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बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए फसलों की नई किस्में विकसित की हैं। ये फसलें मौसम की मार को सहन करने में सक्षम हैं और इनकी उत्पादकता अधिक है। इन फसलों से किसानों की आय में वृद्धि होगी और विपरीत परिस्थियों में भी कृषि क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा।

भागलपुर। फसलें अब अपनी पूरी जिंदगी जिएंगी। खेतों में तनकर खड़ी रहेंगी। रोज-रोज बदलता मौसम भी उनकी उत्पादकता प्रभावित नहीं कर पाएगा।

कृषि विज्ञानियों ने समय से पहले मर रहीं इन फसलों को बचाने का उत्कृष्ट समाधान खोज लिया है। इससे रबी और खरीफ दोनों तरह की फसलों को जीवनदान मिलेगा। कृषि गतिविधियां व्यवस्थित होंगी, किसानों का उत्थान होगा

विज्ञानियों के इस अभिनव फसलीय प्रयोग से पर्यावरण तो संरक्षित होगा ही, ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन लगभग 62 प्रतिशत तक कम होगा।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय में शोध में जुटीं विज्ञानियों की टीम द्वारा विकसित ये सभी फसल प्रभेद जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील हैं

इन फसलों में बदलते मौसम में बेहतर और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन की क्षमता है। इनमें पानी का उपयोग कम करते हुए लंबे समय तक खेतों की मिट्टी जीवंत रखी जाती है। इससे कम लागत में गुणवत्तापूर्ण उपज प्राप्त होता है।

इन विज्ञानियों ने लगातार गिर रही उत्पादकता बढ़ाने के लिए इन फसलों के नए-नए प्रभेद विकसित करने में सफलता पाई है। इन फसलों पर मौसम की मार का कमतर असर होगा।

(बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर)

नकदी और रोपण फसलों की शोध आधारित रिपोर्ट के मुताबिक, अभी फसलों के जीवन चक्र में बदलाव से कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में ह्रास के साथ उपज क्षमता भी कम हो गई है।

वहीं, जलवायु परिवर्तन की मार से कई फसलें समय से पहले ही परिपक्व हो जा रहीं हैं। इससे पैदावार तो कम हो ही रही है, फसलों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो गया है।

बुआई से कटाई तक बढ़ेगी उत्पादकता

कृषि विज्ञानियों ने अपने रिसर्च में कहा है कि असंयोजित जलवायु घटक बुआई से कटाई तक फसलीय पौधों की उत्पादकता को घटाते हैं। धान और गेहूं को केंद्र में रखकर किए जा रहे शोध के अनुसार फसल की वृद्धि और उपज दिन-रात के उच्च तापमान से प्रभावित होते हैं।

जब फसल की बढ़वार पूरी तेजी से होनी हो, उस समय दिन का तापक्रम 20 डिग्री सेंटीग्रेड एवं रात्रि का तापमान 10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड रहना उपयुक्त माना जाता है। अभी के हालात में आदर्श तापमान से दिन-रात का तापमान अधिक हो गया है, जिससे पौधे में वृद्धि सामान्य रूप से नहीं हो पा रही है।

तापमान में परिवर्तन यदि लंबे समय तक रहता है, तो फसल बर्बाद होती है और उत्पादन घट जाता है। विज्ञानियों द्वारा विकसित किए जा रहे फसलों के मौसमरोधी नए प्रभेद बुआई से कटाई तक फसलों की उत्पादकता बढ़ाएगी।

तापमान बढ़ने से फसलों का असामान्य विकास

विज्ञानियों के तथ्यों को आसान भाषा में कहें तो फसलें बचपन के बाद किशोरावस्था नहीं बल्कि सीधे जवान हो रही हैं। फसलों का जीवन चक्र इतनी बुरी तरह प्रभावित है कि उपज तो कम हो ही रहा है, कृषि उत्पादों में गुणवत्ता की निरंतर कमी होती जा रही है।

कृषि विज्ञानी डॉ. सुवर्णा राय चौधरी द्वारा किए जा रहे अध्ययन में बताया गया है कि तापमान सामान्य से 5 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो तो फसलों की शारीरिक परिपक्वता का ह्रास होता है। जबकि उपज क्षमता भी कम हो जाती है।

(डॉ. सुवर्णा राय चौधरी, कृषि विज्ञानी, बीएयू)

तापमान बढ़ने से फसलों का तेजी से विकास होता है और जीवन चक्र छोटा हो जाता है। इससे लंबाई में पौधे छोटे, कम प्रजनन अवधि और उपज क्षमता भी कम होती है।

अत्यधिक तापमान के संपर्क में रहने से फसल की उत्पादकता भी काफी हद तक प्रभावित होती है। प्रजनन चरण के दौरान उच्च तापमान फसल की पराग व्यवहार्यता, निषेचन और अनाज-फल निर्माण को प्रभावित करता है। इससे उपज क्षमता कम हो रही है।

विकसित किए गए फसलों के 41 नए प्रभेद

कृषि विज्ञानियों ने कहा कि अक्सर बाढ़-सुखाड़, गर्म हवाएं और बेमौसम होने वाली अतिवृष्टि-अनावृष्टि से फसल की पैदावार सामान्य से कम होती है। इससे खेती की लागत बढ़ती जाती है। साथ ही फसलों के बाजार मूल्य में बढ़ोतरी होती है।

इन कठिन चुनौतियों के बीच मौसम अनुकूल नए-नए फसल प्रभेदों का विकास किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा एके सिंह ने बताया कि बीएयू ने अब तक जलवायु परिवर्तन के हिसाब से सहनशील फसलों के कुल 41 नए प्रभेद विकसित किए हैं। वहीं, हालिया दिनों में विभिन्न फसलों के 11 नए प्रभेदों में पांच राष्ट्रीय स्तर के, तीन बिहार के और तीन स्थानीय किसानों के लिए जारी किए गए हैं।

अत्यधिक तापमान से फसलों का जीवन चक्र छोटा हो गया है। कमतर गुणवत्ता के साथ पैदावार भी पहले से कम हो रही है। शोध के आधार पर मौसम से तालमेल बिठाते फसलों के नए प्रभेद विकसित किए जा रहे, इससे फसलों की उत्पादकता बढ़ेगी। किसानों की उत्पादन लागत घटेगी। डॉ. सुवर्णा राय चौधरी, कृषि विज्ञान

(डॉ. डीआर सिंह, कुलपति, बीएयू, सबौर)

जलवायु परिवर्तन का बुरा असर जीव-जंतुओं के साथ फसलों पर भी हो रहा है। तापमान बढ़ने से इनकी उपज क्षमता और गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय मौसमरोधी फसलों के नए-नए प्रभेद विकसित करने पर तेजी से काम कर रहा है। डॉ. डीआर सिंह, कुलपति, बीएयू, सबौर भागलपुर

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