जहां एक ओर पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के चलन को खत्म करने के प्रयास किए जा रहे हैं तो वहीं नए राज्यों में अब ये बीमारी फैल रही है। इससे होने वाले संकट को नजरअंदाज किया जा रहा है और घटनाओं की रिपोर्टिंग भी उस तरह से नहीं हो रही है। लेकिन विशेषज्ञ इसे लेकर लगातार चिंता जता रहे हैं।
सांसों के लिए गंभीर संकट बनी पंजाब और हरियाणा की पराली जलाने की बीमारी से अभी पीछा भी नहीं छूटा है। इससे पहले यह बीमारी देश के दूसरे राज्यों में दस्तक देने लगी है। अभी औपचारिक रूप से निगरानी तो शुरू नहीं हुई है, लेकिन बिहार, छ्त्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, ओडिशा व पश्चिम बंगाल के अधिकारी भी मानने लगे हैं कि ये राज्य नए एपिक सेंटर बन सकते हैं।
यह बात अलग है कि अभी इन राज्यों में पंजाब-हरियाणा जैसी पराली जलाने की घटनाओं की रिपोर्टिंग नहीं शुरू हुई की है, लेकिन बैठकों और चर्चाओं में इसे लेकर चिंता जरूर जताई जाने लगी है। पिछले दिनों केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की राज्यों के साथ वायु प्रदूषण को लेकर हुई बैठक में भी यह मुद्दा चर्चा में आया है।
विशेषज्ञों ने दिया सुज्ञाव
इस दौरान विशेषज्ञों ने सभी राज्यों से इसे गंभीरता से लेने का सुझाव भी दिया। चिंता की बात यह है कि पराली जलाने के बढ़ते प्रचलन के बावजूद इन राज्यों में औपचारिक रूप से इसकी निगरानी की व्यवस्था नहीं बनाई गई है। न तो रिपोर्टिंग हो रही है और न ही इसके जागरुकता के लिए कोई शुरूआत हुई है। जाहिर है कि ऐसे में इन राज्यों की आंखें तब खुलेंगी जब स्थिति का प्रकोप फैल जाएगा।
पराली जलाने के पीछे बड़ी वजह खेती में मशीनों के बढ़ते इस्तेमाल और मजदूरों की कमी का माना जा रहा है। जिसके चलते धान व गेंहू की फसलों की ज्यादातर कटाई मशीनों से की जा रही है। जो इन फसलों को जमीन से कटाने की जगह काफी ऊपर से काट देती है। बाद में उसे नष्ट करने के लिए किसानों के पास सबसे सस्ता व आसान तरीका आग लगाना होता है।
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