बिहार में 2 अक्टूबर से जन सुराज अभियान राजनीतिक दल में बदलने जा रहा है। प्रशांत किशोर इसके सूत्रधार होंगे लेकिन कोई पद नहीं लेंगे। पहला अध्यक्ष अनुसूचित जाति से होगा और 25 सदस्यीय संचालन समिति होगी। बिहार में नए राजनीतिक दल के लिए उत्सुकता है खासकर प्रशांत किशोर के व्यक्तित्व के कारण। अब जनसुराज पार्टी आने वाले विधानसभा चुनाव में दूसरे दलों को चुनौती दे सकती है।
पटना। अब तक एक अभियान रहा जन सुराज गांधी जयंती पर बुधवार को राजनीतिक दल के स्वरूप में परिवर्तित हो जाएगा। पटना में वेटनरी कालेज का परिसर इसका साक्षी बनेगा। वहां पांच हजार लोगों के बैठने की क्षमता वाला विशाल मंच तैयार हो चुका है। उसी मंच से दोपहर दो बजे जन सुराज के अध्यक्ष व संचालन समिति की घोषणा होगी
उल्लेखनीय है कि दो वर्ष पहले गांधी जयंती पर ही पश्चिम चंपारण जिला में भितिहरवा से जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) ने पदयात्रा की शुरुआत की थी। आधिकारिक दावा है कि एक करोड़ संस्थापक सदस्य मिलकर जन सुराज का गठन कर रहे। सफलता-विफलता का आकलन बाद में, अभी राजनीति के पुस्तक मेंं एक नया अध्याय जुड़ रहा है।
एक वर्ष की पदावधि वाला पहला अध्यक्ष अनुसूचित जाति से
यह अध्याय वस्तुत: बिहार का है, लेकिन इसे पढ़ने-समझने के लिए पूरा देश उत्सुक है। इसका कारण पीके की अपना व्यक्तित्व है। हालांकि, वे राजनीतिक दल के रूप में जन सुराज में कोई पद ग्रहण नहीं करेंगे। एक वर्ष की पदावधि वाला पहला अध्यक्ष अनुसूचित जाति से होगा।
गांव-जवार की उनकी पदयात्रा जारी रहेगी और पर्दे के पीछे से वे जन सुराज के अध्यक्ष व संचालन समिति को अपना परामर्श देते रहेंगे।
संचालन समिति में 25 सदस्य होंगे
पार्टी के संदर्भ में किसी भी निर्णय के लिए अधिकृत संचालन समिति में 25 सदस्य होंगे। इस घोषणा के साथ संविधान समिति भी घोषित हो सकती है, जो राजनीतिक दल के रूप में जन सुराज का संविधान तैयार करेगी। बहरहाल स्थापना सम्मेलन में सहभागिता के लिए पूरे बिहार से समर्थकों, कार्यकर्ताओं और नेताओं का जुटान होना है। इसके लिए पिछले कई दिनों से वेटनरी कालेज परिसर में तैयारी चल रही थी। वहां हजारों लोगों के बैठने और खाने-पीने की व्यवस्था हुई है। पूरे पटना में जन सुराज के होर्डिंग्स टंग चुके हैं।
बनते-बिगड़ते रहे दलों के दौर में बिहार को मिल रहा जन सुराज
बिहार का मिजाज तो वैसे भी फिरंट रहता है। बारंबार के पुराने प्रयोगों से वह बिदक जाता है तो नए दावे से मुंह फेर लेने में भी नहीं हिचकता। इसका प्रमाण पिछले वर्षों में बनते-बिगड़ते रहे राजनीतिक दल हैं। अब बारी जन सुराज की है, जो अब अभियान का चोला उतार राजनीतिक दल की काया में समा रहा है
बिहार के लिए इसे एकमात्र विकल्प बता रहे सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) का दावा है कि इसकी रीति-नीति राजनीति को जिम्मेदार बनाने वाली होगी। इसी आधार पर जन सुराज की सफलता और स्थायित्व का दावा है।पिछले दो दशक में बिहार में लगभग एक दर्जन राजनीतिक दल अस्तित्व में आए। इनमें से सर्वाधिक चार पार्टियों का गठन तो अकेले उपेंद्र कुशवाहा ने कर दिया।
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