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गाजीपुर समाचार

गाजीपुर में भगवा खेमे ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के करीबी माने जाने वाले पारसनाथ राय पर दांव लगाया है। वहीं, 2019 में बसपा से दिवंगत मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी बदली परिस्थितियों में इस बार साइकिल पर सवार हैं। बसपा से डॉ. उमेश कुमार सिंह मैदान में हैं। 

मैं अपने दोनों तरफ एक सा हूं तेरे लिए, किसी से शर्त लगा फिर मुझे उछाल के देख... सिटी स्टेशन के सामने दुकान पर चाय की चुस्कियां ले रहे आशुतोष राय गाजीपुर के सियासी मिजाज के सवाल पर शायर अबरार कासिफ का ये शेर उछाल देते हैं। वह कहते हैं, बस ऐसा ही है अपना गाजीपुर। यहां की गलियों में आपको वोटर नहीं मिलते। यहां मिलते हैं तो सिर्फ भूमिहार, ब्राह्मण, यादव, राजभर, राजपूत, दलित, हिंदू और मुसलमान। यहां टिकट जाति के नाम पर तय होता है, तो वोट भी जाति और धर्म के नाम पर मिलता है। यानी सिक्के के दोनों ओर जाति और धर्म ही 

समीकरणों को समझने के लिए चुनावी बातों से पहले समर के योद्धाओं की चर्चा जरूरी है। भगवा खेमे ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के करीबी माने जाने वाले पारसनाथ राय पर दांव लगाया है। वहीं, 2019 में बसपा से दिवंगत मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी बदली परिस्थितियों में इस बार साइकिल पर सवार हैं। बसपा से डॉ. उमेश कुमार सिंह मैदान में हैं। गाजीपुर की फिजा में जिस तरह के सवाल हैं, उन सवालों पर मतदाताओं के जैसे बोल हैं, उन सबका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि यहां भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला है। अलबत्ता बसपा लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में जुटी हुई है।

परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की धरती गाजीपुर का जिक्र आते ही लोगों को याद आते हैं विश्वनाथ सिंह गहमरी। 1962 में सांसद बने गहमरी ने सिर्फ गाजीपुर ही नहीं, पूरे पूर्वांचल के हालात, भुखमरी, बेरोजगारी के दर्द को जिस तरह से संसद में रखा था, वह सबकुछ लोगों की जुबां पर होता है। भुखमरी की पीड़ा को रखते हुए उन्होंने कहा था, स्थिति ऐसी है कि क्षेत्र की एक बड़ी आबादी के लिए बैल के गोबर से छानकर निकाला अनाज ही भोजन का एकमात्र सहारा है। यह सब सुन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से लेकर हर सदस्य की आंखें नम हो गई थीं। यह गहमरी की ही कामयाबी थी कि उसी दिन आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आकलन के लिए पटेल आयोग का गठन हुआ, जिसने पूर्वांचल के विकास की नींव तैयार की। इसके बाद चीनी मिलें और कताई मिलें शुरू की गईं। सड़कों का निर्माण शुरू हुआ और बजट में पूर्वांंचल का ख्याल रखा जाने लगा। पूर्वांचल विकास के आकाश में उड़ान भरने को अपना पर फड़फड़ा ही रहा था कि माफिया, गैंगवार, लूट और छिनैती के कलंक उसकी पहचान के साथ पैबस्त होते चले गए।

प्रत्याशी से ज्यादा मुख्तार की चर्चा
अब आमजन के सियासी मिजाज और अंदाज की बात। चुनावी माहौल के सवाल पर लंका तिराहे पर मिले सतेंद्र मौर्य कहते हैं, भाजपा प्रत्याशी को तो कोई पहचानता ही नहीं है। कब तक मोदी-योगी के नाम पर वोट मिलेगा। इस पर दीपक तंज कसते हुए कहते हैं, हां माफिया को तो सब पहचानते हैं, उनके नाम पर वोट दिया जाएगा। पलटवार करते हुए सतेंद्र कहते हैं, वह माफिया नहीं थे, गरीबों के मसीहा थे। रजनीकांत राय इस पर कहते हैं, मेरी जेब से सौ रुपये निकालकर किसी को दस रुपये दे देना, इसे मसीहा नहीं कहते। 

दरअसल यहां बात मुख्तार अंसारी की हो रही थी। इन लोगों का कहना है कि भले ही मुख्तार की मौत हो चुकी हो, पर चुनाव तो मुख्तार के नाम पर ही लड़ा जा रहा है। वहीं, रजनीकांत मनोज सिन्हा के रेल राज्यमंत्री रहने के दौरान गाजीपुर में हुए विकास कार्यों को गिनाते हुए कहते हैं, पारसनाथ राय को पहचानें या न पहचानें कमल के फूल को तो सब पहचानते हैं और वोट उसी पर पड़ेगा।

भाजपा के टिकट पर खूब रहा सस्पेंस
मनोज सिन्हा के करीबी कहे जाने वाले पारसनाथ राय को टिकट देकर भाजपा ने सभी को चौंका दिया था। टिकट की घोषणा हुई तो पारसनाथ राय अपने स्कूल में पढ़ा रहे थे। तब उन्होंने कहा था, मैंने तो टिकट के लिए कोई आवेदन ही नहीं किया था। इसके बाद चर्चा आम हुई कि मनोज सिन्हा ने टिकट दिलवाया है। हालांकि बाद में पारसनाथ राय ने खुद कहा कि उन्हें किसी ने टिकट नहीं दिलवाया, बल्कि संगठन चुनाव लड़ा रहा है।

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