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Delhi EV Policy 2.0 दिल्ली सरकार के सामने ईवी नीति-दो को लागू करने में देरी से राजधानी को ईवी कैपिटल बनाने के लक्ष्य में चुनौती बढ़ रही है। इस नीति में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने बैटरी स्वैपिंग की सुविधा और सब्सिडी जैसे प्रावधान हैं। देरी के कारण लोग इलेक्ट्रिक वाहनों को खरीदने में संकोच कर रहे हैं क्योंकि चार्जिंग की समस्या बाधा बन रही है।

नई दिल्ली। दिल्ली सरकार जिस इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) नीति-दो के दम पर अगले कुछ सालों में दिल्ली को ईवी कैपिटल बनाने की कोशिश कर रही है, इस नीति को लागू करने में हो रही देरी से लक्ष्य को पाने में सरकार के सामने चुनौती बढ़ रही है।

क्या बढ़ेगी ईवी वाहनों की बिक्री?

दरअसल अब ईवी नीति-दो में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर तमाम ऐसे प्रयास किए गए हैं कि जिससे लोग इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर आकर्षित होंगे और ईवी के पंजीकरण में उछाल आएगा। ईवी नीति-दो में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए जरूरत के हिसाब से चार्जिंग स्टेशन से लेकर चार्जिंग की व्यवस्था के तहत बैटरी स्वैप चार्जिंग स्टेशन को बढ़ाने और जरूरत के हिसाब से इन्हें स्थापित करने के प्रस्ताव हैं।

इस व्यवस्था के तहत मात्र पांच मिनट में चालक को चार्ज की हुई बैटरी मिल जाती है। वाहनों के खरीद पर सब्सिडी और छूट देने की तमाम योजनाओं को शामिल किया गया है, दिल्ली की जनता भी इसी उम्मीद के साथ टकटकी लगाए हुए हैं कि जल्द ही यह स्कीम लागू हो जिससे वाहन खरीदने में उन्हें लाभ मिल सके।

क्यों ईवी वाहन नहीं खरीद रहे लोग?

इस नीति को तीन महीने के लिए टाल दिया गया है। यहां बता दें कि इलेक्ट्रिक वाहन आम लोग लोग इसलिए भी नहीं खरीद रहे हैं कि पेट्रोल या सीएनजी वाहन से ये वाहन काफी महंगे पड़ रहे हैं। दिल्ली में दूसरी समस्या चार्जिंग की आ रही है। जिसमें बैटरी स्वैप चार्जिंग के तहत बैटरी अदला बदली करने की प्रणाली काफी महंगी साबित हो रही है

यहां तक कि अगर व्यावसायिक वाहनों की बात करें तो एक ऑटो चालक 200 रुपये की सीएनजी भरा कर दिन भर अपना ऑटो चला लेता है और आसानी से बगैर परेशानी हुए सीएनजी स्टेशन मिल जाता है और कुछ समय तक लाइन में लगने के बाद उसे सीएनजी मिल भी जाती है। जबकि इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में ऐसा नहीं है, इलेक्ट्रिक ऑटो वाले को दिन भर अपना ऑटो चलाने के लिए चार्जिंग में 325 रुपये के करीब खर्च करने पड़ रहे हैं।

चार्जिंग स्टेशनों पर करना होगा फोकस

यहां समस्या व्यावसायिक व सार्वजनिक सेवा वाहनों के लिए चार्जिंग व्यवस्था का पर्याप्त उपलब्ध न होना भी है। इसके अलावा एक वाहन को चार्ज करने में दो से तीन घंटे का समय लगता है। इनकी मानें तो उनके वाहन की 30 पर्सेंट बैटरी शेष रहने के बाद ही चालक यह ढूंढने में लग जाते हैं कि की चार्जिंग स्टेशन कहां है, फिर तीन घंटे चार्जिंग के दौरान खराब होते हैं। इस दौरान उसका काम भी बंद रहता है।

व्यावसायिक या सार्वजनिक सेवा वाहन वालों की समस्या अपने आवास पर वाहन की चार्जिंग व्यवस्था नहीं स्थापित कर पाने को लेकर भी है। दरअसल इस कार्य से जुड़े अनके लोग ऐसे हैं जिनके पास अपने घर नहीं हैं, अगर घर भी हैं तो गलियां इतनी पतली हैं कि वहां उनके वाहन नहीं जा सकते।

सरकार ने 5000 ई-ऑटो उतारने की बनाई थी योजना

दूसरे चार्जिंग के लिए उन्हें बिजली का व्यावसायिक मीटर लगवाना पड़ेगा। घर के लिए लगे मीटर से वे ऐसे वाहन चार्ज नहीं की सकते हैं।

ऐसे में व्यावसायिक या सार्वजनिक सेवा वाहन वाले ईवी को अपनाने में इस तरह संकोच कर रहे हैं कि गत सालों में दिल्ली सरकार ने पांच हजार ई-ऑटो दिल्ली में उतारने की योजना बनाई थी। जिन्हें लेने के लिए केवल 1400 ऑटो चालक ही आगे आए।

जिस पर बचे हुए 3600 ऑटो के सरकार को कंपनियों के नाम परमिट जारी करने पड़े। वाहन चालक अपने वाहन ईवी में बदलना चाहते हैं मगर इस तरह की सामने आ रहीं तमाम समस्याओं के कारण वे अपने वाहन इलेक्ट्रिक में नहीं बदल पा रहे हैं।