
बरेली समाचार
सूरज ये प्रतिशोध
सूरज खुद ही तप रहा, खुद ही है बैचेन।
किरणों के हर ताप से, उड़ा रहा है चैन।।
राग ताप का छेड़ता, ले लेकर आलाप।
क्यों हमको झुलसा रहा, देकर इतना ताप।।
छौंक रहा दादागिरी, सूरज सब पर आज।
गर्मी का वो दिख रहा, बेताजों का ताज।।
गर्मी से ये कर रहा, सब पर तीखे वार।
सूरज के ढीले करो, तेवर मेरे यार।।
कड़वी गोली दो उसे शीतल करो मसाज।
कौन यहां पर वैद्य जो, कर दे सही इलाज।।
गर्मी ताप प्रकोप के, उठते नहीं सवाल।
सूरज की गलती नहीं, कुछ देशों में दाल।।
पानी आज शरीर का, उड़ता जैसे भाप।
तरस नहीं क्यों आ रहा, दे भीषण संताप।।
सूरज तेरी आग से, परेशान आवाम।
उर्दू में आराम ले, हिंदी में विश्राम।।
शायद शीतल मन करे, या माने आभार।
सूरज को समझा सके, यदि उसका परिवार।।
किससे बोलो ले रहा सूरज अब प्रतिशोध।
क्यों अंतर्मन आग है, कर डालो कुछ शोध।।
शीतल जल शरबत पियो, सूरज जी श्रीमान।
थोड़ी गर्मी कम करो भूल ताप अभिमान।।
लेखक: इंद्रदेव त्रिवेदी बरेली
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