सरकारी स्कूल में हेडमास्टर का पावर होगा कम, अब डीएम का चलेगा ऑर्डर; निर्देश जारी
Bihar News बिहार के सरकारी स्कूलों में प्रधानाध्यापकों को ठेकेदारी व्यवस्था से मुक्ति दिलाने की तैयारी है। यानी एक तरह से कहा जा सकता है कि प्रधानाध्यापक का पावर थोड़ा कम हो जाएगा। पहले विद्यालय में किसी भी निर्माण कार्य के लिए विद्यालय शिक्षा समिति के खाते में पैसे भेजे जाते थे। जिसमें प्रधानाध्यापक की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती थी। लेकिन अब डीएम के ऑर्डर से टेंडर पास होगा।
जहानाबाद। अब स्कूलों में प्रधानाध्यापकों को ठेकेदारी व्यवस्था से मुक्ति मिलेगी। पहले विद्यालय में किसी भी निर्माण कार्य के लिए विद्यालय शिक्षा समिति के खाते में पैसे भेजे जाते थे। समिति के सचिव और प्रधानाध्यापक का संयुक्त खाता होता था। दोनों की देखरेख में स्कूलों में निर्माण कार्य कराया जाता था।
इसके लिए काम के अनुरूप राशि भेजी जाती थी। राशि की कोई सीमा नहीं होती थी। इसमें बहुते हेराफेरी की भी खबर आती थी। लेकिन अब डीएम के हाथ में टेंडर जारी करने को कहा गया है
शिक्षा विभाग ने नई नियमावली जारी की
अब शिक्षा विभाग ने नई नियमावली जारी की है। विभाग द्वारा डीएम को भेजे गए पत्र में उल्लेख किया गया है कि अब विद्यालय शिक्षा समिति 50 हजार से अधिक का सिविल वर्क नहीं कर सकती हैं। सिविल वर्क में भवन से लेकर शौचालय के निर्माण तक शामिल है। 50 हजार से अधिक राशि पर टेंडर की प्रक्रिया डीएम द्वारा संचालित की जाएगी। डीएम 50 लाख तक का टेंडर निकाल सकते हैं।
हालांकि, 50 लाख से ऊपर की राशि की स्थिति में राज्य सरकार की आधारभूत संरचना द्वारा टेंडर की प्रक्रिया की जाएगी। शिक्षा विभाग के इस निर्देश से प्रधानाध्यापकों पर गैर शैक्षणिक कार्य का दबाव कम होगा। हालांकि, कई विद्यालय के शिक्षा समिति तथा प्रधानाध्यापक के लिए यह आय का जरिया भी होता था।
कहा जाए तो एक तरह से इस मामले में प्रधानाध्यापक का पावर खत्म हो गया। इस लाभ के कारण शिक्षकों में विद्यालय के प्रभार लेने की होड़ मची रहती थी। अब शिक्षा विभाग ने इससे प्रधानाध्यापकों को मुक्त कर दिया है।
निर्माण की गुणवत्ता को लेकर होता था विवाद
प्रधानाध्यापक का मूल काम विद्यालय की व्यवस्था पर नजर रखते हुए बेहतर शैक्षणिक वातावरण स्थापित करना है। लेकिन विद्यालय के कई निर्माण कार्य में उन्हें सीधे तौर पर जुड़े रहने के कारण ग्रामीणों के बीच छवि धूमिल हो रही थी। ग्रामीण प्रधानाध्यापक को ठेकेदार के रूप में देखने लगे थे। अक्सर निर्माण कार्य की गुणवत्ता को लेकर ग्रामीण सवाल उत्पन्न करते थे।
जिससे शिक्षा समिति के सचिव के साथ-साथ प्रधानाध्यापक की बदनामी होती थी। प्रधानाध्यापक को गुरु के रूप में लोगों के बीच प्रतिष्ठा मिले, इसे लेकर बड़ी पहल की गई है। पहले से ही विद्यालय के प्रधानाध्यापकों पर कई गैर शैक्षणिक कार्य की जिम्मेदारी है। ऐसे में एक बड़ी जिम्मेदारी से उन्हें मुक्त किए जाने से विद्यालयों का शैक्षणिक माहौल बेहतर होगा।
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