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Swatantrata Ke Sarthi: बेसहारा का सहारा, किसी के लिए मां... किसी की दादी

Swatantrata Ke Sarthi सहकारिता विभाग में प्रबंध निदेशक रमिंद्री मंद्रवाल ने बेसहारा महिलाओं और बच्चों को खुशहाल जीवन देने के लिए उन्होंने खुद को समर्पित कर दिया है। उन्‍होंने पिता से खादी की सादगी और समाज के प्रति समर्पण को देखा तो इसे आत्मसात कर लिया। जरूरतमंद बच्चों के लिए वह मां भी हैं और दादी भी। बच्चे उन्हें इन्हीं संबोधन से पुकारते हैं।

देहरादून:- नौकरी, व्यवसाय, घर-परिवार और निजी जीवन के झंझावतों में फंसकर अक्सर कुछ लोग सामाजिक सरोकारों से दूरी बना लेते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिनके मन में अपने इर्द-गिर्द शोषित, पिछड़े और वंचित वर्ग को देखकर एक टीस उठती है।

यही टीस उन्हें कुछ अलग प्रयास कर किसी को सहारा देने की प्रेरणा भी देती है। सहकारिता विभाग में प्रबंध निदेशक रमिंद्री मंद्रवाल भी उन्हीं में एक हैं।

बेसहारा महिलाओं और बच्चों को खुशहाल जीवन देने के लिए उन्होंने खुद को समर्पित कर दिया है। पिछले 38 साल से रमिंद्री सामाजिक सरोकारों को सर्वोपरि रखते हुए जरूरतमंदों के जीवन उन्नयन का प्रयास कर रही हैं। जरूरतमंद बच्चों के लिए वह मां भी हैं और दादी भी।

बच्चे उन्हें इन्हीं संबोधन से पुकारते हैं। मूल रूप से उत्तरकाशी निवासी रमिंद्री मंद्रवाल के मन में बचपन से ही गरीब, मेधावी और बेसहारों की मदद की ललक रही।

समाज के हर वर्ग को करीब से देखा

पिता सुंदरलाल मंद्रवाल श्रीनगर और पौड़ी के विधायक बने तो समाज के हर वर्ग को करीब से देखा। पिता से खादी की सादगी और समाज के प्रति समर्पण को देखा तो इसे आत्मसात कर लिया। मन में सिर्फ समाज के बेसहारा के आंसू पोंछ कर उनकी खुशी लौटाने का सपना था।

यही कारण रहा कि रमिंद्री कक्षा सात से ही समाज सेवा करने लगीं। इस दौरान एमडीएस स्कूल की सिस्टर रोजीमैरी के संपर्क में आकर उन्हें समाज के प्रति समर्पणभाव से कार्य करने की प्रेरणा मिली।

वह छुट्टियों में मलिन बस्तियों में जाकर जरूरतमंद बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाने लगीं। वर्ष 1991 में पीजी कालेज उत्तरकाशी में पहली छात्रा उपाध्यक्ष बनीं। पढ़ाई के दौरान 1994 में राज्य आंदोलन शुरू हुआ तो जिला संयोजक के तौर पर राज्य आंदोलन का नेतृत्व किया। इस दौरान पूरा फोकस बेसहारा महिलाओं, बच्चों और बड़ों की मदद रखा। इससे पहले लेक्चरर बनकर डायट की नौकरी की मगर, आगे बढ़ने की ललक थी, इसलिए 2005 में पीसीएस की परीक्षा पास कर ली।

इसके बाद एक ओर प्रदेश में बड़े पदों पर जिम्मेदारी तो दूसरी ओर शोषित समाज की पीड़ा दूर करने का प्रयास जारी रहा। घर को ही बनाया आश्रम रमिंद्री बताती हैं कि जीवन जीने के लिए दूसरों के दुखों में साथ रहकर उनके आंसू पोंछना और चेहरों पर खुशी देखना ही उनका मकसद है।

इसी के लिए 2007 में देहरादून में बद्रीपुर स्थित अपने घर को ही अनाथ आश्रम बनाया। इस आश्रम में अब तक 170 से ज्यादा बेसहारा बच्चों, महिलाओं और बड़ों को सहारा दिया गया।

अब तक 21 कन्याओं की कराई शादी

रमिंद्री बताती हैं कि अपना घर आश्रम में रहने वाली 17 कन्याओं का विवाह हो चुका है। यह सभी गरीब और बेसहारा थे, लेकिन इनकी शादी उन्होंने देख-परखकर जिम्मेदार युवकों से कराईं और सभी बेहद खुश हैं। आज भी वह दादी के घर के रूप में उनके पास आती हैं। उन्होंने कोरोना काल के बाद भी चार जरूरतमंदों की शादी कराई।

स्कूली बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी कर रहीं कार्य

रमिंद्री इन दिनों स्कूली बच्चों के खान-पान, रहन-सहन और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं। दून के कई स्कूलों में जाकर वह बच्चों की काउंसिलिंग करती हैं और जरूरतमंदों को आर्थिक सहयोग भी प्रदान करती हैं।