दिल्ली में रोजी-रोटी के लिए सड़क पर सिसक रहीं जिंदगियां, दबंगों के भय और नशे के चक्कर में लोगों ने फुटपाथ को बनाया ठिकाना
राजधानी दिल्ली में कई लोग फुटपाथ पर सोते खाना बनाते और गुजर बसर करते दिखते हैं। इनको लेकर न प्रशासन को फिक्र न ही पुलिस को है। आश्रय गृह में न जाने की बात कहकर प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है। कई लोग तो नशे के चक्कर में फुटपाथ को ठिकाना बनाते हैं। वहीं कई विपरित हालात के चलते फुटपाथ पर गुजर बसर करने के लिए मजबूर हैं।
नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली जहां पर देशभर से गरीबी मिटाने और जरूरतमंद को छत देने की नीतियां बनाई जाती है, लेकिन वहीं पर लोग फुटपाथ पर सोते, खाना बनाते और गुजर बसर करते नजर आ जाते हैं। ऐसा नहीं है कि इनके रहने की व्यवस्था नहीं है, लेकिन मजबूरी और जानकारी के आभाव में लोग आश्रय गृहों में नहीं जाते हैं।
नशे के लिए फुटपाथ को बनाया ठिकाना
कई ऐसे भी हैं जो नशे के लिए फुटपाथ को ठिकाना बनाए रहते हैं। आश्रय गृहों में न जाने की एक वजह यह भी है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो घर से बिना बताए भाग कर आ गए अब उनके पास कोई पहचान पत्र नहीं है और आश्रय गृहों में प्रवेश के लिए आधार कार्ड अनिवार्य है।
फुटपाथ पर जान गंवाने का रहता है खतरा
इसकी वजह से वह सड़क किनारे फुटपाथ पर ही जिदंगी गुजारना पंसद करते हैं। इसकी वजह से वह यहां से गुजरने वाले वाहनों की चपेट में आने से भी जान गंवाने का खतरा मोल लेते हैं।
दैनिक जागरण की टीम ने दिल्ली के विभिन्न इलाकों में फुटपाथ पर रहने वाले लोगों का दर्द जानने का प्रयास किया। इस दौरान लोगों ने बताया कि आश्रय गृहों में अव्यवस्था व वहां पुराने रहने वालों की दबंगई के चलते नहीं जाते हैं।
जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है पुलिस
कई लोग नशे की लत के चलते फुटपाथ पर रह रहे हैं। इसके अलावा कई लोगों को तो इतना भी नहीं मालूम था कि सरकार ने उनके ठहरने के लिए आश्रय गृह बनाए हुए हैं।
वहीं, पुलिस महज खानापूरी के लिए कभी-कभी इन्हें फुटपाथ से हटाकर आश्रय गृह ले जाती है और यह कहकर पल्ला झाड़ देती है कि लोग आश्रय गृहों में रहते नहीं हैं, इसलिए फुटपाथ पर वह रहने के लिए मजबूर है।
दान के लालच में रह रहे फुटपाथ पर
दिल्ली में अधिकतर फुटपाथ पर रहने वालों ने मंदिरों के आसपास अपने ठिकाने बनाए हुए हैं। मंदिरों में आने वाले लोगों से इन्हें प्रसाद व दान का लालच रहता है। आश्रय गृहों में न रहने की बड़ी वजह यह भी है कि वहां इन्हें एक ही तरह का खाना दिया जाता है, जबकि मंदिरों के आसपास रहकर इन्हें लोगों द्वारा तरह-तरह का खाना व दान मिलता रहता है। इसी लालच में यह निराश्रित लोग आश्रय गृहों में न रहकर फुटपाथ पर जिंदगी गुजारते हैं।
पहचान पत्र का संकट
रोहिणी सेक्टर-तीन बाहरी रिंग रोड के डिवाइडर पर रह रहीं गीता ने बताया कि उनके पास आधार-पैन कार्ड व पहचान-पत्र होने के बाद भी आश्रय गृह में घुसने नहीं दिया जाता है, इसलिए फुटपाथ पर रहने को मजबूर हैं।
गीता नाम की एक अन्य महिला ने बताया कि रोड किनारे रहने के कारण सड़क हादसे में वे अपने पति, बेटा-बेटी को खो चुकी हैं। चोरी का आरोप लगाकर उन्हें आश्रय गृह में प्रवेश तक नहीं करने दिया जाता है।
हादसे का लगा रहता है डर
बिमला देवी ने बताया कि बेटा और बेटी के पास आधार कार्ड नहीं है, इसलिए आश्रय गृह में रहने नहीं दिया जाता। राजघाट इलाके में फुटपाथ पर ठिकाने बना चुके मुन्ना कहते हैं कि आश्रय गृह में रहना चाहता हूं मगर वहां पहले से रह रहे लोग परेशान करते हैं और मारपीट तक पर उतारू हो जाते हैं।
इसलिए मजबूरन फुटपाथ पर रहना पड़ता है। यहां रात के समय डर भी लगा रहता है कि काेई हमारे ऊपर गाड़ी न चढ़ा दे। गीता कॉलोनी में फुटपाथ पर रह रहे भगवान लाल ने कहा, दो साल पहले नेपाल से दिल्ली रोजगार के लिए आया था। अब रिक्शा चलाकर फुटपाथ पर ही गुजर बसर कर रहा हूं। मुझे आश्रय गृह की कोई जानकारी नहीं है। शुरू से ही फुटपाथ पर रह रहा हूं।
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