कार्तिक माह में आने वाली संकष्टी चतुर्थी को व्रकतुंड संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस बार यह व्रत करवा चौथ के दिन यानी रविवार 20 अक्टूबर को किया जा रहा है। ऐसे में इस दिन गणेश जी की पूजा के दौरान आरती का पाठ भी जरूर करना चाहिए ताकि आपको पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
वैदिक पंचांग के मुताबिक, हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यह तिथि मुख्य रूप से भगवान गणेश के लिए समर्पित मानी जाती है। इस दिन यदि विधिवत रूप से गणपति की उपासना की जाए, तो इससे साधक को गणेश जी की असीम कृपा की प्राप्ति हो सकती है। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने का विधान है।
संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस बार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 20 अक्टूबर की सुबह 06 बजकर 46 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 21 अक्टूबर 2024 को प्रातः 04 बजकर 16 मिनट पर होने जा रहा है। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी का व्रत रविवार, 20 अक्टूबर को किया जाएगा। साथ ही इस दिन चन्द्रोदय का समय इस प्रकार रहने वाला है -
संकष्टी चतुर्थी के दिन चन्द्रोदय - शाम 07 बजकर 54 मिनट पर
गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
हर माह में मनाए जाने वाली संकष्टी चतुर्थी का दिन गणेश जी की कृपा प्राप्ति के लिए बहुत ही उत्तम माना गया है। ऐसे में आप इस दिन पर गणेश जी की विधि-विधान से पूजा करें और इस दौरान गणेश जी की आरती का पाठ भी जरूर करें। क्योंकि बिना आरती के पूजा-पाठ सम्पूर्ण नहीं माना जाता।
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
व्रकतुंड संकष्टी चतुर्थी पर आप गणेश जी की आरती के साथ-साथ उनके मंत्रों का जप भी कर सकते हैं। इससे भी आपको गणेश जी की कृपा की प्राप्ति हो सकती है। तो चलिए पढ़ते हैं गणेश जी के कुछ प्रभावशाली मंत्र -
गणेश जी के मंत्र
- ॐ गं गणपतये नमः
- गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
- श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥
- ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
- ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
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