उत्तर प्रदेश उपचुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। भाजपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष व योगी सरकार के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री नरेन्द्र कश्यप को विश्वास है कि जाट नाराज नहीं है। भाजपा को रालोद से गठबंधन का भी लाभ मिलेगा। इसके अलावा कांग्रेस और सपा ने पिछड़ों और दलितों में आरक्षण का जो भ्रम फैलाया था वह भी दूर हो गया है।
हरियाणा में भाजपा की अप्रत्याशित जीत के कारणों में जाट बनाम गैर जाट ओबीसी की लकीर को प्रमुख कारक माना जा रहा है। बेशक, भाजपा के रणनीतिकार अभी इस दांव को लेकर उत्साहित हों, लेकिन हरियाणा की सीमा लांघते ही यह नैरेटिव खास तौर पर उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए चुनौती बढ़ा सकता है।
बांटने-जोड़ने का दांव आसान नहीं
दरअसल, यादव निर्विवाद रूप से समाजवादी पार्टी के समर्थक माने जाते हैं और भाजपा से जाटों की नाराजगी का संदेश भी सतत चल रहा है। इधर, अन्य पिछड़ों को साधने का सफल प्रयोग अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में कर चुके हैं। ऐसे में भाजपा के लिए पिछड़ों को बांटने-जोड़ने का दांव आसान नजर नहीं आता।
जातीय राजनीति का पूरा असर
हालांकि, शीर्ष नेताओं की हिंदुओं की एकजुटता के प्रति बढ़ी मुखरता को विपक्ष द्वारा उभारे जा रहे जातियों के खांचों को पाटने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव में जातीय राजनीति का पूरा असर दिखाई दिया। भाजपा का आधार मानी जाने वाली हिंदी पट्टी के अन्य राज्यों में उसका प्रदर्शन तब भी ठीक रहा, लेकिन सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में उसे 29 सीटों का नुकसान हुआ।
ओबीसी वोटबैंक
- भाजपा के सबसे मजबूत माने जाने वाले ओबीसी वोटबैंक में भी सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति ने सेंध लगा दी।
- जाटों की नाराजगी के लगातार उठ रहे सुरों को भी इन परिणामों से बल मिला। निस्संदेह भाजपा के लिए यह घाव ही थे, जिन्हें काफी हद तक हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम ने भर दिया है।
- अव्वल तो दलित उसकी ओर लौटता दिखा और सबसे महत्वपूर्ण यह कि ओबीसी का भी उसे भरपूर साथ मिला। अब हरियाणा से निकला जाट बनाम गैर जाट ओबीसी का यह नैरेटिव आगे बढ़ता है तो भाजपा की चिं
एकमुश्त वोट सपा के समर्थन में
दरअसल, भाजपा को खास तौर पर उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन को मजबूत बनाए रखना है। वहां भाजपा हरियाणा की तरह यादव बनाम अन्य ओबीसी नहीं कर सकती, क्योंकि यादवों का करीब-करीब एकमुश्त वोट सपा के समर्थन में रहता है। उनकी आबादी भी आठ-दस प्रतिशत ही मानी जाती है।
दलित और मुस्लिम समीकरण
वहीं, जो जाट नाराज बताया जाता है, उसकी प्रदेश में कुल आबादी भले ही चार-पांच प्रतिशत के करीब है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उपस्थिति 17 प्रतिशत है। इस अंचल में जाटों के साथ दलित और मुस्लिम समीकरण बनाते हैं तो भाजपा की राह पथरीली हो जाती है।
अन्य ओबीसी में सेंध लगाकर सपा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव में भाजपा का नुकसान कर दिया। अब हरियाणा से गैर जाट ओबीसी के नरम रुख के संकेत मिले हैं, लेकिन यूपी में जातियों की हर लकीर को पाटना होगा। वैसे सीएम योगी आदित्यनाथ का 'बंटेंगे तो कटेंगे' वाला बयान इसी प्रयास का हिस्सा है।
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