आतंकी संगठन हिजबुल्ला के प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह की मौत हो गई है। ईरान समर्थित समूह हिजबुल्लाह ने पुष्टि की है कि 32 वर्षों तक समूह का नेतृत्व करने वाला नसरल्लाह शुक्रवार के हमले में मारा गया है। अब हिजबुल्लाह अपने 42 साल के इतिहास में सबसे भारी हमले के बाद एक नए प्रमुख को चुनने की चुनौती का सामना कर रहा है।
बेरूत। लेबनान में इजरायल के बड़े हवाई हमले में विश्व के सबसे बड़े सशस्त्र और आतंकी संगठन हिजबुल्ला के प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह की मौत हो गई है। ईरान समर्थित समूह हिजबुल्लाह ने पुष्टि की है कि 32 वर्षों तक समूह का नेतृत्व करने वाला नसरल्लाह शुक्रवार के हमले में मारा गया है।
अब हिजबुल्लाह अपने 42 साल के इतिहास में सबसे भारी हमले के बाद एक नए प्रमुख को चुनने की चुनौती का सामना कर रहा है।
नसरल्लाह की मौत के बाद हिजबुल्लाह के नए चीफ के लिए हाशेम सफीद्दीन का नाम सबसे आगे चल रहा है। आखिर हाशेम कौन है और इसका क्या इतिहास है, आइए जानते हैं....
कौन है हाशेम सफीद्दीन?
- हाशेम सफीद्दीन हिजबुल्लाह के पूर्व प्रमुख नसरल्लाह का चचेरा भाई है।
- हिजबुल्लाह के कार्यकारी परिषद के प्रमुख के रूप में सफीद्दीन हिजबुल्लाह के राजनीतिक मामलों की देखरेख करता है।
- हाशेम सफीद्दीन जिहाद परिषद में भी बैठता है, जो समूह के सैन्य अभियानों का प्रबंधन करती है।
- सफीद्दीन खुद को मौलवी बताता है जो हर समय काली पगड़ी पहनकर इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद के वंशज होने का भी दावा करता है।
- ये बात सभी जानते हैं कि ईरान ही हिजबुल्लाह को कंट्रोल और वित्तपोषित करता है। हाशेम के ईरान से काफी अच्छे संबंध माने जाते हैं, क्योंकि उसने वहीं से पढ़ाई भी की है। माना जा रहा है कि ईरान से बेहतर संबंध के चलते उसका प्रमुख बनना पक्का है।
US की वांटेड लिस्ट में है शामिल
यू.एस. स्टेट डिपार्टमेंट ने हाशेम को 2017 में आतंकवादी घोषित किया था। सफीद्दीन के कई बयान अक्सर हिजबुल्लाह के उग्रवादी रुख और फलस्तीनी जुड़ाव को दर्शाते हैं। बेरूत के दक्षिणी उपनगरों में हिजबुल्लाह के गढ़ दहियाह में हाल ही में एक कार्यक्रम में हाशेम ने फलस्तीनी लड़ाकों के साथ एकजुटता दिखाते हुए घोषणा की थी कि हमारा इतिहास, हमारी बंदूकें और हमारे रॉकेट आपके
नसरुल्लाह ने ईसाई बहुल लेबनान का बदल दिया था स्वरूप
यह नसरुल्लाह के नेतृत्व वाले हिजबुल्ला का ही प्रभाव था कि ईसाई बहुलता वाले लेबनान का 20 वीं सदी के अंतिम दशकों में स्वरूप बदल गया और वहां की सत्ता पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया। इससे पहले बेरूत और लेबनान के अन्य शहरों में वर्षों तक लड़ाई चली और अंतत: ईरान समर्थित हिजबुल्ला अपना प्रभाव कायम करने में सफल रहा। इसीलिए लेबनान की सरकार में हिजबुल्ला की भागीदारी है और नसरुल्ला का प्रभाव प्रधानमंत्री से कम नहीं था।
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