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झारखंड चुनाव 2024 से पहले झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के राजनीतिक सफर पर एक नज़र। दुमका से पहली बार सांसद बनने से लेकर झारखंड राज्य के निर्माण तक जानिए कैसे शिबू सोरेन ने संघर्ष और आंदोलन के रास्ते राजनीति में अपनी जगह बनाई। शिबू सोरेन की जिंदगी में उनकी लकी जीप लक्ष्मीनिया ने भी अहम रोल निभाया है।

झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के दुमका स्थित खिजुरिया आवास पर आज भी एक जीप खड़ी है। यह कोई आम जीप नहीं है, बल्कि झामुमो को राजनीति की दुनिया में फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाली 'लकी जीप' है। झामुमो के लोग इसे लक्ष्मीनिया जीप मानते हैं। यही कारण भी है कि इस जीप को गुरुजी के आवास पर काफी संभाल कर रखा गया है। 1980 के दौर में दुमका से पहली बार सांसद चुने जाने के बाद इसी जिप पर सवार होकर शिबू सोरेन मधुपुर स्टेशन से दिल्ली की ट्रेन पर सवार हुए थे

शिबू सोरेन के साथ इस जिप पर सवारी करने वाले कई ऐसे चेहरे आज भी हैं जो उन दिनों की यादों को अपने दिलों में बसाए हुए हैं। दुमका के टीन बाजार में रहने वाले झामुमो के समर्पित व निष्ठावान कार्यकर्ता अनूप कुमार सिन्हा पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि दुमका ने शिबू सोरेन को सिर्फ राजनीतिक पहचान ही नहीं, बल्कि फर्श से अर्श तक पहुंचाया है। गुरुजी जब इस इलाके में झामुमो की राजनीति की शुरुआत किए थे तब संताल परगना में कांग्रेस का दबदबा था।

अनूप बताते हैं कि वर्ष 1980 में शिबू सोरेन पहली बार दुमका से सांसद चुने गए थे। इससे पहले लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से स्व.साइमन मरांडी मछली छाप चुनाव चिह्न पर विधायक बन चुके थे। तब गुरुजी का चुनावी प्रबंधन का काम कुछेक कार्यकर्ताओं के ही जिम्मे था जिसमें प्रो.स्टीफन मरांडी, विजय कुमार सिंह समेत कई चेहरे खास थे। अनूप कहते हैं कि तब अखंड बिहार का दौर था और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की राजनीति का सिक्का बिहार से लेकर केंद्र में चलता था।

जल, जंगल और जमीन के मुद्दे को उभार कर झारखंड अलग राज्य के अगुआ शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन को धार देकर देखते ही देखते आदिवासियों के दिसोम गुरु बन गए थे। यह दौर वर्ष 1970 का था। वर्ष 1970-80 का दशक शिबू सोरेन के लिए संघर्ष व आंदोलन के दिन थे, लेकिन जब उन्होंने संताल परगना की धरती पर कदम रखा तो उन्हें यहां की धरती रास आ गई। दुमका ने उन्हें राजनीतिक पहचान दे दी।

पहली बार शिबू सोरेन 1980 में दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीतकर दिल्ली पहुंच गए। इसके बाद फिर शिबू सोरेन कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे। गुरुजी दुमका को अपनी कर्मभूमि बनाकर सत्ता शीर्ष तक पहुंच गए। यह उनके राजनीतिक कद का ही परिणाम था कि वर्ष 1995 में अलग झारखंड राज्य का पहला पड़ाव जैक के तौर पर बिहार सरकार से हासिल किया था।

दुमका के टीन बाजार में बनती थी संघर्ष और आंदोलन की रणनीति

अनूप बताते हैं कि दुमका के टीन बाजार में उनके खपरैल मकान में अलग झारखंड राज्य आंदोलन की रणनीति बनती थी। गुरुजी जब कभी दुमका आते थे तब अपने पूरे कुनबे के साथ बैठकर संघर्ष और आंदोलन की रणनीति बनाते थे। अनूप कहते हैं कि उस दौर में संसाधनों की घोर कमी थी। संताल परगना के इलाके जंगल व पहाड़ों से आच्छादित था। आवागमन को लेकर सुगम सड़कें नहीं थीं। ऐसे में गांव-गांव में घूमने के लिए एक सेकेंड हैंड जीप पर सवार होकर गुरुजी अपने कुनबे के साथ यात्रा करते थे। जहां रात हुई वहीं ठहर गए। जीप में डीजल खत्म नहीं हो इसका भी पुख्ता इंतजाम रहता था।

प्लास्टिक के डब्बे में डीजल भरकर साथ ले जाते और इमरजेंसी में उसका इस्तेमाल करते। कभी-कभी जीप को धक्का मारकर भी स्टार्ट करना पड़ता था। अनूप कहते हैं कि समय के साथ बहुत कुछ बदलाव हो रहा है। दुमका से पहले उनके पुत्र हेमंत सोरेन और अब बसंत सोरेन विधायक हैं। गुरुजी के आंदोलन व संघर्ष के बाद अलग राज्य झारखंड भी अब युवा हो चुका है और सत्ता की चाबी झामुमो के पास है।

पहली बार जामा से विधायक चुने गए थे गुरुजी

अनूप बताते हैं कि वर्ष 1984 में गुरुजी कांग्रेस के पृथ्वीचंद किस्कू से चुनाव हार गए थे। इसके बाद हुए विधानसभा के चुनाव में शिबू सोरेन जामा से चुनाव लड़कर पहली बार विधायक बने। वर्ष 1991 में हुए चुनाव में झामुमो ने अपने दम पर झारखंड के 14 में से छह सीटों पर कब्जा जमाने में सफलता हासिल कर सबको चौंका दिया था। इसमें संताल परगना की तीनों सीट दुमका, राजमहल और गोड्डा भी शामिल थी।

तब दुमका से शिबू सोरेन, राजमहल से साइमन मरांडी और गोड्डा से सूरज मंडल ने चुनाव जीता था और ट्रिपल एस के नाम से मशहूर हुए थे। झामुमो ने 1996 में झारखंड क्षेत्र के 14 सीटों पर प्रत्याशियों को उतारा था लेकिन शिबू सोरेन को छोड़ कर झामुमो के दूसरे प्रत्याशी चुनाव हार गए थे। अनूप कहते हैं कि शिबू सोरेन का एक बार विधायक व आठ बार सांसद बनना उनके करिश्माई छवि का ही कमाल है।