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मेरठ समाचार

किसानों के महानायक की पुण्यतिथि आज मनाई जा रही है। स्वर्गीय चाैधरी चरणसिंह को जब भी ली सत्ता में आए उन्होंने गरीबों के हक कानू बनाए। अंतिम समय में उनके पास न घर था और न कार और और जमीन थी।

 

भारत रत्न चौधरी चरण सिंह। किसानों के ऐसे चैंपियन जिन्होंने सत्ता हाथ में आते ही जमींदारी का खात्मा कर दिया। रातों-रात किसानों को जमीन का मालिक बनाया। चकबंदी कर अलग-थलग पड़े किसानों के खेत एक जगह कर दिए। मंडल कमीशन का गठन कर सामाजिक न्याय की लड़ाई की नींव पुख्ता की। किसानों का यह महानायक सहकारिता खेती के विरोध में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से भिड़ गया। 

इंदिरा गांधी ने संजय गांधी पर चल रहे मुकदमे वापसी के लिए दबाव बनाया तो प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ दी। दुनिया को अलविदा कहते वक्त उनके पास न अपना कोई घर था, न खेती की जमीन और न कार। बीमारी से लड़ने में 22 हजार के बैंक बैलेंस में से केवल 4500 की रकम बची थी। उनके पास न खेती थी और न अंतिम वक्त में अपना निजी मकान। वह जीवन भर गांव, गरीब, किसान और खेत के लिए लड़े। हालात कभी उनका हौसला तोड़ न सके। बेहतरी की जंग के जज्बे ने उन्हें किसानों का मसीहा बना दिया। इसी पूंजी के बदौलत वह किसानों के दिलों में आज भी बसते हैं।

किसानों को सियासत पर निगाह रखना सिखाया
23 दिसंबर वर्ष 1902 में मेरठ जिले के (अब हापुड़ में) नूरपुर की मंडैया गांव में झोपड़ी में जन्मे चौधरी चरण सिंह ने देश के पांचवे प्रधानमंत्री रहे। उपप्रधानमंत्री और दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने किसानों को स्वाभिमान के साथ जीने और सियासत पर निगाह रखने का सलीका सिखाया। आर्थिक संकट से जूझता उनका परिवार नूरपुर की मंडैया से जानी के पास भूपगढ़ी गांव में चला गया। लेकिन दो जून की रोटी की लड़ाई यहां से भी उनके परिवार को खरखौदा के निकट स्थित भदौला गांव ले गई। किसी तरह चरण सिंह ने पढ़ाई पूरी की और मेरठ आगरा यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री हासिल कर ली। 29 मई 1987 को इनका देहांत हो गया था। 

सुबह पीते थे गाय का दूध
चाैधरी चरणसिंह सुबह गाय का दूध पीते थे। नरेंद्र सिंह एडवोकेट को किसानों के मुकदमे फ्री में लड़ने का ईनाम मिला और चौधरी चरण सिंह ने उन्हें छपरौली से विधानसभा का टिकट दे दिया। नरेंद्र सिंह ने जीत का चौधरी साहब का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया। चौधरी साहब इससे खुश हुए और शाबाशी दी। नरेंद्र सिंह ने कहा कि यह चौधरी साहब के प्रति छपरौली के लोगों का ही प्रेम था कि घर से बिना एक भी पैसा खर्च किए वह पांच बार विधायक चुने गए। 

बागपत से रहा  सबसे ज्यादा जुड़ाव 
किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह का निधन हुए भले ही 37 साल बीत गए हों। मगर वह आज भी बागपत के लोगों के दिलों में बसते हैं और लोगों को उनसे जुड़ी हर बात आज भी याद है। वह किसानों के हित की लड़ाई हमेशा लड़ते रहे और सत्ता में रहते हुए किसानों के हित में कई बड़े फैसले भी लिए। बागपत भले ही चौधरी चरण सिंह की जन्मभूमि नहीं हो। लेकिन बागपत से उनके पूरे जीवन का जुड़ाव रहा। यहां के छपरौली से पहली बार 1937 में विधायक बने और वह बागपत से एक भी चुनाव नहीं हारे। चौधरी साहब सिद्धांतों से कभी पीछे नहीं हटते थे। चौधरी साहब ने इंदिरा गांधी का निमंत्रण ठुकराकर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 

