मध्य प्रदेश में जबलपुर एक प्रमुख पर्यटन स्थल में शामिल है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। यहा के प्रमुख आकर्षण में भेड़ाघाट और धुआंधार जलप्रपात शामिल हैं। नवरात्रि और दशहरा के दौरान यह शहर अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का अद्वितीय प्रदर्शन प्रस्तुत करता है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं।
जबलपुर। प्रदेश के मध्य में बसे जबलपुर में भेड़ाघाट और धुआंधार जलप्रपात के इतर पयर्टन की समृद्ध झलक दिखाई देती है। नर्मदा तट पर बसा यह प्राचीन नगर नवरात्र और दशहरा में संस्कृति व इतिहास की अनूठी त्रिवेणी के दर्शन कराता है
यदि आप इस शारदेय नवरात्र में कोलकाता, मैसूर या दिल्ली नहीं जा रहे हैं तो जबलपुर चले आइए। यहां आपको कोलकाता की ही तर्ज पर जगराता वाले अविस्मरणीय दुर्गोत्सव का दर्शन होगा। मैसूर की भांति दशहरा समारोह देखने को मिलेगा।
यही नहीं दिल्ली की रामलीला का आनंद भी यहां मिल जाएगा। इन तीनों बड़े शहरों में दुर्गोत्सव, दशहरा व रामलीला का पृथक-पृथक आनंद मिलता है, जबकि जबलपुर इन तीनों के आनंद का समुच्चय है।
1865 में हुई थी रामलीला मंचन की शुरुआत
नवरात्र के दिनों में जबलपुर के मिलौनीगंज क्षेत्र में गोविंदगंज रामलीला का मंचन देखते ही बनता है। इसका शुभारंभ 1865 में हुआ था। इसके अलावा गढ़ा, सदर, कांचघर, अधारताल व रांझी की रामलीला भी मनोहारी होती है। इसी प्रकार गढ़ा फाटक और पड़ाव की महाकाली, नगर सेठानी सुनरहाई की परंपरागत बुंदेलखंडी शैली वाली, करोड़ों के गहनों के विभूषित दुर्गा प्रतिमाएं सम्मोहित कर लेती हैं।
जिन झांकियों में मातारानी की स्थापना की जाती है, उनका स्वरूप नवाचार से ओतप्रोत होता है। संजीवनी नगर, गोराबाजार और गोंडवाना दुर्गोत्सव समिति, गढ़ा आदि की झांकियों को देखकर दर्शनार्थी बरबस ही वाह कह उठते हैं। प्रत्येक समिति अपने पंडाल ही नहीं दोनों ओर सड़क पर लंबी दूरी तक प्रकाश-सज्जा करती है, इससे उत्सव का इंद्रधनुष खिल जाता है।
जब विजयादशमी चल समारोह की बारी आती है, तब मुख्य चल समारोह से लेकर उपनगरीय क्षेत्रों गढ़ा, पुरवा, सदर, रांझी, अधारताल आदि के दशहरा जुलूस मन मोह लेते हैं।
बच्चे रावण, कुंभकरण, मेघनाद के विशालकाय पुतलों को देखकर खिलखिला उठते हैं। दुलदुलघोड़ी और शेरनृत्य थिरकन पैदा कर देते हैं। इन सबसे पहले पंजाबी दशहरा का आयोजन होता है, जो अपनी आसमानी आतिशबाजी व भव्यता के लिए समूचे विश्व में चर्चित हो चुका है।
सड़क, रेल व वायुसेवा की सुविधा भरपूर
जबलपुर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग, रेलमार्ग व वायुसेवा की भरपूर सुविधा है। डुमना हवाई अड्डे, सिविल लाइन स्थित रेलवे स्टेशन या अंतरराज्यीय बस स्थानक, विजय नगर से जबलपुर के मध्य विश्राम उपरांत विश्वप्रसिद्ध धुंआधार जलप्रपात और भेड़ाघाट की संगमरमरी वादियों से दो-चार होकर आनंदित हुआ जा सकता है।
यहां शरदपूर्णिमा के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाला शरदपूर्णिमा महोत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध हो चुका है। मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड और जिला पुरातत्व पर्यटन और संस्कृति परिषद के इस आयोजन में संगमरमर की वादियों और नर्मदा के तीव्र वेग पर गिरती चांदनी के बीच सुरों की सरिता बहती है ।
कल्चुरी व गोंडवान काल से आरंभ दुर्गोत्सव की परंपरा होती रही है समृद्ध
इतिहासकार डॉ. आनंद सिंह राणा के अनुसार जबलपुर में कल्चुरीकाल व गोंडवान काल से लेकर वर्तमान तक दुर्गापूजा जस की तस अनवरत है।
1872 में बृजेश्वर दत्त ने सर्वप्रथम दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की थी। जिसके तीन वर्ष बाद अंबिकाचरण बंदोपाध्याय और फिर आठ वर्ष बाद 1878 में कलमान सोनी ने मूर्तिकार मिन्नीप्रसाद प्रजापति द्वारा बुंदेली शैली में निर्मित सुनहरहाई की दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की थी।
कालांतर में उपनगरीय क्षेत्रों गढ़ा आदि में दुर्गा प्रतिमाएं स्थापित की जाने लगीं। वर्तमान में इनकी संख्या सहस्त्राधिक हो गई है। बीसवीं सदी में मुख्य दशहरा चल समारोह 150 प्रतिमाओं के साथ 24 घंटे चलता था, किंतु अब यह विक्रेंद्रीकृत होकर उपनगरीय क्षेत्रों के पृथक-पृथक दशहरा चल समारोह के रूप में विभक्त हो गया है।
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