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कांग्रेस को हरियाणा की हार से उबरने में अभी समय लगेगा लेकिन इस बीच पार्टी को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए खुद को तैयार करना है और पूरी ताकत के साथ मुकाबले में उतरना है। इस बीच हरियाणा की हार से सबक लेकर पार्टी इस बार वही गलती दोबारा नहीं दोहराना चाहती और अभी से इसकी तैयारियों में जुट गई है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के शीर्षस्थ नेतृत्व की प्रचार में अभियान में कम हिस्सेदारी को लेकर उठे सवालों को देखते हुए पार्टी झारखंड और महाराष्ट्र में इस चूक को दुरूस्त करने की तैयारी कर रही है। इसके मद्देनजर ही पार्टी अपने सबसे बड़े स्टार प्रचारक राहुल गांधी की इन दोनों राज्यों में व्यापक चुनावी दौरे के कार्यक्रम तय कर रही है।

चुनावी बिगुल बजने के बाद शनिवार को रांची में संविधान सम्मान सम्मेलन में पीएम मोदी-भाजपा पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को कब्जे में लेने का आरोप लगाते हुए राहुल ने झारखंड में चुनावी अभियान की एक तरह से शुरूआत कर दी। वहीं महाराष्ट्र में 21 अक्टूबर को राहुल कांग्रेस तथा उसके नेतृत्व वाले महाविकास अघाड़ी गठबंधन के चुनाव प्रचार अभियान का औपचारिक आगा

 

सीमित सक्रियता भी हार का कारण

हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस की हुई अप्रत्याशित पराजय के बाद सूबे के सामाजिक-जातीय समीकरणों की नब्ज थामने में कमजोरी के अलावा अति आत्मविश्वास को पार्टी की विफलता का मुख्य कारण माना जा रहा है। हालांकि, केंद्रीय नेतृत्व की प्रचार अभियान में आखिरी चार दिनों की सीमित सक्रियता को भी इसका एक कारण माना जा रहा है।

खासकर यह देखते हुए कि पार्टी के नेता-कार्यकर्ता भारत जोड़ो यात्रा के बाद से बीते दो सालों में राहुल गांधी की सियासी छवि में सकारात्मक बदलाव आने की बातें करने को लेकर मुखर हैं। साथ ही जनता के बीच भी वे कांग्रेस ही नहीं, संपूर्ण विपक्ष के सबसे लोकप्रिय चेहरे हैं, जो पार्टी कार्यकर्ताओं में भविष्य की उम्मीद का राजनीतिक विश्वास जगाने में कामयाब हुए हैं, लेकिन हरियाणा में चुनाव अभियान को भूपेंद्र सिंह हुडडा के हवाले कर दिया गया और राहुल गांधी चुनाव के दौरान केवल चार-दिन ही वहां रहे।

निर्णायक है झारखंड और महाराष्ट्र

प्रियंका गांधी वाड्रा भी केवल दो-तीन सभाओं तक सीमित रहीं। जम्मू-कश्मीर के चुनाव प्रचार में भी इन दोनों नेताओं की भागीदारी केवल सांकेतित ही रही। हालांकि, फारूख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने आईएनडीआईए गठबंधन की साख यहां जरूर बचा ली, मगर हरियाणा में भाजपा की जीत ने लोकसभा चुनाव के बाद विपक्षी खेमे विशेषकर कांग्रेस को मिले मनोवैज्ञानिक बढ़त को खत्म कर दिया है और महाराष्ट्र तथा झारखंड का चुनाव पार्टी की सियासत को एक बार फिर डांवाडोल होने से बचाने के लिहाज से बेहद निर्णायक है।

महाराष्ट्र में कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए चुनावी संभावनाएं भी बेहतर बताई जा रही हैं, पर हरियाणा के परिणामों के बाद पार्टी इसको लेकर आश्वस्त नहीं रह सकती। इसीलिए राहुल गांधी की महाराष्ट्र और झारखंड में दर्जनों सभाओं की रूपरेखा तैयार की जा रही है। इन दोनों राज्यों के चुनाव प्रचार अभियान की व्यस्तताओं के बीच राहुल को वायनाड लोकसभा उपचुनाव के लिए भी समय निकालना पड़ेगा, जहां से उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा अपना पहला चुनाव लड़ रही हैं।

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