हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत किया जाता है। शिव जी की कृपा प्राप्ति के लिए कई साधक इस तिथि पर व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसे में आप शिव जी की कृपा प्राप्ति के लिए भाद्रपद के अंतिम प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान आप शिव प्रदोष स्तोत्र का जाप कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत के दिन श्रद्धापूर्वक शिव जी की पूजा-अर्चना और व्रत करने से महादेव प्रसन्न होते हैं। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद का दूसरा प्रदोष व्रत रविवार, 05 सितंबर के दिन पड़ रहा है। रविवार के दिन पड़ने के कारण इसे रवि प्रदोष व्रत भी कहा जाएगा। इस दिन शिव जी के साथ-साथ सूर्य देव की पूजा करने से भी लाभ मिल सकता है।
शिव प्रदोष स्तोत्र
जय देव जगन्नाथ जय शंकर शाश्वत ।
जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ।
जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद ।
जय नित्यनिराधार जय विश्वम्भराव्यय ।।
जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण ।
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ।।
जय कोट्यर्कसंकाश जयानन्तगुणाश्रय ।
जय भद्र विरुपाक्ष जयाचिन्त्य निरंजन ।।
जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभंजन ।
जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ।।
प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यत: ।
सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ।।
महादारिद्रयमग्नस्य महापापहतस्य च ।
महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ।।
ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभि: ।
ग्रहै: प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शंकर ।।
दरिद्र: प्रार्थयेद् देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् ।
अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद् देवमीश्वरम् ।।
दीर्घमायु: सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नति: ।
ममस्तु नित्यमानन्द: प्रसादात्तव शंकर ।।
शत्रव: संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजा: ।
नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जना: सन्तु निरापद: ।।
दुर्भिक्षमारिसंतापा: शमं यान्तु महीतले ।
सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात् सुखमया दिश: ।।
एवमाराधयेद् देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् ।
ब्राह्मणान् भोजयेत् पश्चाद् दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ।।
सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारिणी ।
शिवपूजा मयाख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ।।
शिव रूद्र अष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेअहम ।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा घ्य़ान गोतीतमीशं गिरीशम ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोअहम ।।
तुश्हाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ।।
प्रचण्डं प्रकृश्ह्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजे
अहं भवानीपतिं भावगम्यम ।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।
न यावत.ह उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम ।
न तावत.ह सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम ।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतो
अहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ।।
रुद्राश्ह्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोश्हये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेश्हां शम्भुः प्रसीदति ।।
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