
ग्राम पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने की तैयारी है। स्वयं के संसाधनों से ग्राम पंचायतों के राजस्व में इजाफा करने का प्लान बनाया गया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी ने अपनी रिपोर्ट पंचायतीराज मंत्रालय को सौंपी है। रिपोर्ट में प्रॉपर्टी टैक्स की वसूली का अधिकार सभी ग्राम पंचायतों को देने पर जोर दिया गया है। तालाबों में मछली पालन का अधिकार भी ग्राम पंचायतों को देना होगा।
शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों पर आबादी का बोझ तो अधिक है, लेकिन वित्तीय स्थिति या अधिकारों की बात करें तो ग्रामीण निकाय हाशिए पर पड़े हैं। अब जब विकसित भारत के लिए आत्मनिर्भर गांवों की आवश्यकता पर बल दिया जाता है तो इस पर वृहद अध्ययन कर विशेषज्ञों ने भी वह राह दिखाने का प्रयास किया है, जिस पर चलकर इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
चूंकि, पंचायतीराज मंत्रालय सभी राज्यों में ग्राम पंचायतों का स्वयं के संसाधनों से राजस्व (ओएसआर) बढ़ाने के लिए ''मॉडल'' देना चाहता है, इसके लिए विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि ग्राम पंचायतों को संपत्ति कर और लाइसेंस शुल्क वसूली जैसे अधिकार देने होंगे।
कानून में करना होगा बदलाव
संबंधित कानूनों में बदलाव भी करने होंगे। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि संपत्ति कर वसूली का अधिकार यदि सभी राज्य ग्राम पंचायतों को सौंप दें तो उनके राजस्व में काफी वृद्धि हो सकती है। सुझाव दिया है कि संपत्ति कर के आकलन के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तय कर राज्य ग्राम पंचायतों को उसकी वसूली के अधिकार दें।
इसके लिए कर्नाटक के मॉडल से सीख ली जा सकती है। यूं तो इन व्यवस्थाओं को लागू करने के लिए विशेषज्ञ या प्रशिक्षित कर्मचारियों के तंत्र की आवश्यकता है, लेकिन तब तक वैकल्पिक रूप से ग्राम पंचायत क्षेत्र में टैक्स और यूजर चार्ज की वसूली के लिए स्पष्ट आदेश जारी किए जा सकते हैं, जिसके आधार पर कर्मचारी काम शुरू कर सकें।
तालाबों में मछली पालन और सिंचाई का नियंत्रण ग्राम पंचायतों को मिले
विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया है कि स्थानीय सेवाओं के संचालन का नियंत्रण ग्राम पंचायतों को दिया जाना चाहिए, जिस तरह पश्चिम बंगाल में पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट और महाराष्ट्र में ग्रामीण जलापूर्ति सेवा सौंपकर राजस्व वसूली का अधिकार दिया गया है। इसी तरह तालाबों में मछली पालन, सरकारी भूमि पर पौधरोपण, वन भूमि, लघु सिंचाई परियोजना आदि का नियंत्रण ग्राम पंचायतों को दिया जाना चाहिए। इसके लिए राज्यों को पंचायतीराज के संबंधित नियमों में संशोधन करना होगा।
पंचायती राज कानूनों में संशोधन जरूरी
अध्ययन के दौरान विशेषज्ञों ने पाया कि उत्तर प्रदेश ने ग्रामीण क्षेत्र के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से लाइसेंस शुल्क वसूलने का अधिकार जिला पंचायत को सौंप रखा है, जबकि अन्य राज्यों में यह अधिकार ग्राम पंचायतों को मिला हुआ है। उन्होंने उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में पंचायतीराज कानूनों में संशोधन बहुत आवश्यक बताया है
इसी तरह मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र को भी ट्रेड लाइसेंस फीस के संबंध में नए नियम बनाने की जरूरत बताई है। कहा है कि जिस तरह से पश्चिम बंगाल और आंध प्रदेश ने ट्रेड लाइसेंस के टैरिफ रेट का मानकीकरण किया है, उसी तरह अन्य राज्यों को भी पारदर्शिता बनाने के लिए व्यापार के आकार के अनुसार टैरिफ तय करते हुए दरों को निर्धारित कर देना चाहिए।
इन प्रदेशों से सीखें बाकी राज्य
सभी राज्यों को शहरी निकायों के लिए लागू किए गए लाइसेंसिंग सिस्टम जैसी ही व्यवस्था ग्रामीण निकायों के लिए भी लागू करना चाहिए। इससे पंचायतें आत्मनिर्भर होंगी। ग्राम पंचायतों में लागू बेहतर व्यवस्थाओं के लिए सभी राज्यों को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल से सीख लेने की सलाह दी गई है।
मानव संसाधन में भी करना होगा सुधार
रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने ग्रामीण निकायों में मानव संसाधन को भी मजबूत करने का सुझाव दिया है। कहा है कि हर ग्राम पंचायत में एक सचिव तैनात हो, जबकि वर्तमान एक सचिव के जिम्मे कई-कई ग्राम पंचायतों का भार है। साथ ही टैक्स वसूली, तकनीकी सेवा और राजस्व संबंधी गतिविधियों के लिए विशेषज्ञ कार्मिक की नियुक्ति हो और टैक्स कानून, कर आरोपण व प्रवर्तन में प्रशिक्षित स्टाफ होना चाहिए। प्रदर्शन के आधार पर इन्सेंटिव और प्रोन्नति की व्यवस्था भी करने की सलाह दी गई है।
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