
झारखंड सरकार ने तीन साल बाद रिजर्व बैंक से एक हजार करोड़ रुपये का ऋण मांगा है। यह राशि किसी योजना के लिए नहीं बल्कि तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस्तेमाल की जाएगी। राज्य सरकार की ओर से वित्त विभाग के सचिव प्रशांत कुमार ने रिजर्व बैंक को पत्र लिखकर राशि की मांग की है। अपने पत्र में एक बार फिर ओपन मार्केट बारोइंग का विकल्प चुना है।
रांची। तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए राज्य सरकार ने रिजर्व बैंक से एक हजार करोड़ रुपये का ऋण उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। इस राशि का प्रयोग किसी योजना के लिए नहीं, बल्कि तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने में किया जाएगा।
राज्य सरकार ने अपने पत्र में एक बार फिर ओपन मार्केट बारोइंग (खुले बाजार से कर्ज) का विकल्प चुनाव है। फिलहाल एक हजार करोड़ रुपये की मांग की गई है जो किसी योजना से संबंधित नहीं है, बल्कि अचानक आनेवाली किसी जरूरत को पूरा करने में इस्तेमाल होगी।
योजनाओं को पूरा करने के लिए ऋण की जरूरत नहीं
झारखंड में वित्तीय वर्ष 2024-25 में 1.36 लाख करोड़ रुपये का बजट बनाया गया था और सरकार का अब तक दावा यही रहा है कि योजनाओं को पूरा करने के लिए कहीं से कोई ऋण नहीं लिया जाएगा। योजनाओं के लिए सरकार अपने संसाधनों से उपाय करने की बातें करती रही है।
क्यों मांगा गया ऋण?
इस बीच, वित्तीय वर्ष के 11 माह पूरे भी हो गए हैं और अभी तक राज्य सरकार के सामने कोई अर्थसंकट नहीं आया है। परिस्थितयां सामान्य रहीं तो आगे भी राज्य सरकार को कहीं से ऋण लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। बहरहाल, जो ऋण की मांग गई है वह अचानक आनेवाली जरूरतों को पूरा करने के लिए मांगी गई है।
राज्य सरकार की ओर से वित्त विभाग के सचिव प्रशांत कुमार ने रिजर्व बैंक को पत्र लिखकर राशि की मांग की है। केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए निर्धारित कर रखा है कि वे अपने ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट के हिसाब से 3.5 फीसदी तक कर्ज ले सकते हैं। इस प्रकार झारखंड 14 हजार करोड़ रुपये तक कर्ज ले सकता है।
स्कूलों में एलपीजी सिलेंडर और चूल्हा की उपलब्धता की मांगी जानकारी
पीएम पोषण (मध्याह्न भोजन) योजना के तहत सभी स्कूलों में एलपीजी सिलेंडर और चूल्हा उपलब्ध कराए गए हैं। अभी भी कई स्कूलों में इसकी उपलब्धता नहीं है।
ऐसे स्कूलों में एलपीजी सिलेंडर और चूल्हा उपलब्ध कराने के लिए प्राथमिक शिक्षा निदेशक सह झारखंड मध्याह्न भोजन प्राधिकरण के निदेशक शशि रंजन ने सभी जिलों के जिला शिक्षा अधीक्षकों से ऐसे स्कूलों की सूची मांगी है। उन्होंने बकायदा इसका फारमेट भी जारी किया है।
उन्होंने कहा है कि पूर्व में जिन स्कूलों को एलपीजी सिलेंडर और चूल्हा के क्रय के लिए राशि नहीं दी गई या वर्तमान में वैध कारणों से इसकी उपलब्धता नहीं है तो उसका आकलन कर रिपोर्ट दें।
उनके अनुसार, बाद में इसके लिए राशि उपलब्ध नहीं कराई जाएगी। सभी जिलों से रिपोर्ट मिलने के बाद इसके लिए राशि की मांग केंद्र से की जाएगी। इसे लेकर पैब की होनेवाली बैठक में इसका प्रस्ताव रखा जा सकता है।
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