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तेलंगाना हाई कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर को कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले बीआरएस विधायक दानम नागेंद्र के अयोग्यता पर चार हफ्ते में सुनवाई कर निपटाने का निर्देश दिए है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी एक पूर्व फैसले में संसद को अयोग्यता मामला निपटनाने के लिए एक स्वतंत्र तंत्र बनाने का सुझाव दिया था।

स्पीकर (विधानसभा अध्यक्ष) पर अंगुली उठना अब कोई नई बात नहीं रही। उन पर अक्सर पक्षपात और जानबूझकर सदस्यों के खिलाफ अयोग्यता अर्जियां लटकाए रखने के आरोप लगते हैं। अदालत बार-बार उन्हें लक्ष्मण रेखा की याद दिलाती है, लेकिन फिर भी कई बार स्पीकर दलगत राजनीति की बंदिशों में बंधे रह जाते हैं।

अब आदेश तेलंगाना हाई कोर्ट का आया है, जो इशारा करता है कि अगर स्पीकर दलगत राजनीतिक बंदिशों से नहीं उबरे तो अदालत उनके लिए समय सीमा की रेखा खींच देगी। तेलंगाना हाई कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष से विधायक दानम नागेंद्र के खिलाफ लंबित अयोग्यता याचिका चार सप्ताह में सुनवाई कर निपटाने को कहा 

तो कोर्ट लेगा स्वतः संज्ञान...

हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर चार सप्ताह में कुछ नहीं हुआ तो कोर्ट मामले पर स्वत: संज्ञान लेकर आदेश पारित करेगा। तेलंगाना के विधायक दानम नागेंद्र पर आरोप है कि वह भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) से चुनाव लड़कर विधायक बने। लेकिन लोकसभा चुनाव आने पर उन्होंने बीआरएस से इस्तीफा दिए बगैर कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा।

बीआरएस नेता की सदस्यता पर आना है फैसला

बीआरएस ने नागेंद्र की सदस्यता रद करने के लिए स्पीकर के समक्ष अयोग्यता अर्जी दी है, लेकिन स्पीकर उसका निपटारा नहीं कर रहे हैं। तेलंगाना हाई कोर्ट के न्यायाधीश बी. विजयसेन रेड्डी ने गत नौ सितंबर के आदेश में विधानसभा सचिवालय को निर्देश दिया कि नागेंद्र की अयोग्यता संबंधी याचिका पर सुनवाई के लिए चार सप्ताह के भीतर शिड्यूल तय करें

क्या बोले तेलंगाना HC के जज?

  • जस्टिस रेड्डी ने कहा कि इस मामले में स्पीकर के समक्ष अप्रैल और जुलाई में अयोग्यता अर्जियां दाखिल की गई थीं, लेकिन आज तक फैसला नहीं हुआ। इस स्थिति में याचिकाकर्ता राहत पाने का हकदार है।
  • तेलंगाना हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के 21 जनवरी, 2020 के मणिपुर मामले में दिए गए केशम मेघचंद्र सिंह के फैसले को आधार बनाया है, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा है कि स्पीकर को तय समय में अयोग्यता याचिका निपटाने का निर्देश दिया जा सकता है।
  • हाई कोर्ट ने राज्य के एडवोकेट जनरल की मेघचंद्र सिंह फैसले का अनुसरण नहीं किए जाने के संबंध में दी गईं सारी दलीलें खारिज कर दीं। हाई कोर्ट ने कहा कि याचिका को तकनीकी आधार पर या जल्दबाजी के आधार पर खारिज करना ठीक नहीं होगा।
  • अगर एडवोकेट जनरल व अन्य की ओर से सुप्रीम कोर्ट के कोहितों होलां फैसले की दी गई व्याख्या को माना जाएगा, तो ऐसी स्थिति भी आ सकती है, जिसमें स्पीकर के निर्णय लेने से इन्कार करने पर पार्टी के पास कोई उपचार ही न बचे।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बनाया आधार

हाई कोर्ट ने जिस केशम मेघचंद्र सिंह फैसले को आधार बनाया है, वह फैसला सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ का है। फैसला ऐतिहासिक है, जिसमें स्पीकर को तय समय में अयोग्यता अर्जी निपटाने की बात कही गई है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के अयोग्यता याचिकाएं समय पर न निपटाने और पक्षपाती होने पर गहराई से विचार किया था।

SC ने की थी कड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा था कि अब समय आ गया है कि संसद इस पर विचार करे कि सदस्य को अयोग्य ठहराने की याचिका तय करने का काम स्पीकर के पास रहना चाहिए कि नहीं, क्योंकि स्पीकर भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी पार्टी से संबंधित होता है।

शीर्ष अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अथवा किसी और स्वतंत्र तंत्र को निष्पक्षता के साथ सदस्य की अयोग्यता का मामला निपटाने का काम सौंपने पर विचार करने का सुझाव दिया था। कहा था कि हमारे लोकतंत्र के ठीक से काम करने के लिए यह जरूरी है।

यह बात कहां तक सही बैठती है, इसे झारखंड के उदाहरण से समझा जा सकता है, जहां स्पीकर इंदर सिंह नामधारी ने एक मामले को विधानसभा के पूरे कार्यकाल करीब पांच साल तक लटकाए रखा था। बिहार में भी ऐसा केस लंबित है। महाराष्ट्र का मामला तो सुप्रीम कोर्ट में ही लंबित है।

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