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क्या पीएम मोदी की कीव यात्रा से रूस पर बनेगा दबाव? राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कह दी बड़ी बात

पीएम मोदी यूक्रेन की यात्रा से स्वदेश लौट आये हैं। पीएम मोदी ने अपने इस यात्रा से एक संदेश दिया है कि भारत और यूक्रेन के रिश्तों पर रूस का कोई असर नहीं होगा। राष्ट्रपति जेलेंस्की निश्चित तौर पर अभी चाहते हैं कि पीएम मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर अपने रसूख का इस्तेमाल करें ताकि युद्ध को समाप्त करने में अपनी बड़ी भूमिका निभायें

नई दिल्ली। पीएम नरेन्द्र मोदी यूक्रेन की अपनी 'ऐतिहासिक' यात्रा से स्वदेश लौट आये हैं। राजधानी कीव में मोदी के सात घंटे के प्रवास के दौरान राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के साथ हुई वार्ता के साथ ही भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यूक्रेन के साथ उसके रिश्तों में अब रूस का फांस नहीं रहेगा।

भारत-यूक्रेन के रिश्तों में क्यों आया था तनाव?

वर्ष 2014 में क्रीमिया विवाद के बाद से ही भारत और यूक्रेन के रिश्तों में तनाव था और रूस के साथ अपने संबंधों की वजह से भारत यूक्रेन को लेकर ठंडा रवैया अख्तियार किया हुआ था, लेकिन अब यह माहौल बदल चुका है।

युद्ध की समाप्ति में भारत निभा सकता है बड़ी भूमिका

राष्ट्रपति जेलेंस्की निश्चित तौर पर अभी चाहते हैं कि पीएम मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर अपने रसूख का इस्तेमाल करें ताकि युद्ध को समाप्त करने में अपनी बड़ी भूमिका निभायें, लेकिन साथ ही जेलेंस्की ने यह भी स्पष्ट किया है कि युद्ध समाप्त होने के बाद भारत व यूक्रेन के रिश्तों में व्यापकता आना तय है।

पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने की थी यूक्रेन की यात्रा

जानकार बताते हैं कि वर्ष 1991 में पूर्व सोवियत गणराज्य से अलग होने के बाद यूक्रेन के साथ भारत ने फरवरी, 1992 में ही कूटनीतिक रिश्ते बना लिए थे। वर्ष 2005 में पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने यूक्रेन की यात्रा की थी। वर्ष 2012 में यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यानोकोविच ने नई दिल्ली का दौरा किया था।

क्या अब खत्म हो जाएंगे भारत-यूक्रेन रिश्तों में तनाव?

इस दौरे में दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग से लेकर प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कई समझौते हुए, लेकिन वर्ष 2014 में यूक्रेन के एक हिस्से क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद हालात बदल गये। भारत ने रूस के कदम का विरोध नहीं किया। रूस पर लगाये गये प्रतिबंध का भी भारत ने विरोध किया। यही नहीं क्रीमिया के प्रधानमंत्री का भारत का दौरा भी हुआ। इससे भारत व यूक्रेन के रिश्तों में जो तनाव बना उसके अब जा कर खत्म होने के संकेत है।

पीएम मोदी और जेलेंस्की की कई बार हुई फोन पर बात

फरवरी, 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमले के बाद भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को लेकर अमेरिका व पश्चिमी देशों की नहीं सुनी है तो इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि इस दौरान भारत ने यूक्रेन के जितना कूटनीतिक संवाद किया है वैसे पहले कभी नहीं किया। कई बार मोदी ने जेलेंस्की से टेलीफोन पर बात की है। पीएम मोदी ने वर्ष 2023 व वर्ष 2024 में दो बार दूसरे देशों में जेलेंस्की से मिलने के बाद अब अंतत: यूक्रेन का दौरा करने वाले पहले भारतीय पीएम बन गये हैं।

दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की हो सकती है बैठक

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूक्रेन के विदेश मंत्री के साथ लगातार संपर्क बना कर रखा है। यह संपर्क आने वाले दिनों में और बढ़ेगा। शुक्रवार को दोनों देशों के संयुक्त बयान में भी इसके संकेत है। सैन्य प्रौद्योगिकी सहयोग को लेकर गठित आयोग की आगामी बैठक वर्ष 2012 के बाद पहली बार होने जा रही है। दिसंबर, 2024 तक दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की एक और बैठक भी होने की संभावना है, जिसमें मोदी-जेलेंस्की बैठक में द्विपक्षीय संबंधों को लेकर जो फैसले किये गये हैं उसकी समीक्षा की जाएगी।

जेलेंस्की ने बताया युद्ध के बाद का प्लान

जेलेंस्की ने भी भारतीय मीडिया के साथ प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि, “आगे हमारे बीच सहयोग के क्षेत्र की बहुत लंबी सूची है। कृषि, प्रौद्योगिक, चिकित्सा, सुरक्षा, ड्रोन व इलेक्ट्रॉनिक युद्ध सामग्री, साइबर अपराध जैसे कई क्षेत्र हैं जहां हम सहयोग करेंगे। युद्ध समाप्त होने के बाद यह काम दस गुणा तेजी से होगा। हम साथ साथ मिल कर रक्षा उपकरणों का उत्पादन दोनों देशों के लिए करने को तैयार हैं। युद्ध निश्चित तौर पर समाप्त होगा और उसके बाद हम इसके लिए तैयार हैं।'

अंतरराष्ट्रीय सोलर एलायंस में शामिल हो सकता है यूक्रेन

यूक्रेन में युद्ध के बाद बड़े पैमाने पर निर्माण का काम शुरू होने की संभावना है। शीर्ष स्तर पर इस बारे में भी बात हुई है कि भारतीय कंपनियों को वहां अवसर मिले। भारत की अध्यक्षता वाले अंतरराष्ट्रीय सोलर एलायंस (आईएस) में भी यूक्रेन शामिल होने को सहमत है। चिकित्सा व मेडिसिन में भारत पहले से ही यूक्रेन को काफी मदद कर रहा है। अगस्त, 2024 में संयुक्त कार्य समूह की बैठक भी हुई है। भारतीय दवा कंपनियां यूक्रेन को एक बड़े बाजार के तौर पर देख रही हैं।