जालंधर की रहने वाली मनप्रीत कौर ने अपनी दिव्यांग बेटी के लिए ऑडियो रिकॉर्डिंग करते-करते ग्रेजुएशन पूरी कर ली है। खास बात ये है कि दोनों मां बेटी ने एक साथ ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की है। मनप्रीत की शादी होने की वजह से पढ़ाई बीच में ही रुक गई थी। जानिए उनकी प्रेरणादायक यात्रा के बारे में।
जालंधर। दिव्यांग बेटी की ग्रेजुएशन की पढ़ाई में मदद करने के लिए आडियो रिकार्डिंग करते-करते मां ने भी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ली। दोनों मां-बेटी ने लायलपुर खालसा कालेज फार वूमेन से इकट्ठे ही डिग्री भी हासिल की।
सिविल लाइन में रहने वाले पेंट के कारोबारी सुखविंदर सिंह कालेज में बेटी गुरलीन का ही दाखिला करवाने गए थे, मगर वहां पर प्राचार्य डा. नवजोत के कहने पर पत्नी मनप्रीत कौर का भी दाखिला करवा आए। क्योंकि 1997 में जब उनकी शादी हुई थी, तो मनप्रीत ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही थीं और शादी के बाद अंतिम वर्ष की परीक्षा नहीं दे पाई थी।
इस वजह से कहीं न कहीं मनप्रीत के मन में पढ़ने की इच्छा तो थी। बेटी के लिए उन्होंने भी दाखिले के लिए रजामंदी जाहिर कर दी। मनप्रीत बेटी के लिए शुरुआत से पढ़ाने के लिए आडियो रिकार्डिंग के फार्मूले पर काम कर रही थी।
यही उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए भी जारी रखा। इस बार जिम्मेदारी बेटी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई की भी थी और घर के कामकाज की
इसलिए रोजाना दिनचर्या के कामकाज से फ्री होकर बेटी के साथ कालेज जाना, फिर लौटकर घर के कामकाज देखने, बेटी के सोने के बाद उसके लिए रोज पाठ्यक्रम से जुड़े आडियो मैसेज रिकार्ड करती थी, ताकि जब बेटी कालेज जाने से पहले जल्दी उठकर अपने पाठ्यक्रम को सुनकर याद करे।
तीन साल निरंतर इसी रूटीन को अपनाते-अपनाते बेटी के साथ मनप्रीत ने भी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ली। गुरलीन और उसके माता-पिता का यही कहना है कि परिस्थिति चाहे कितनी भी खराब क्यों न हो, अधंकार के बादलों को केवल शिक्षा की लौ जलाकर ही दूर किया जा सकता है।
'मैं केवल म्यूजिक टीचर के रूप में पहचान नहीं बनाना चाहती थी'
दिव्यांग गुरलीन का कहना है कि अक्सर नेत्रहीन पढ़े लिखों को केवल म्यूजिक टीचर के रूप में देखा व पहचाना जाता है। मगर वह अपनी ऐसी पहचान नहीं बनाना चाहती थी। इसलिए दसवीं तक की पढ़ाई करते-करते ही सोच लिया था कि सिविल सर्वसिस की परीक्षा उत्तीर्ण करनी है, जिससे ही लोग उसे पहचानें। शुरुआत के समय में तो जालंधर से लेकर चंडीगढ़ तक के स्कूलों में पढ़ाई की, मगर वहां पर खुद को अडजस्ट नहीं कर पाई। इसके बाद नार्मल बच्चों के स्कूल में दाखिला करवाया। दसवीं मेयर वर्ल्ड और 12वीं कैंब्रिज स्कूल से उत्तीर्ण की। ग्रेजुएशन की पढ़ाई एलकेसी वूमेन और अब बीएड की पढ़ाई भी उत्तीर्ण कर ली है। इसके साथ-साथ टीचिंग लर्निंग के साथ-साथ सिविल सर्वसिस की परीक्षा दे रही हैं। दो बार परीक्षा दी, मगर कुछ कमियों की वजह से वो क्लीयर नहीं हो पाई। हर प्रतियोगी परीक्षाएं दे रही हूं जिनके लिए एलिजिबल हूं।
बेटी के लिए पहले सीखी ब्रेल लिपी
मनप्रीत कौर कहती हैं कि बेटी के भविष्य को लेकर चिंता तो हर समय ही रहती थी। मगर बेटी दूसरों से कम भी न रह जाए यह भी डर था। बेटी को पढ़ाने के लिए खुद भी ब्रेल लिपी सीखी। बेटी की बेहतरी के लिए जिस किसी ने भी कोई अच्छा स्कूल बताया, वहां पढ़ाने के लिए ले गए। मगर उसकी प्रोग्रेस नहीं आ रही थी। जिसके बाद फैसला लिया कि वह नार्मल बच्चों के साथ ही स्कूल में पढ़ाया।
बेटी के लिए हर जगह माथा टेका, फिर इसे ही रब की रजा मान आगे बढ़े
सुखविंदर सिंह बेटी की इस उपलब्धि पर भावुक मन से कहते हैं कि जब गुरलीन का जन्म हुआ तो खुशी का माहौल था। जब बेटी का टीकाकरण करवाने के लिए गए तो डाक्टर ने कहा कि आंखों की हलचल नहीं हो रही है। इसलिए आंखों के डाक्टर को चेक करवाएं।
इसके बाद पता गुरलीन की स्थिति का पता चला। उसके लिए हर उस दर पर माथा टेका, जिस किसी के भी दर की राह किसी ने बताई। मगर कोई उम्मीद की वो किरण नहीं दिखी। फिर रब की इसी रजा को मान कर आगे बढ़े।
डर था कि स्पेशल बच्चा दाखिल हुआ है
एलकेसी वूमेन की प्राचार्य डा. नवजोत ने कहा कि जब गुरलीन के साथ उसके माता-पिता उसका दाखिला करवाने के लिए आए तो उन्हें झट से दाखिले के लिए मंजूरी दे दी थी। मन में एक डर था कि गुरलीन के रूप में स्पेशल बच्चा दाखिल हुआ है उसे कोई परेशान न आए। यही कोशिश की और अब गुरलीन व उनकी मां मनप्रीत कौर दोनों ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर ली।
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