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बरेली न्यूज़: नाबालिग के अपहरण व छेड़छाड़ में मुल्जिम निकला निर्दोष, वादी और पुलिस के खिलाफ होगा एक्शन

 नाबालिग के अपहरण व छेड़छाड़ से जुड़े मामले में मात्र सात माह के भीतर निर्णय आया है। किशाेरी के पिता के लगाए आरोप पर पुलिस ने भी चार्ज शीट दाखिल कर दी थी। जिसके बाद कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी देते हुए मामले की परतें खाेलीं। विवेचन को गहराई से सच्चाई की पड़ताल करनी चाहिए थी।

 बरेली:- नाबालिग का अपहरण कर उसके साथ छेड़छाड़ के मामले में अदालत ने आरोपित को निर्दोष पाते हुए बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले में प्रतिवादी के अधिकारों का भी ध्यान रखना चाहिए था।

इस बात को गृहमंत्री अमित शाह से जुड़े एक पुराने मामले से स्पष्ट करते हुए अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने फैसला सुनाया है। वादी व पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध एक्शन लेने को एसएसपी को निर्णय की प्रति भेजी है।

घटनाक्रम सीबीगंज का है। किशोरी के पिता ने पस्तौर निवासी पंकज, उसकी मां व दो भाइयों के विरुद्ध बेटी को अगवा कर उसके साथ छेड़छाड़ के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया था। उन्होंने बताया कि बेटी घर के बाहर कूड़ा डालने गई थी। फिर वापस नहीं लौटी।

पुलिस ने आरोप पत्र किया था दाखिल

पुलिस ने विवेचना में पंकज के विरुद्ध आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल किया। अदालत ने विवेचना में लापरवाही पकड़ी। पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए टिप्पणी करते हुए लिखा कि विवेचक ने गहराई से मुकदमे की विवेचना किए बिना आरोप पत्र दाखिल कर दिया। विवेचक को मामले की सच्चाई तक जाना चाहिए था। विवेचक ने पीड़ित के बजाय वादी की निशानदेही पर घटनास्थल का नक्शा नजरी बनाया। पीड़ित ने पुलिस व अदालत में अलग-अलग बयान दिए। पीड़ित की जन्मतिथि भी भिन्न-भिन्न बताई 

कोर्ट ने उल्लेख किया कि वादी ने गांव के अंदर से अपनी बेटी को उठाकर ले जाने की बात कही। घनी आबादी में एक व्यक्ति किसी लड़की को अकेले उठाकर कैसे ले जा सकता है? यह संभव नहीं है। विवेचक ने अदालत में दिए पीड़ित के बयानों को ब्रह्म वाक्य मानकर चार्जशीट लगा दी। वादी व पुलिस अधिकारियों की लापरवाही से आरोपित पंकज चार माह तक जेल में रहा, जिसके लिए उसे मुआवजा मिलना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की एक नजीर का दिया हवाला

गृहमंत्री अमित शाह से जुड़ी 2013 की सुप्रीम कोर्ट की एक नजीर का हवाला देते हुए कोर्ट ने उल्लेख किया कि मुलजिम को भी विवेचना में अपना पक्ष रखने का अधिकार प्राप्त है। पीड़ित को न्याय दिलाने के साथ-साथ आरोपित के अधिकारों की रक्षा करना भी कोर्ट का दायित्व है। इस मामले में पुलिस ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है। इसलिए विवेचक अमीचंद्र शर्मा, तत्कालीन थानाध्यक्ष राधेश्याम व तत्कालीन क्षेत्राधिकारी द्वितीय के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। सात महीने के भीतर कोर्ट से पंकज को इंसाफ मिल गया।

 

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