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Jammu Kashmir Election: कंडी क्षेत्र के वोटर्स के लिए उत्सव से कम नहीं यह चुनाव, पहली बार मिलेगा अपना अलग विधायक

 जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव हो जा रहा है लेकिन कंडी क्षेत्र के 87 हजार मतदाताओं को पहली बार अपना अलग विधायक मिलेगा। दरअसल परिसीमन के बाद जसरोटा विधानसभा क्षेत्र बनाया गया है जिससे कंडी क्षेत्र के लोगों में उत्साह है। साल 1996 में इस क्षेत्र को अलग विधानसभा बनाने की मांग उठ रही थी।

 कठुआ। यूं तो दस साल के बाद हो रहे विधानसभा चुनाव का उत्साह न केवल सभी राजनीतिक दलों में है, बल्कि जनता में भी इस चुनाव को लेकर काफी उत्सुकता है। लेकिन कठुआ जिले में सबसे ज्यादा उत्सवी माहौल है तो नए विधानसभा क्षेत्र जसरोटा में। इस विधानसभा क्षेत्र के लिए यह चुनाव किसी बड़े उत्सव से कम नहीं।

यहां की जनता को इससे कोई लेना देना नहीं कि विधायक किस पार्टी का होगा, उन्हें बस खुशी है तो सिर्फ इस बात से कि उनका विधायक विधानसभा में सिर्फ और सिर्फ कंडी क्षेत्र की समस्याओं पर ही बात करेगा। अब कंडी क्षेत्र की उपेक्षा नहीं होगी। दो वर्ष पूर्व में हुए परिसीमन में जसरोटा विधानसभा क्षेत्र का गठन किया गया।

चार विधानसभा को काट कर बनाया गया नया विधानसभा

चार विस क्षेत्र कठुआ, हीरानगर, बिलावर और बसोहली के कंडी क्षेत्र को काट कर नया विधानसभा क्षेत्र बनाया गया है। दरअसल, परिसीमन के लिए चल रहे सर्वे के दौरान इस क्षेत्र के लोगों ने कंडी की उपेक्षा का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। उनकी शिकायत को उचित भी माना गया।

दरअसल, कठुआ, हीरानगर, बिलावर और बसोहली विस क्षेत्र के आखिरी सिरे पर सीमा की दुविधा के कारण विकास कार्य नहीं हो पाते थे। इसलिए नया विधानसभा क्षेत्र का गठन किया गया।

इस क्षेत्र में लगभग 87 हजार मतदाता हैं

इस नए विधानसभा क्षेत्र में करीब 87 हजार मतदाता हैं। इन मतदाताओं के लिए यह चुनाव नया युग लेकर आएगा, क्योंकि विकास से अब तक उपेक्षित यहां के लोगों की आवाज अब विधानसभा में पहुंचेगी।

इस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य पांच विस क्षेत्रों से अलग रहीं हैं, जिसे कंडी का एक विस क्षेत्र बनाने की बजाय चार विस क्षेत्रों में विभाजित कर अलग-अलग टुकड़ों में किया गया था, जिसकी सिर्फ सीमाएं कठुआ, बसोहली, बिलावर और हीरानगर से जोड़ी गई थीं। जो भी विधायक उक्त चारों क्षेत्रों से चुना जाता था, उसके लिए कंडी क्षेत्र आखिरी कोने में पड़ने से उपेक्षित किया जाता रहा।

आजादी के बाद से पिछड़ा रहा है यह क्षेत्र

भौगोलिक परिस्थितियां भी ऐसी हैं कि हर विस क्षेत्र के मुख्यालय से दूरी ज्यादा रहती है और सड़क संपर्क की बात करे तो आजादी के बाद से आज तक यह क्षेत्र काफी पिछड़ा रहा है। कंडी क्षेत्र जिला के हाईवे से ऊपर उत्तर दिशा में ही फैला है, उसके बाद उत्तर दिशा से ही बिलावर, बसोहली के पहाड़ी क्षेत्र सटा है।

हाईवे से नीचे कठुआ, हीरानगर का मैदानी, अंधड़ और सीमांत क्षेत्र पड़ता है। ऐसे में पहाड़ी और मैदानी क्षेत्र के बीच होने से जहां पर सड़क संपर्क सुविधा उस तरह की नहीं है, जिस तरह से मैदानी क्षेत्र में है। हालांकि पिछले कुछ सालों से पीएमजीएसवाई योजना के तहत कंडी क्षेत्र में भी सड़कों का जाल बिछना शुरू हो चुका है।

