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 पाइप लाइन से आपूर्ति, रेन वाटर हार्वेस्टिंग को सुधारने के लिए करना होगा काम

कच्चे पानी की अपर्याप्त उपलब्धता पर चिंताओं के बावजूद विभिन्न तरीकों से बर्बादी जारी है। डीजेबी ने कुल आपूर्ति किए गए पानी के 40 प्रतिशत तक जल वितरण के नुकसान का अनुमान लगाया है। उपचारित पानी का एक हिस्सा पाइपलाइनों में रिसाव के कारण नष्ट हो जाता है। कुछ स्थानों पर पाइपलाइनों से अवैध दोहन एक मुद्दा है। टैंकर माफिया द्वारा पानी का दुरुपयोग एक और समस्या है।

नई दिल्ली

दिल्ली जल संकट की विभीषिका का सामना कर रही है। हर साल गर्मियों में दिल्ली पानी की कमी से जूझती है लेकिन इस बार यह परेशानी ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है। पानी का कुप्रबंधन, बेहतर तरीके से संचयन न करना, लीकेज, पानी की बेजा बर्बादी जैसे तमाम कारण है जिसकी वजह से दिल्लीवासी हर गर्मी में पानी की दिक्कत से रूबरू हो जाते हैं। दिल्ली के कई इलाकों में पूरी गर्मी बदस्तूर यही हाल रहता है। रिपोर्ट बताती है कि औसत भारतीय अपनी दैनिक जल आवश्यकता का 30 प्रतिशत बर्बाद कर देता है।

संयुक्त राज्य भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार , प्रति मिनट 10 बूंदें टपकने वाला नल प्रतिदिन 3.6 लीटर पानी बर्बाद करता है। साथ ही, शौचालय के हर फ्लश में लगभग छह लीटर पानी खर्च होता है। सीएसई के आंकडे के अनुसार पानी की बर्बादी का एक और अनुमान बताता है कि हर दिन 4,84,20,000 करोड़ क्यूबिक मीटर यानी 48.42 अरब एक लीटर बोतल पानी बर्बाद होता है, जबकि इस देश में करीब 16 करोड़ लोगों को साफ और ताजा पानी नहीं मिल पाता है।

पूर्व आईएएस केबीएस सिद्धू अपने लेख में लिखते हैं कि मानसून के मौसम में लगातार बारिश और उफनती यमुना नदी से शहर के बड़े हिस्से जलमग्न हो जाते हैं, जिससे हज़ारों निवासियों को अपने घरों से भागने और ऊंची जगहों पर शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बाढ़ के बीच,उस दौरान भी शहर को पीने योग्य पानी की भयंकर कमी का सामना करना पड़ जाता है। यह एक विडंबना ही है कि लोग कमर तक पानी में चल रहे हैं पर प्यासे हैं।

वह बताते हैं कि 1984 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और हमारे बैचमेट रमेश नेगी ने दिल्ली के जल संसाधनों के प्रबंधन के बारे में बताया कि सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक समाज के सभी वर्गों में इस बात की कमी है कि पानी का सही तरीके से इस्तेमाल कैसे किया जाए। अभिजात्य वर्ग, जो अक्सर सबसे बड़ा अपराधी होता है, हर महीने दिए जाने वाले 20,000 लीटर मुफ्त पानी का दुरुपयोग करता है, खासकर मल्टीफ्लोर कोठियों में, जबकि अमीर और गरीब दोनों को ही नुकसान उठाना पड़ता है। जल वितरण में असमानता बहुत अधिक थी, नियोजित क्षेत्रों को प्रति व्यक्ति प्रति दिन 70 से 100 लीटर (एलपीसीडी) मिलता था, जबकि अनियोजित क्षेत्रों को केवल 20 से 40 लीटर पानी मिलता था। चरम गर्मियों में, जलवायु परिवर्तन के कारण स्थिति और भी गंभीर हो जाती थी।