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नैनीताल में धूमकेतु सी/2023 ए-3 त्सुचिंशान एटलस की चमक ने चांद-तारों को भी फीका कर दिया है। सूर्योदय से पहले दिखने वाला यह धूमकेतु बिना दूरबीन के ही खुली आंखों से देखा जा सकता है। आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के अनुसार यह धूमकेतु 12 अक्टूबर को पृथ्वी के सबसे करीब होगा और तब यह पश्चिम के आकाश में शाम के समय नजर आएगा।

नैनीताल। इन दिनों धूमकेतु सी/2023 ए-3 त्सुचिंशान एटलस के आगे चांद-तारों की चमक भी हल्की नजर आ रही है। लंबी चमकती पूंछ के साथ सूर्योदय से पहले यह धूमकेतु दुनियाभर में आकर्षण का केंद्र बना है। जो बिना दूरबीन के ही अब खुली आंखों से नजर आने लगा है।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा. शशिभूषण पांडेय के अनुसार जुलाई में इस धूमकेतु के टूटकर बिखर जाने की आशंका थी। लेकिन सितंबर में यह लौट आया और अब जोरदार चमक लिए भोर के आसमान में लंबी पूंछ के साथ अनोखी छटा बिखेर रहा है

आसानी से पहचाना जा सकता

चमकदार सुनहरी पूंछ से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। सूर्योदय से करीब एक घंटे पहले पूर्व के क्षितिज में यह नजर आ रहा है। यह रोमांचक खगोलीय घटना खगोलप्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। एस्ट्रोफोटोग्राफर इस घटना को कैमरे में कैद कर रहे हैं। वहीं धूमकेतुओं पर अध्ययन कर रहे विज्ञानियों की नजर हर पल इस पर टिकी हुई है।

फिलहाल यह धूमकेतु 80.74 किमी प्रति सेकंड की तेज गति से आगे बढ़ रहा है। जिस कारण लगभग इसे 15 से 20 मिनट ही देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि यह अपनी चमक की वजह से कामेट आफ दि ईयर की पदवी भी हासिल करेगा। 12 अक्टूबर को यह पृथ्वी के नजदीक से गुजरेगा। तब अधिक चमक के साथ यह पश्चिम के आकाश में शाम के समय नजर आने लगेगा। इसका इतना नज़दीक आना विज्ञानी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।

50 किमी से भी बड़े होते हैं धूमकेतु

डा. शशिभूषण के अनुसार धूमकेतुओं का आकार 50 किमी से भी बड़ा हो सकता है। छोटे आकार वाले बौने धूमकेतु कहलाते हैं। डेढ़ किमी से तीन किमी के बीच छोटे धूमकेतु कहलाते हैं।

10 किमी से अधिक आकार वाले बड़े धूमकेतुओं की श्रेणी में आते हैं। 50 किमी से ज्यादा बड़े गोलीर्थ धूमकेतु कहा जाता है। माना जाता है कि पृथ्वी पर पानी धूमकेतु ही लाए और जीवन के लिए महत्वपूर्ण घटक अमीनो एसिड भी धूमकेतुओं के कारण ही पृथ्वी पर आया

 

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