छपरौली ने दी चौधरी साहब को बड़ी ताकत
चौधरी साहब ने वर्ष 1937 में छपरौली से विधानसभा का चुनाव जीता। इसके बाद 1946, 1952, 1962 और 1967 में छपरौली से लगातार विधायक चुने गए। वर्ष 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना आदि विभागों में कार्य किया। जून 1951 कैबिनेट मंत्री बने। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने लिए कुछ करने के बजाए वह दिन रात किसानों के लिए ही जुटे रहे। चुनाव आते तो छपरौली गांव-गांव गली-गली निकल पड़ते। रात में किसानों के घरों में ही रुकते और उन्हीं से चुनाव के लिए एक वोट और एक नोट मांगते। ऐसे जो चंदा इकट्ठा होता उसी से पार्टी चलती। 
 

कमाल की याददाश्त, लंबे भाषण देते थे
चौधरी चरण सिंह के करीबी और छपरौली से पांच बार विधायक रहे चौधरी नरेन्द्र सिंह एडवोकेट बताते हैं कि सर्दियां आती थीं तो वह पूछते अब तो कोल्हू चल पड़े हैं। पार्टी दफ्तर में जो कर्मचारी काम कर रहे हैं उन्हें कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिली। सर्दी है सो इन्हें भी लिहाफ-रजाई तो चाहिए ही। तब वह बागपत जिले के बड़ौत में एक पब्लिक मीटिंग रखते और उसमें जो चंदा मिलता उससे कर्मचारियों की तनख्वाह और दूसरे बिल चुकाते थे। वह किराये की गाड़ी लेकर आते थे और गांवों में चौपालों पर बैठकर लंबे-लंबे भाषण देते थे। उनका कोई भाषण तीन घंटे से कम का नहीं होता था। वह किसानों और कार्यकर्ताओं से कहा करते थे कि अगर प्रेस उनकी तारीफ करने लगे तो समझ लेना कि चरण सिंह में कहीं कोई गड़बड़ हो गई है। 

दाढ़ी बनाते हुए सुनते थे कार्यकर्ताओं की बातें
चौधरी चरण सिंह के कहने पर 1952 पीसीएस की नौकरी छोड़ने वाले चौधरी जयपाल सिंह नौरोजपुर 93 वर्ष के हो चुके हैं। वह कहते हैं कि चौधरी साहब दाढ़ी खुद ही बनाते थे और उस वक्त कार्यकर्ताओं की बातें गंभीरता से सुनते थे। चरण सिंह के जन्म स्थान नूरपुर की मंडैया गांव के पीतम सिंह ने मुझे बताया था कि चौधरी साहब की खूबी थी कि जो कह दिया वही कर दिया। उनकी याददाश्त और लोगों की पहचान कमाल की थी। एक बार बुलंदशहर में एक जनसभा में आए तो भीड़ में सामने बैठे फकीर अल्ला मेहर का नाम माइक से बुलाकर अपने पास बुला दिया। बोले ऐसे क्यों देख रहे हो हम दोनों चौथी क्लास में साथ-साथ पढ़े हैं। 

 

चाैधरी साहब को भेजा संदेश
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चौधरी साहब को संदेश भेजा कि संसद में बहुमत साबित करने से पहले वह उनके आवास पर चाय पीकर जाएं। इंदिरा गांधी देशभर में संदेश देना चाहतीं थीं कि चौधरी साहब उनके घर समर्थन मांगने आए हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र आर्य बताते हैं कि चौधरी चरण सिंह से जुड़ाव कभी कम नहीं हुआ और वह लोगों के दिलों में बसते हैं।

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