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मध्य प्रदेश के इंदौर में लालबाग के पास स्थित कर्बला मैदान के मालिकाना हक को लेकर जिला न्यायालय ने अपने अहम फैसले में वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया। जिला न्यायालय ने व्यवहार न्यायाधीश के पांच साल पुराने आदेश को पलटते हुए यह निर्णय दिया है। इसके साथ ही कर्बला की कुल करीब 6.70 एकड़ जमीन पर नगर नगर निगम के पक्ष में डिक्री पारित कर दी।

इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर में लालबाग के पास स्थित कर्बला मैदान के मालिकाना हक को लेकर जिला न्यायालय ने अपने अहम फैसले में वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया। सभी तथ्यों और पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि कर्बला मैदान की जमीन का मालिक नगर निगम है, न कि वक्फ बोर्ड या मुसलमान कर्बला मैदान कमेटी।

जिला न्यायालय ने व्यवहार न्यायाधीश के पांच साल पुराने आदेश को पलटते हुए यह निर्णय दिया है। इसके साथ ही कर्बला की कुल करीब 6.70 एकड़ जमीन पर नगर नगर निगम के पक्ष में डिक्री पारित कर दी। वक्फ बोर्ड के लिए यह बड़ा झटका है, क्योंकि वर्ष 1984 में ही यह जमीन उसके नाम रजिस्टर्ड हो चुकी थी

नगर निगम ने जिला न्यायालय में अपील की

पांच साल पहले भी नगर निगम ने जमीन पर स्वामित्व का दावा किया था, लेकिन मई 2019 में व्यवहार न्यायालय ने निरस्त कर दिया था। इसके खिलाफ नगर निगम ने जिला न्यायालय में अपील की। अपील में पंच मुसलमान कर्बला मैदान कमेटी और वक्फ बोर्ड को पक्षकार बनाया गया। नगर निगम ने तर्क दिया कि जमीन का मालिक वह है।

मैदान से लगी सरस्वती नदी के पास मात्र 0.02 एकड़ भूमि ताजिए ठंडे करने के उपयोग में आती है। इससे आगे बढ़कर वक्फ बोर्ड व प्रतिवादी पूरी जमीन पर अतिक्रमण का प्रयास कर रहे हैं। वक्फ बोर्ड व मुस्लिम पंच ने तर्क दिए कि 150 साल पहले होलकर राजा ने पूरी जमीन मोहर्रम की परंपरा निभाने और ताजिए ठंडे करने के लिए दी थी। इसी आधार पर 29 जनवरी 1984 को वक्फ संपत्ति के रूप में इसका रजिस्ट्रेशन भी हो चुका है।

कोर्ट ने कहा कि नगर निगम प्रमाणित करने में सफल रहा है कि नगर पालिक निगम में भूमि होने से वह इसका स्वामी और आधिपत्यधारी है। हालांकि, निगम ने अतिक्रमण कर दीवार बनाने की जो शिकायत की थी, वह साबित नहीं हो रही।

लिहाजा अदालत ने नगर निगम के पक्ष में स्वामित्व की डिक्री तो पारित करने का निर्णय सुनाया, लेकिन वक्फ बोर्ड और मुस्लिम पक्ष के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा जारी करने से इनकार कर दिया। अदालत में मुस्लिम पक्ष यह प्रमाणित करने में सफल रहा कि मोहर्रम पर मुस्लिम समुदाय के लोग 150 वर्षों से संपत्ति के भाग पर ताजिए ठंडे करने का धार्मिक कार्य करते चले आ रहे हैं, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि संपत्ति वक्फ बोर्ड की है।