काशी में बनने जा रहा है देश का पहला हिंदी साहित्य का भाषा संग्रहालय। 25 करोड़ रुपये के बजट से बनने वाले इस संग्रहालय में हिंदी के ख्यात साहित्यकारों की रचनाओं तस्वीरों और महत्वपूर्ण दस्तावेजों को संजोया जाएगा। साथ ही एक एम्फीथियेटर और ऑडिटोरियम भी होगा जहां साहित्यकारों के जीवन और रचनाओं पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
वाराणसी। काशी हिंदी साहित्य के निर्माण, विकास और नवजागरण का गढ़ रहा है। कबीरदास, रैदास, तुलसी दास से लेकर आधुनिक युग के भारतेंदु हरिश्चंद्र, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र, जयशंकर प्रसाद ने काशी के साहित्य को समृद्ध किया
यहां साहित्य किताबों के पन्नों तक सिमटा नहीं रहा, बल्कि मानव जीवन को भी प्रभावित किया है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। साहित्यकारों की इस धरा पर देश का पहला हिंदी साहित्य का भाषा संग्रहालय बनने जा रहा है।
25 करोड़ रुपये का बजट जारी होते ही इस पर काम शुरू हो जाएगा। म्यूजियम में हिंदी के ख्यात साहित्यकारों की रचनाओं के साथ उनकी तस्वीरें और उनसे जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज और साहित्य भी उपलब्ध होंगे। उनकी प्रतिमा भी स्थापित की जाएगी।
इस संग्रहालय में एक एम्फीथियेटर व आडिटोरियम भी बनेगा। इसमें साहित्यकारों के जीवन, उनकी रचनाएं व स्टैच्यू भी स्थापित होगी। वैसे तो रविंद्रनाथ टैगोर पर आधारित कोलकाता में साहित्य का संग्रहालय में हैं, लेकिन भाषा आधारित देश का यह पहला संग्रहालय होगा। इसमें एक गार्डेन
इसका द्वारा संस्थान से अलग रहेगा। यहां स्थित राज्य हिंदी संस्थान की निदेशक डा. चंदना रामइकबाल यादव ने बताया कि संस्थान में भूतल व तीन और तले में लांग्वेज म्यूजियम बनने जा रहा है। लगभग 25 करोड़ का स्टीमेट शासन को भेजा गया है। इसे बनाने का जिम्मा आवास विकास परिषद को दिया गया है।
वैसे संग्रहालय खोलने का प्रस्ताव पिछले साल बना था, लेकिन डीपीआर अब जाकर फाइनल हुआ है। पिछले माह यहां से इसका डीपीआर पिछले माह शासन को भेज दिया गया। अब इसका परीक्षण हो रहा है। परीक्षण होने के बाद बजट जारी होगा। इसकी थ्रीडी डिजाइन भी तैयार हो गई है, हालांकि इसपर अभी अंतिम मुहर लगनी बाकी है।
वाराणसी के प्रधानमंत्री नागरी प्रचारिणी सभा व युवा साहित्यकार व्योमेश शुक्ल ने बताया कि काशी में भाषा संग्रहालय स्थापित करने का निर्णय स्वागत योग्य। देर आयद, दुरुस्त आयद। हिंदी की मातृ भूमि में हिंदी लेखकों के अवदान का उत्सव एक शदी पहले नागरी प्रचारिणी सभा ने भाषा व साहित्य का जो बिरवा रोपा था अब वह वृक्ष बन सकेगा। हिंदी समाज बहुत महान है। वह ऐसी प्रत्येक गतिविधियों में कंधे से कंधा मिलाकर साथ देगा।
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