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2030 तक भारत का सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग का कारोबार 500 अरब डॉलर का हो जाएगा और इनमें इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स की हिस्सेदारी 150 अरब डॉलर की होगी। इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी भी कुल वाहनों में लगातार बढ़ रही है। दोपहिया वाहनों में यह हिस्सेदारी पांच प्रतिशत से अधिक हो गई है। इस निवेश से ताइवान की कंपनियों को भी फायदा होगा। 

उभरते हुए पांच सेक्टर में इन दिनों काफी गंभीरता से ताइवान से निवेश लाने की तैयारी चल रही है। उद्योग संगठन फिक्की का मानना है कि ताइवान से इन पांच सेक्टर में 15 अरब डॉलर के निवेश की गुंजाइश है। इस संबंध में ताइवान और भारत की कंपनियों की सीईओ स्तर की बैठक भी ताइपे में आयोजित की गई थीं।

मंगलवार को जारी फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक, इन पांच सेक्टर में ताइवान की कंपनियों की महारत है और इस निवेश से ताइवान की कंपनियों को भी फायदा होगा।

ये हैं उभरते हुए पांच सेक्टर

  1. प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (पीसीबी)
  2. इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स (इलेक्ट्रो-मैकेनिकल कंपोनेंट्स सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक मोटर्स)
  3. सीसीटीवी सिस्टम
  4. स्मार्ट हेल्थकेयर डिवाइस (स्मार्टवाच, हार्टरेट मानिटर, फिटनेस ट्रैकर)
  5. इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर

भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलेगी गति

सीईओ स्तर की बैठक में यह बात सामने आई कि इन पांच सेक्टर में 15 अरब डॉलर तक का निवेश कर ताइवान की कंपनियां 60 अरब डॉलर का फायदा उठा सकती हैं, क्योंकि पिछले तीन सालों से भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति से विकास कर रही है और ये कंपनियां भारतीय बाजार की जरूरतों को पूरा करने के साथ निर्यात भी कर सकेंगी।

सस्ता श्रम भी उपलब्ध

सरकार सेमीकंडक्टर मिशन और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम के तहत निवेश के लिए वित्तीय सहायता भी दे रही है। इसके अलावा उन्हें सस्ता श्रम भी उपलब्ध होगा, क्योंकि भारत में इंजीनियरिंग, विज्ञान व गणित में हर साल लाखों की संख्या युवा ग्रेजुएट हो रहे हैं। हर साल भारत में पांच लाख बच्चे इंजीनियरिंग की डिग्री ले रहे हैं। भारतीय श्रमिकों का मेहनताना भी एशिया के कई देशों से कम है

कई कंपनियां पहले से ही भारत में कर रही हैं काम

फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत रणनीतिक रूप से भी ताइवान के अनुकूल है। फाक्सकान, विस्ट्रान जैसी कई ताइवानी कंपनियां पहले से भारत में काम कर रही है। फिक्की के मुताबिक चीन से राजनीतिक तनातनी के बाद ताइवान के लिए भारत रणनीतिक रूप से भी जरूरी हो गया है। 

बासुआन गेर, भारत में ताइपे इकोनमिक एंड कल्चर सेंटर के प्रतिनिधि

 

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