घाटी बुद्धी में औद्योगिक क्षेत्र बनाए जाने से जगी विकास की उम्मीद

अब घाटी बुद्धी में औद्योगिक क्षेत्र बनाए जाने से विकास की उम्मीद जरूर जगी है, लेकिन उसके बाद भी राजनीतिक उपेक्षा का शिकार होता रहा है, क्योंकि जहां औद्योगिक क्षेत्र नहीं है, वहां पर आज भी सड़क सुविधा का बुरा हाल है।

इसके अलावा पेयजल समस्या तो पूरे कंडी क्षेत्र में व्याप्त है। इसके अलावा अन्य रोजमर्रा की आज की सुविधाओं से अभी उक्त क्षेत्र कोसों दूर हैं। बंजर, नालों और पहाड़ी भूमि में फैले क्षेत्र में कृषि की संभावना कम होती है।

कंडी क्षेत्र के हैं अपने मुद्दे

पहली बार गठित हुए कंडी क्षेत्र में जसरोटा विस क्षेत्र दयालाचक के डिंगा अंब से लेकर कठुआ के सहार खड्ड तक फैला है। इसमें हाईवे के साथ लगते पहले पांच किलोमीटर तक तो कुछ हद तक सड़क संपर्क ठीकठाक है, लेकिन उसके आगे तो आज भी पिछड़े हुए ग्रामीण क्षेत्र की तरह है।

वहां बदहाल सड़कें, नालों पर पुलों के अभाव में लोग बहते पानी से जान जोखिम में डालकर गुजरते हैं। ऐसे क्षेत्रों में जखोल, जुथाना, मगलूर, कोड़ी, सपरैन, चिंतपूर्णी, डिंगा के साथ लगते कई मोड़े, बाख्ता, गुड़ा सूरजा, गुड़ा पंता, मलामन, बोड़ा, लाड़ी, कुमरी कठेरा आदि दूरदराज के दर्जनों ऐसे क्षेत्र हैं।

जहां के लोग आज भी सुविधाओं के अभाव में जीवन जी रहे हैं। इसके अलावा पेयजल सुविधा नहीं के बराबर है। कई स्थानों पर तो आज भी लोग प्राकृतिक बहते नालों से पानी पीने को मजबूर हैं।

जल शक्ति विभाग का पाइपों से आपूर्ति इस क्षेत्र में आज तक नेटवर्क नहीं के बराबर है। अगर कहीं है तो बदहाल स्थिति में। लोगों को गर्मियों में खुद पैसे खर्च कर पेयजल जुटाना पड़ता है। बेहतर शिक्षा, स्वास्थ सुविधा, बिजली का भी अभाव है।

1996 से कंडी क्षेत्र को अलग विस क्षेत्र बनाने की उठ रही थी मांग

आजादी के बाद से उपेक्षित कंडी क्षेत्र को अलग विस क्षेत्र बनाने की मांग वर्ष 1996 के बाद उठी थी। इसके लिए कंडी विकास मंच गठित कर स्थानीय लोगों ने इस मांग को उठाना शुरू किया। उस समय की तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में कंडी विकास ने पहुंचाया।

कंडी विकास मंच के अध्यक्ष अशोक जसरोटिया जो इस समय प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य का कहना है कि करीब तीन दशक के बाद केंद्र की मौजूदा भाजपा सरकार ने कंडी को अलग विस क्षेत्र बनाकर जहां के लोगों को जीने का मौलिक अधिकार दिया है।

जसरोटिया की इस मांग को दो वर्ष पहले पूर्व मंत्री राजीव जसरोटिया ने समर्थन करते हुए परिसीमन आयोग के समक्ष लिखित में उठाया। इसके अलावा अशोक जसरोटिया के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने भी लिखित में परिसीमन आयोग को मांग को रखा। उसके बाद कंडी के लोगों के भाग खुले हैं।

अब उनका अपना विधायक विस में होगा, जो अब कठुआ, हीरानगर, बिलावर और बसोहली की बात न कर सिर्फ ही सिर्फ कंडी की ही बात करेगा।