पितृ पक्ष में बासुकीनाथ मंदिर के शिवगंगा तट पर श्रद्धालु अपने पितरों को तर्पण अर्पित कर रहे हैं। यह परंपरा पूरे एक पक्ष तक चलती है। पंडितों के माध्यम से लोग नियमनुसार पितरों को जल अर्पित करते हैं। पितृपक्ष में तर्पण करने से पूर्वज तृप्त होते हैं और वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। यह कर्मकांड आश्विन मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से समाप्ति तक चलता है।
बासुकीनाथ (दुमका):-बासुकीनाथ मंदिर के उत्तरी दिशा में स्थित शिवगंगा तट पर बुधवार से प्रारंभ पितृ पक्ष में पितरों को तर्पण देने का कर्मकांड प्रारंभ हो गया है। पितरों को पूरे एक पक्ष तक तर्पण देने की परंपरा है।
शिवगंगा तट और समीप के नदियों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपने पितरों को तर्पण अर्पित करते हैं। कई श्रद्धालु पुरोहितों के माध्यम से नियम निष्ठा से पितरों को को जल अर्पित करते हैं
पंडित हरि ओम बाबा ने कहा कि इसमें पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता जताते हुए उनके वंशजों के द्वारा तर्पण किया जाता है। बताया कि पितृपक्ष में तर्पण करने से पूर्वज तृप्त होते हैं एवं अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
पुरोहित आशुतोष झा ने कहा कि भादो पूर्णिमा पर अगस्त तर्पण या पूर्णिमा का श्राद्ध तर्पण किया गया। गुरुवार से कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से विधि-विधानपूर्वक तर्पण की शुरुआत होगी।
जबकि शुक्रवार को आश्विन मास, कृष्ण पक्ष, द्वितीया तिथि का ऋषि तर्पण उनके वंशजों एवं अनुयायियों के द्वारा किया जाएगा। हिंदू समाज में पितरों को याद करते हुए तर्पण करने की परंपरा बहुत लम्बे समय से चली आ रही है। पितृ पक्ष मानवीय कृतज्ञता का पर्व है। इसे श्रद्धा पर्व भी कहा जाता है।
यह कर्मकांड आश्विन मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होकर कृष्ण पक्ष की समाप्ति तक चलता है। कहा जाता है कि इसमें किया गया तर्पण मृत पूर्वजों को तृप्त करता है। वहीं दूसरी ओर पितृपक्ष में शुभ कर्म करना वर्जित माना जाता है।
मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होने पर भी कर सकते हैं तर्पण
प्रतिपदा। इस तिथि को नाना-नानी की श्राद्ध के लिए सही बताया गया है । इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है ।यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्यु तिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।
पंचमी। जिन लोगों की मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।
नवमी। सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है । यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृ-नवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि -इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
एकादशी और द्वादशी। एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।
चतुर्दशी। इस तिथि में शस्त्र, आत्महत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है । जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है ।
सर्व पितृमोक्ष अमावस्या। किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गये हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है। तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है।
अमावस्या तिथि। शास्त्र के अनुसार इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए।
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