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मद्महेश्वर पांडवसेरा नंदीकुंड ट्रैकिंग रूट खतरनाक होने के बावजूद ट्रैकरों की पहली पसंद है। इस ट्रैक पर ट्रैकरों के लापता होने और दुर्घटना की घटनाएं अक्सर होती रही हैं। अब वन विभाग ने ट्रैकरों के मेडिकल का बारिकी से परीक्षण करने और ट्रैकरों के साथ जाने वाले गाइड के पास कुशल प्रशिक्षण अनुभव होने के बाद ही अनुमति देने का निर्णय लिया है।

रुद्रप्रयाग। Trekking in Uttarakhand: 18 हजार फीट ऊंचाई से गुजरने वाला 78 किमी लंबा मद्महेश्वर पांडवसेरा नंदीकुंड ट्रैकिग रूट साहसिक पर्यटन की दृष्टि से ट्रैकरों को काफी पसंद आता है। काफी ऊंचाई पर होने के कारण यह ट्रैक रूट नैसर्गिक सौन्दर्य से भरपूर होने के साथ ही जान पर भी भारी पड़ता है।

इस ट्रैक रूट पर ट्रैकरों के लापता होने व दर्दनाक मौत की भी घटनाएं अक्सर होती रही हैं, जिसको देखते हुए अब वन विभाग ने ट्रैकरों के मेडिकल का बारिकी से परीक्षण करने व ट्रैकरों के साथ जाने वाले गाइड के पास कुशल प्रशिक्षण अनुभव होने के बाद ही अनुमति देने का निर्णय लिया है।

मई से लेकर अक्टूबर मध्य तक ट्रैकिंग करने के लिए अनुकूल

  • पांडवसेरा मद्महेश्वर ट्रैक रूट पर मई से लेकर अक्टूबर मध्य तक ट्रैकिंग करने के लिए अनुकूल होता है।
  • इस ट्रैक रूट पर विशेषकर बंगाल, मुम्बई, दिल्ली व अन्य क्षेत्रों से ट्रैकर उत्साह के साथ आते हैं।
  • अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित यह ट्रैक रूट प्राकृतिक नैसर्गिक सौन्दर्य को समेटे हुए है। जिससे यह साहसिक ट्रैकरो की पहली पसंद है।
  • लगभग चार दिन में यह रूट तय होता है।
  • मौसम खराब होने पर बर्फबारी शुरु हो जाती है।

पूर्व में हुई कई दर्दनाक घटनाएं

  • वर्ष 2022 मई की बात करें तो पांडव सेरा ट्रैक पर चार ट्रैकर्स व उनके साथ ही तीन पोर्टर (कुली) के लापता हो गए थे। रेस्क्यू दल ने चौपर से लापता ट्रैकर व पोर्टर की खोजबीन की। हेली से लगभग तीन दिन तक रेस्क्यू करने के बाद इन्हें सकुशल निकाला जा सका।
  • वर्ष 2019 में भी एक ट्रैकर की मौत हो गई थी।
  • वर्ष 2016 में भी तीन ट्रैकर लापता हो गए थे। जिसमें दो की जान बच गई थी।
  • गत चार अक्टूबर को भी 17 सदस्यी ट्रैकिंग दल के चार सदस्यों की तबियत बिगड़ गई थी, जिसके बाद प्रशासन ने हेली से रेस्क्यू के बाद उनकी जान बच सकी।

इन शर्तों को पूरा करने के बाद ही मिलेगी अनुमति

अब वन विभाग ने इसे गंभीरता से लेते हुए मद्महेश्वर पांडवसेरा ट्रैक रूट पर जाने वाले ट्रैकरों के मेडिकल की बारिकी से जांच करने तथा ट्रैकरों के साथ जाने वाले गाइडों के कुशल प्रशिक्षण होने के साथ ही आपात स्थिति में जरूरी उपकरण होने पर ही अनुमति देने का निर्णय लिया है।

केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी तरून ने बताया कि मद्महेश्वर पांडवसेरा ट्रैक रूट पर जाने वाले ट्रैकिंग दल के सदस्यों का मेडिकल की जांच में सभी पहलू देखे जाएंगे। साथ ही जो गाइड है उनके पास कुशल प्रशिक्षण अनुभव होने तथा बचाव के क्या संसाधन है, इन सभी की जांच के बाद ही अनुमति दी जाएगी। उन्होंने बताया कि दो ट्रैकरों को जांच के बाद अनफिट कर दि

पांडवों से जुड़ा है मद्महेश्वर पांडवसेरा ट्रैक रूट का इतिहास

  • मद्महेश्वर -पांडवसेरा-नन्दीकुंड का इतिहास पांडव काल से जुड़ा हआ है।
  • आज भी पांडवों के अस्त्र शस्त्र यहां पूजे जाते हैं।
  • द्वापर युग में पांडवों की ओर से रोपित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है।
  • यहां पांडवों द्वारा निर्मित सिंचाई गूल आज भी पांडवों के हिमालय आगमन की साक्ष्य है।
  • सिंचाई गूल देखकर ऐसा आभास होता है कि गूल का निर्माण सिंचाई के मानकों के अनुरूप किया गया है।

पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ धाम में जब पांचों पांडवों को भगवान शंकर के पृष्ठ भाग के दर्शन हुए तो पांंडवों ने द्रौपदी सहित मद्महेश्वर धाम होते हुए मोक्षधाम बदरीनाथ के लिए गमन किया। मद्महेश्वर धाम में पांचों पांंडवों द्वारा अपने पूर्वजों के तर्पण करने के साक्ष्य आज भी एक शिला पर मौजूद हैं

मद्महेश्वर धाम से बद्रीका आश्रम गमन करने पर पांचों पांंडवों ने कुछ समय पांंडवसेरा में प्रवास किया तो यह स्थान पांंडव सेरा के नाम से विख्यात हुआ। पांंडव सेरा में आज भी पांंडवों के अस्त्र-शस्त्र पूजे जाते हैं तथा पांंडवों द्वारा सिंचित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है और पकने के बाद धरती के आंचल में समा जाती है।

पांंडव सेरा में पांंडवों द्वारा निर्मित सिंचाई नहर विद्यमान है तथा सिंचाई नहर में जल प्रवाह निरन्तर होता रहता है। पांंडव सेरा से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित नन्दीकुण्ड में स्नान करने से मानव का अन्तः करण शुद्ध हो जाता है।

जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी एनएस राजवार बताते हैं कि मद्महेश्वर धाम से 20 किमी की दूरी पर पांडवसेरा और 25 किमी की दूरी पर नंदीकुंड पड़ता है। मद्महेश्वर से धौला क्षेत्रपाल, नंद बराड़ी खर्क, काच्छिनी खाल, पनार खर्क, द्वारीगाड, पंडौंखोली व सेरागाड़ से होते हुए पांडवसेरा पहुंचा जा सकता है। प्रकृति प्रेमी भूपेन्द्र पंवार, अंकुश पंवार, लोकेश पंवार, अजय पंवार ने बताया कि मदमहेश्वर से पाण्डव सेरा-नन्दीकुण्ड तक फैले भूभाग को प्रकृति ने अपने दिलकश नजारों से सजाया है.

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