Bangladesh Crisis: बांग्लादेश के बिगड़ते हालात से भारत चिंतित, भारतीय दूतावास पर भी मंडरा रहा खतरा
बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार के गठन के बाद भी भारत को चिंता सता रही है कि पड़ोसी देश में फिर से भारत विरोधी ताकतों को हवा मिल सकती है। भारतीय उच्चायोग को भी अपने कार्यालय व परिसंपत्तियों की चिंता है। गुरुवार को भारत के उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने इस मुद्दे को अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के समक्ष उठाया।
बांग्लादेश के पिछले 43 वर्षों का इतिहास गवाह है कि जब भी वहां गैर-आवामी लीग सरकार (सैन्य या लोकतांत्रिक) सत्ता में होती है तो भारत विरोधी गतिविधियां बढ़ जाती हैं।
अब जबकि पूर्व पीएम शेख हसीना को बांग्लादेश की सत्ता को छोड़े 18 दिनों से ज्यादा हो गये हैं और वहां प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार के गठन हुए भी तकरीबन दो हफ्ते होने जा रहे हैं, भारत को यह चिंता सताने लगी है कि पड़ोसी देश में फिर से भारत विरोधी ताकतों को हवा मिल सकती है।
भारत सिर्फ इस बात से चिंतित नहीं है कि बांग्लादेश में उसके खिलाफ अफवाहों को हथियार बनाया जा रहा है बल्कि जिस तरह से वहां के अधिकांश हिस्सों में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी हुई है , वह भी चिंता का बड़ा कारण है।
पुलिस के हाथ में है कानून व्यवस्था की जिम्मेदारीः सेना
अंदरूनी हालात को संभालने में बांग्लादेश सेना की तरफ से कोई कदम नहीं उठाना भी भारतीय कूटनीतिकारों के लिए पहेली बनी हुई है। जो सूचनाएं भारत को मिली है उसके मुताबिक, पिछले दिनों आवामी लीग के नेताओं और मीडिया पर हुए भीड़ के हमले से बचाने को लेकर बांग्लादेश सेना के स्थानीय अधिकारियों ने कोई दिलचस्पी नहीं ली। सेना का साफ तौर पर कहना है कि कानून व्यवस्था की स्थिति पुलिस को ही संभालनी पड़ेगी।
ड्यूटी पर नहीं आ रहे पुलिसकर्मी
दूसरी तरफ स्थिति यह है कि अंतरिम सरकार की तरफ से बार-बार निर्देश जारी करने के बावजूद ढाका व कुछ शहरों के बाहर के अधिकांश पुलिस थाने खाली पड़े हुए हैं। भीड़ का निशाना बनने के डर से पुलिसकर्मी ड्यूटी पर नहीं आ रहे।
भारत को सता रही ये चिंता
इस हालात में भारतीय उच्चायोग को भी अपने कार्यालय व परिसंपत्तियों की चिंता है। गुरुवार को भारत के उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने इस मुद्दे को अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के समक्ष उठाया। गौरतलब है कि पहले भी जब बांग्लादेश में भारतीय उच्चायोग को निशाना बनाने की कोशिश की गई है। ऐसा बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुआ था, जबकि वर्ष 2009 में वहां की पुलिस ने भारतीय उच्चायोग पर आतंकी हमले की साजिश का पर्दाफाश किया था।
अल्पसंख्यकों पर नहीं थम रही हिंसा
भारत के प्रमुख रणनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा है कि, 'सेना समर्थित अंतरिम सरकार प्रतिशोध की भावना के तहत उठाये जाने वाले कदमों या दूसरे गलत कामों को तो नहीं रोक पाई है, लेकिन राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों, स्थानीय अधिकारियों, अधिवक्ताओं, शिक्षाविदों को जेल में डाल रही है, जबकि अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।'
बाइडन की चुप्पी पर उठाया सवाल
उन्होंने बांग्लादेश में मानवाधिकार का हो रहे उल्लंघन, हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले को लेकर अमेरिका के जो बाइडन सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाया है। इस बारे में अधिकारियों का कहना है कि पहले भी जब बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता होती है तो उसका खामियाजा सिर्फ भारत को ही भुगतना पड़ा है। अमेरिका, चीन या दूसरे देशों की चुप्पी कोई नई बात नहीं है।
सेना क्यों नहीं कर रही कानून-व्यवस्था को लेकर हस्तक्षेप?
बांग्लादेश की सेना की तरफ से वहां कानून-व्यवस्था को लेकर हस्तक्षेप नहीं करने के बारे में भारत में यह माना जा रहा है कि सेना राजनीतिक दलों की लड़ाई में जल्दबाजी नहीं करना चाहती है। अगर स्थिति और ज्यादा बिगड़ती है और जनता की तरफ से सेना को हस्तक्षेप करने की मांग उठे तब शायद वह ऐसा करेगी।
बताते चलें कि पूर्व में भी बांग्लादेश सेना का रवैया वहां के सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल के हिसाब से बदलता रहा है। बीएनपी के सत्ता में होने के दौरान बांग्लादेश सेना का रवैया सीमा पर सहयोग का नहीं होता, जबकि वर्ष 2009 में आवामी लीग के सत्ता में आने के बाद से वहां की सेना का रवैया अभी तक सहयोगात्मक रहा है। दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग के कई आयामों पर चर्चा हो रही थी। इनका भविष्य भी अनिश्चित है।
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