पंचाग के अनुसार देशभर में करवा चौथ का पर्व आज यानी 20 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस त्योहार के आने का सुहागिन महिलाओं को बेसब्री से इंतजार रहता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर विशेष पूजा-अर्चना करती हैं और रात में अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं।
सनातन धर्म में सभी पर्व का विशेष महत्व है। इस प्रकार से कार्तिक माह में पड़ने वाला करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। हर साल इस पर्व को कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष के चौथे दिन मनाया जाता है। आइए इस लेख में हम आपको बताएंगे करवा चौथ के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।
करवा चौथ 2024 शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 20 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 46 मिनट पर हो गई है। वहीं, इसका समापन 21 अक्टूबर को सुबह 04 बजकर 16 मिनट पर होगा। ऐसे में करवा चौथ का व्रत आज यानी 20 अक्टूबर को किया जा रहा है। इस दिन शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहने वाले हैं-
करवा चौथ पूजा मुहूर्त - शाम 05 बजकर 46 मिनट से 07 बजकर 02 मिनट तक
करवा चौथ व्रत समय - सुबह 06 बजकर 25 मिनट से शाम 07 बजकर 54 मिनट पर
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय का समय - शाम 07 बजकर 54 मिनट पर
शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04 बजकर 44 मिनट से 05 बजकर 35 मिनट तक
विजय मुहूर्त - दोपहर 01 बजकर 59 मिनट से 02 बजकर 44 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त - शाम 05 बजकर 46 मिनट से 06 बजकर 11 मिनट तक
करवा चौथ पूजा विधि
करवा चौथ व्रत के दिन स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। प्रभु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें। शुभ मुहूर्त में शिव परिवार की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करें। प्रभु को पुष्प, फल, मिठाई और मेवे समेत आदि चीजें अर्पित करें। संध्याकाल में चौकी लगाकर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर माता पार्वती संग भगवान शिव की मूर्ति विराजमान करें।
पूजा की थाली में सिंदूर, अक्षत, कुमकुम, रोली और करवे में जल भरकर रखें। मां पार्वती को 16 श्रृंगार अर्पित करें। दीपक जलाकर आरती करें। करवा चौथ व्रत की कथा का पाठ करें। छलनी के अंदर चंद्रमा को देखने के बाद चंद्रदेव की पूजा करें और अर्घ्य दें। इसके बाद व्रत का पारण करें।
करवा चौथ पूजा मंत्र
ॐ गणेशाय नमः
ॐ शिवायै नमः
ॐ नमः शिवाय
अर्घ्य देते समय करें इस मंत्र का जप
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥
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