हरियाणा विधानसभा चुनाव में दो ही जाति-वर्गों को लेकर सियासी शोर सुनाई दिया एक जाट और दूसरे दलित। इस शोर के इतर भाजपा ने ध्यान शांत खेमे की ओर लगाया। तमाम विश्लेषक मान रहे हैं कि जाट बनाम गैर जाट ओबीसी की लड़ाई में गैर जाट ओबीसी भाजपा को अधिक मिला और इसी तरह मायावती के सजातीय जाटव वोट से अधिक प्रयास भाजपा ने अन्य दलितों के लिए किया।
संविधान और आरक्षण का मुद्दा अपने ढंग से प्रचारित कर भाजपा के दलित वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल रहे सपा-कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए हरियाणा ने अलार्म बजाया है। 21 प्रतिशत दलित आबादी वाले इस राज्य में जिस तरह दलित मतदाताओं के बदले रुख ने कांग्रेस के हाथ से संभावित जीत छीन ली, वह आने वाले चुनावों के लिए भी संभावनाओं-आशंकाओं की जमीन तैयार कर सकता है।
बसपा लगातार कमजोर
इसकी पहली परख कुछ समय में ही उत्तर प्रदेश की दस विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में हो सकती है। इन परिणामों से संकेत मिल सकता है कि बसपा के लगातार कमजोर होने के बाद नया ठीहा तलाश रहे दलित मतदाता भाजपा की ओर यू-टर्न लेते हैं या आईएनडीआईए पर ही भरोसा बनाए रखना चाहते हैं
बुरी तरह बिखर गया जाटव वोट
सर्वे रिपोर्ट बता रही हैं कि जाटव वोट बुरी तरह बिखर गया। 50 प्रतिशत कांग्रेस को मिला और 35 प्रतिशत भाजपा को। बाकी में बसपा, आजाद समाज पार्टी व अन्य की हिस्सेदारी हो गई। वहीं गैर जाटव अन्य दलितों में 45 प्रतिशत वोट भाजपा ले गई, जबकि कांग्रेस को करीब 30 प्रतिशत मिला। यहां दलितों के लिए कांग्रेस के साथ समान विकल्प भाजपा भी दिखाई दी
दलित वोट बैंक ने बिगाड़ा था भाजपा का गणित
- इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में दलितों का जो रुख था, उसने भाजपा के गणित को बिगाड़ दिया। न सिर्फ हरियाणा में भाजपा को कमजोर किया, बल्कि 21 प्रतिशत ही दलित आबादी वाले उत्तर प्रदेश में इसका खास असर दिखाई दिया।
- सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) तो कांग्रेस द्वारा गढ़े गए संविधान व आरक्षण बचाओ के नैरेटिव ने उस दलित को भाजपा से काफी दूर कर दिया, जो 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार उसे मजबूत कर रहा था।
- तमाम रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भाजपा को दलितों का वोट 2019 में मिले 41 प्रतिशत से घटकर 35 प्रतिशत पर आ गया और विपक्षी गठबंधन का वोट 18 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 46 प्रतिशत पर पहुंच गया।
- इनमें मायावती के सजातीय जाटव वोट में भाजपा का हिस्सा मात्र 10 प्रतिशत था, जबकि सपा-कांग्रेस को 30 और बसपा को 60 प्रतिशत मिला।
दलितों ने फिर भाजपा का रुख किया
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में मायावती सजातीय वोट पर अभी भी पकड़ रखती हैं, लेकिन हरियाणा चुनाव ने संकेत दे दिया है कि गैर जाटव दलितों ने फिर भाजपा का रुख किया है। इन वर्गों के रुख का पता दस सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव से चल सकता है, क्योंकि इनमें से मिल्कीपुर, फूलपुर, मीरापुर, मझवां, सीसामऊ, कटेहरी आदि सीटों पर दलित अच्छी संख्या में हैं। इन सीटों पर पिछड़ों और मुस्लिमों का भी बहुत असर ह
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