
अयोध्या में एक बार फिर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल देखने को मिली है। मुस्लिम समुदाय ने होली के पर्व को देखते हुए जुमे की नमाज का समय बदल दिया है। अब दोपहर 2 बजे जुमे की नमाज होगी। इससे पहले होलिका दहन के दिन गुरुवार को तरावीह की नमाज रात 930 बजे तक संपन्न कर मुस्लिम भाई अपने घरों में पहुंच जाएंगे।
अयोध्या। रामनगरी के मुस्लिम समुदाय ने एक बार फिर सौहार्द की दिशा में उदाहरण प्रस्तुत किया है। होली के लिए मुस्लिम समुदाय ने जुमा की नमाज का समय बढ़ा दिया है। शुक्रवार को रंगभरी होली के दिन दोपहर दो बजे जुमा की नमाज पढ़ी जाएगी। इस संबंध में मरकजी जामा मस्जिद टाटशाह ने घोषणा भी कर दी है।
मुसलमानों से शहर काजी व जामा मस्जिद टाटशाह व ईदगाह के इमाम मुफ्ती शमसुल कमर कादरी ने अपील जारी की है। यह जानकारी टाटशाह मस्जिद के उपाध्यक्ष मोहम्मद कमर ने दी। उन्होंने बताया कि प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक का फर्ज है कि वह एक-दूसरे के पर्वों को मिल जुलकर संपन्न कराए। रामनगरी के हिंदू-मुस्लिम हमेशा से यह करते आए हैं।
डेढ़ बजे होती है जुमे की नमाज
जुमा की नमाज दोपहर डेढ़ बजे होती है। इस बार होली को देखते हुए मुस्लिमों से अपील की गई है कि वह दोपहर दो बजे जुमा की नमाज अदा करें और देश-प्रदेश में शांति और आपसी सौहार्द बना रहे इसके लिए प्रार्थना करें। इससे पूर्व होलिका दहन के दिन गुरुवार को तरावीह की नमाज रात 9:30 बजे तक संपन्न कर मुस्लिम भाई अपने घरों में पहुंच जाएं। ताकि किसी को कोई असुविधा न हो।
पूर्व बेला से ही होली के रंग में डूबी रही रामनगरी
होली शुक्रवार को खेली जाएगी, किंतु रामनगरी पूर्व बेला से ही होली के रंग में रंग रही है। मठ-मंदिरों से लेकर सरयू तट तक रंगोत्सव की छटा बिखर रही है। होली के साथ साधना, सद्भाव और संगीत की त्रिवेणी बह रही है। बुधवार को पूर्वाह्न राजा दशरथ के महल में संतों ने एक दूसरे पर पुष्प वर्षा कर जमकर होली खेली।
इस दौरान धर्मनगरी के प्रसिद्ध संगीतकारों ने होली के पदों का गायन कर उत्सव का रंग और भी चटख कर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता दशरथमहल पीठाधीश्वर बिंदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य ने की। उन्होंने कहा कि होली का आयोजन अधिकृत-औपचारिक नहीं है, अपितु यह हृदय का उल्लास है और यही सहजता ही होली का मर्म है।
इससे पूर्व उन्होंने अपने कृपापात्र एवं जगद्गुरु अर्जुनद्वाराचार्य रामभूषणदेवाचार्य के साथ बिंदु संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामी रामप्रसादाचार्य के विग्रह का अभिषेक-पूजन एवं गुलाल अर्पण से कार्यक्रम का उद्घाटन किया। कृपालु रामभूषणदेवाचार्य ने कहा, होली वस्तुत: सबके अंदर में बैठे परमात्मा से संवाद स्थापित करने का प्रयत्न है। रसिक उपासना परंपरा की प्रतिनिधि पीठ हनुमन्निवास में अबीर-गुलाल के साथ फूलों की होली और संगीत संध्या भी सजी।
प्रसिद्ध गायक मिथिलाबिहारीदास ने अवधपुरी में धूम मची है सबहि भयै लाले लाल और एक ओर खेले सिया सुकुमारी, एक ओर खेले राम रघुराई...आदि पदों का गायन कर मौजूद संतों को मुग्ध कर दिया। हनुमन्निवास के महंत एवं सनातन संस्कृति-परंपरा के मर्मज्ञ आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण ने संगीत की प्रस्तुति तथा अबीर-गुलाल और पुष्प पंखुड़ियों की फुहार के बीच होली की तात्विकता प्रतिपादित करते हुए कहा, जब हम नहीं बचते और हमारे भीतर बैठा वह यानी परमात्मा ही बचता है, तब समझो होली सध गई। यह आत्म स्वीकृति ही होली का चरम है और इन अर्थों में होली जीते जी समाधि को उपलब्ध होना है।
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