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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति में वैसे तो बाहर से सब ठीक ठाक दिखाई दे रहा है लेकिन महायुति के पोस्टरों-बैनरों से उपमुख्यमंत्री अजित पवार का गायब रहना कई सवाल भी खड़े कर रहा है। 23 अक्तूबर को नागपुर में उपमुख्यमंत्री एवं भाजपा उम्मीदवार देवेंद्र फडणवीस ने धूमधाम से अपना नामांकन भरा। मगर इस दौरान राकांपा का झंडा नहीं दिखा।

मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति में वैसे तो बाहर से सब ठीक ठाक दिखाई दे रहा है, लेकिन महायुति के पोस्टरों-बैनरों से उपमुख्यमंत्री अजित पवार का गायब रहना कई सवाल भी खड़े कर रहा है। 23 अक्तूबर को नागपुर में उपमुख्यमंत्री एवं भाजपा उम्मीदवार देवेंद्र फडणवीस ने धूमधाम से अपना नामांकन भरा।

नामांकन से पहले संविधान चौक से कचहरी तक निकाले गए भव्य मोर्चे में भाजपा के साथ महायुति में शामिल दो अन्य दलों शिवसेना (शिंदे) एवं आरपीआई के झंडे भी बड़ी संख्या में लहराते दिखाई दिए, लेकिन राकांपा का कोई झंडा या अजीत पवार का कोई नामोनिशान भी दिखाई नहीं दिया। चूंकि विदर्भ में राकांपा की मौजदूगी पहले भी ना के बराबर ही रही थी, इसलिए माना गया कि नागपुर में अजित पवार को इसीलिए ज्यादा महत्त्व नहीं दिया गया होगा।

बैनर-पोस्टर से अजित पवार गायब

अब चुनाव अभियान के परवान चढ़ने पर पुणे और पश्चिम महाराष्ट्र के अन्य क्षेत्रों में भी महायुति के बैनर-पोस्टर एवं अन्य प्रचार सामग्री पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की ही तस्वीरें दिखाई दे रही हैं। अजीत पवार का चेहरा गायब है। जबकि पश्चिम महाराष्ट्र तो अजित पवार के प्रभाव वाला ही क्षेत्र माना जाता है।

यहां तक कि राज्य सरकार की महत्त्वाकांक्षी मुख्यमंत्री माझी लाड़की बहिन योजना के प्रचार वीडियो से भी अजित पवार गायब दिख रहे हैं, जबकि वित्तमंत्री के रूप में अजित पवार ने भी बजट में इस योजना की घोषणा की थी और इसका श्रेय लेने के लिए उन्होंने गुलाबी रंग की जैकेट और पगड़ी तक पहनना शुरू कर दिया था।

तो अजित के साथ रणनीतिक है गठबंधन

उनके कार्यक्रमों में मंच के बैकड्रॉप तक गुलाबी रंग से बनाए जाने लगे थे। यह राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान कर रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? लोकसभा चुनाव से काफी पहले एक बार भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि शिवसेना के साथ हमारा गठबंधन 25-30 साल से है, और प्राकृतिक है। जबकि अजित पवार के साथ हमारा गठबंधन रणनीतिक है

10 फीसदी टिकट मुस्लिमों को

खुद अजित पवार भी अपने चुनावी भाषणों में कहते सुने जा सकते हैं कि हमने महायुति से गठबंधन करके शाहू, फुले, आंबेडकर की विचारधारा को नहीं छोड़ा है। यह नारा अक्सर दक्षिणपंथ से दूरी बनाकर रखनेवाले दल ही लगाते हैं। इसी प्रकार अजित पवार ने अपनी पार्टी के टिकट बंटवारे में 10 प्रतिशत सीटें मुस्लिम उम्मीदवारों को भी देने की बात कहकर भी एक संदेश देने की कोशिश की थी।

नवाब मलिक का प्रचार नहीं करेगी भाजपा

मुंबई महानगर में दिवंगत बाबा सिद्दीकी के पुत्र जीशान सिद्दीकी, विवादों में घिरे रहे पूर्व मंत्री नवाब मलिक की पुत्री सना मलिक एवं स्वयं नवाब मलिक को टिकट देकर भी अजीत पवार ने एक संदेश देने की कोशिश की है। जबकि भाजपा कह चुकी है कि वह नवाब मलिक का प्रचार नहीं करेगी।

क्या अजित की है कोई खास रणनीति

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महायुति के अंदर ही अजित पवार का यूं कटे-कटे रहना एक रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। क्योंकि एक तरफ महायुति के दूसरे दलों भाजपा और शिवसेना के कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों को अजीत पवार का साथ आना रास नहीं आया है, तो दूसरी ओर राकांपा के भी मतदाता अजित पवार के पूरी तरह भाजपामय हो जाने को अच्छा नहीं मानते।

लोकसभा चुनाव के बाद नागपुर में हुई एक समीक्षा बैठक में भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस यह स्वीकार भी कर चुके हैं कि शिवसेना के वोट तो भाजपा को मिले, लेकिन राकांपा के वोट भाजपा को नहीं मिल सके। संभवतः इसीलिए दोनों दल विधानसभा चुनाव में एक गठबंधन में होते हुए भी अलग-अलग दिखने की रणनीति पर चल रहे हैं। ताकि दोनों दल अपने प्रतिबद्ध मतदाताओं को तो अपने साथ रख सकें।

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