
उत्तर प्रदेश में पुलिसकर्मियों के स्थानांतरण के लिए 20 अप्रैल तक नामांकन मांगे गए हैं। एडीजी स्थापना निचिकेता झा ने निर्देश दिए कि निरीक्षक उपनिरीक्षक व मुख्य आरक्षियों के स्थानांतरण की प्रक्रिया 10 अप्रैल तक पूरी की जाए। स्थानांतरण की कट ऑफ तिथि 30 अप्रैल तय की गई है। 20 जून तक रेंज 25 जून तक जोन और 30 जून तक मुख्यालय स्तर पर कार्यमुक्ति अनिवार्य होगी।
लखनऊ। पुलिसकर्मियों के स्थानांतरण के लिए 20 अप्रैल तक नामांकन मांगे गए हैं। एडीजी स्थापना निचिकेता झा ने एडीजी जोन, आइजी रेंज व पुलिस कप्तानों से निरीक्षकों, उपनिरीक्षकों व मुख्य आरक्षियों के स्थानांतरण के लिए नामांकन मांगे हैं। स्थानांतरण की कट आफ तिथि 30 अप्रैल निर्धारित की गई है।
एडीजी स्थापना ने इस संबंध में जारी निर्देशों में स्पष्ट किया है कि ग्रीष्मकालीन स्थानांतरण व्यवस्था के तहत समायोजन एवं चिह्नीकरण की कार्यवाही 10 अप्रैल तक पूरी की जाएगी। 20 अप्रैल तक संबंधित अधिकारियों को डीजीपी मुख्यालय को नामांकन उपलब्ध कराना होगा।
इन पुलिसकर्मियों का जरूर रहेगा नाम
20 अप्रैल के बाद प्राप्त होने वाले नामांकन पर विचार नहीं किया जाएगा। साथ ही यह भी कहा है कि उन पुलिसकर्मियों के नाम जरूर शामिल किए जाएं जिनका स्थानांतरण हुए एक वर्ष बीत चुका है, लेकिन उन्हें अभी तक कार्यमुक्त नहीं किया गया है
मुख्यालय स्तर पर स्थानांतरण संबंधी कार्यवाही 20 जून तक पूरी कर ली जाएगी। रेंज स्तर से स्थानांतरित कर्मियों को 20 जून तक कार्यमुक्त करना होगा। वहीं जोन स्तर से 25 जून तथा मुख्यालय स्तर से स्थानांतरित कर्मियों को 30 जून तक कार्यमुक्त करना अनिवार्य होगा।
आठ वर्षों से राज्य सूचना आयोग का नहीं हुआ आडिट
आठ वर्षों से राज्य सूचना आयोग का आडिट नहीं हुआ है। इसके चलते आयोग की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है। आयोग के गठन के बाद से लेकर अभी तक वर्ष 2013 और वर्ष 2016 में केवल दो बार आडिट कराया गया है।
इस बारे में आरटीआइ कार्यकर्ता तनवीर अहमद सिद्दीकी ने बताया कि आयोग में फैले भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए आयोग का आडिट नहीं कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आरटीआइ कार्यकर्ताओं द्वारा लंबे समय में आयोग का आडिट कराए जाने की मांग की जा रही है।
सरकार की तरफ से विभिन्न मदों में आयोग को करीब 19 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया जाता है। इसका बड़ा हिस्सा मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य सूचना आयुक्तों व अधिकारियों तथा कर्मचारियों के वेतन पर खर्च कर दिया जाता है।
आयोग की तरफ से सरकार की मंजूरी के बिना भी कई मदों में राशि खर्च की जा रही है। आयोग में कर्मचारियों व अधिकारियों की हाजिरी की व्यवस्था की गई है, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त व राज्य सूचना आयुक्तों की हाजिरी की व्यवस्था आज तक नहीं की गई है। इसके चलते आयोग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है।
राज्य सूचना आयोग का गठन वर्ष 2005 में किया गया था। इसके बाद से अभी तक 20 हजार से ज्यादा शिकायतें लंबित चल रही हैं। कई मामलों में आयोग की तरफ से अर्थदंड लगाया जाता है, लेकिन वसूूली नहीं होती है। आयोग में पारदर्शिता लाने के लिए आडिट कराया जाना जरूरी है।
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