीएफ के द्वारा परीक्षण किया जा चुका है।

शोध करने वाली टीम ने एंटी स्पाइक बूट भी तैयार किया है जो जंंगल में मिट्टी में छिपीं नुकीली कीलों और जहरीले कीड़ों से जवानों को सुरक्षित रखता है। जूते का भार एक किलो है।

जूते के तल पर शीयर थिकनिंग जेल और अन्य फाइबर की परत लगाई गई है। जो सोल में कील के आरपार होने से बचाती हैं। इसका भी परीक्षण भी सफल रहा। जल्द ही बूट बनाने की तकनीक रक्षा क्षेत्र की कंपनियों को हस्तांतरित की जाएगी। तकनीक हासिल करने वाली कंपनी सेना से आर्डर के अनुसार उत्पादन कार्य शुरू कर सकेगी।

डीआरडीओ की इकाई डीएमएसआरडीई ने सर्वाधिक अनुसंधान व विकास करके टेक्नोलाजी उद्योगों को दिया है। एंटी स्पाइक और एंटी माइन बूट पर सफल अनुसंधान संस्थान की उपलब्धि है।

- डॉ. मयंक द्विवेदी, निदेशक, डीएमएसआरडीई।